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बचपन से हम सत्यनारायण की कथा सुनते आ रहे हैं.इस कथा में वैसे तो पांच अध्याय होते हैं और कई पात्रों के जरिये भगवान सत्यनारायण की महिमा का बखान किया गया है लेकिन आज के दौर में भी इस कथा में सबसे ज़्यादा चर्चा लीलावती और कलावती नामक दो महिलाओं की होती है.शास्त्रों के मुताबिक आज यानि कलयुग में एक बार फिर कलावती चर्चा में है.फर्क केवल इतना है कि मूल कथा में भगवान सत्यनारायण लीलावती-कलावती को दंड देते है.
कुछ साल से कलावती नाम देशभर में अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान की तरह मशहूर है आलम यह था. कि कलावती देश की गरीब और पिछड़ी महिलाओं का पर्याय बन गयी है.अब तक कांग्रेस के प्रिंस चार्मिंग’अर्थात राहुल को भगवान मानने वाली कलावती ने बिहार विधानसभा चुनाव में अपने भगवान राहुल को ही ज़मीन दिखा दी.दरअसल राहुल ने बिहार को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला बना लिया था.,उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को आंशिक सफलता मिली. अब इसमें राहुल गाँधी का योगदान कितना था ये तो राजनीतिक विश्लेषण का विषय हो सकता है . चुनाव परिणाम आने के पहले तकराग-राहुल’के चापलूस पत्रकारों ने राहुल की महिमा का ऐसा समां बाँध दिया था कि लगने लगा था मानो बिहार में अब बिहारवाद नहीं बल्कि राहुलवाद चलेगा परन्तु चुनाव परिणामों ने ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ कर दिया. कलावती यानि आम जनता ने राहुल और उनकी विरदावली गाने वालों को ऐसा सबक सिखाया कि वे मीडिया के सामने आने से भी कतराने लगे.
ईमानदारी से विश्लेषण किया जाए तो इसमें गलती न तो राहुल की है.कि वे अपनी असलियत ही भूल गए और मीडिया की भूल-भुलैया को ही वास्तविकता समझने लगे.बस फिर क्या था राहुल के सिपहसालार भी उनके सुर में सुर मिलकर सफलता का राग गाने लगे,लेकिन जब लालूप्रसाद और पासवान जैसे घाघ नेता भी जब कलावती का मूड नहीं समझ पाए तो राजनीति के नौसिखिये राहुल बेचारे कैसे समझ पाते.अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है....अब भी राहुल ज़मीनी राजनीति और राजनीति की ज़मीन का ककहरा सही सही पढ़ ले तो वे कांग्रेस का इंदिरा-युग’वापस ला सकते हैं और कलावती भी अपने भगवान से रूठने की बजाय सत्यनारायण की कथा की तरह उनकी शरण में वापस जा सकती है.वैसे भी अब तो कांग्रेस ने नए सिरे से प्रणब दादा के राष्ट्रपति बनने के पहले से राहुल को सितम्बर मे बड़ी जिम्मेदारी सोपने की बात कही है.कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष की कुर्सी सँभालकर अपनी माँ सोनिया के उत्तराधिकार बनने वाले है,या कोई कबिनेट में मंत्री का पद वैसे वो कोई भी पद संभाले.देखना दिलचस्प होगा कि उनकी आगे की रणनीति और निर्णयों से कांग्रेस का भविष्य और देश का भविष्य किस तरह निर्धारित होता है. एक सम्भावना और है जिससे इंकार नहीं किया जा सकता कि वो भविष्य में देश की बागडोर प्रधानमंत्री के तौर पर संभाले...................