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*चित्र गूगल से साभार*
कुछ दोहे उसके लिये, जो जीवन सौगात
आजीवन चंदा बना, मैं जिसका अहिवात
गले का मंगल धागा.
गले का मंगल धागा.
पत्नी धुँधली साँझ है, घर की फटती पौ
घर की अक्षत दूब है, दीया की है लौ
सुधा की पावन प्रतिमा.
पत्नी घर की गोमती, घर की अमृत धार
सिंचित करती ही रही, एक अमित परिवार
जुटाकर स्नेहित पानी.
पत्नी घर की नींद है,पत्नी घर की आग
रागों की है रागिनी, खटकों का खटराग
स्नेह की अविरल गंगा.
पत्नी पुलकित पूर्णिमा, पत्नी मावस रात
अँधियारी ही जानती, पत्नी की औकात
एक आँगन का दर्पण.
रचनाकार- श्री शिवानंद सिंह "सहयोगी"
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