अपने देश में कला की तो कोई कद्र ही नहीं है। आए दिन कोई न कोई ऐसा सरकारी फरमान जारी होता रहता है, जो कला का मानमर्दन करने को तत्पर रहता है। अब गुटखेबाज कलासेवी जीवों को ही ले लीजिए। कलासेवा की खातिर कड़ी और ज़हरीली चेतावनी का सन्देश पढ़ने के बावजूद भी अपने मुँह में नुकसानदायक ज़हरीला गुटखा गटकने वाले महान जीवों का त्याग भला वे लोग कहाँ समझेंगे, जिन्होंने कभी भी गुटखा छूने का साहस ही न किया हो। गुटखा को मुँह में धरकर पिच-पिच की ध्वनि का घोष करते हुए दफ्तर से लेकर पुरातत्व के महत्त्व की इमारत तक को पिचकारी मारकर भाँति-भाँति प्रकार की कलाकृतियों का निर्माण करनेवाले कलाकारों के परिश्रम का कुछ तो ध्यान रखना चाहिए। सरकारी-गैरसरकारी दफ्तरों की सीढियाँ, दरवाजे व शौचालय की सुंदरता इन कलासेवकों के दम पर ही टिकी हुई है। इनके द्वारा ऐतिहासिक इमारतों पर गुटखा खाकर मुँह में गंभीर गुटखा मंथन के उपरांत उपजे अनोखे रंग के द्रव्य द्वारा ऐसी अनोखी कलाकृतियों का निर्माण किया जाता है, कि जिन्हें देखकर बड़े-बड़े चित्रकार भी दाँतों तले उँगलियाँ दबाने को विवश हो जाते हैं। देशी-विदेशी पर्यटक तो इन कलाकृतियों को देखकर इन्हें निर्मित करनेवाले गुटखेबाज कलासेवियों की कलाकारी के आगे नतमस्तक हो उठते हैं। कोई माने या न माने लेकिन घूमकर वापस लौटने पर पर्यटकों के मन-मस्तिष्क पर ऐतिहासिक इमारतों अथवा स्थलों की छवि बेशक न रहे पर गुटखेबाज कलासेवियों द्वारा प्रयत्नपूर्वक निर्मित की गईं अद्भुत कलाकृतियों की मनमोहक छवि गहराई से पैठ बना लेती हैं। यदि इन कलासेवियों की कला की प्रशंसा एक वाक्य में करें तो ‘म्हारे गुटखेबाज चित्रकारी में किसी पिकासो से कम न हैं’। गुटखेबाज कलासेवियों द्वारा विकसित की गई इस अनोखी भित्ति चित्रकला को संरक्षित करने की ओर हमें गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। यदि सरकार इस पुनीत कार्य को करने में उदासीनता दिखाती है तो स्वयंसेवी संगठनों एवं भले लोगों को मदद के लिए आगे बढ़कर आना चाहिए। वरना ऐसी अद्भुत भित्ति चित्रकला के विलुप्त होने की पूरी-पूरी संभावना है। इसके विलुप्त होने से गुटखेबाज कलासेवियों द्वारा सालों-साल से निरंतर किया जा रहा कठोर परिश्रम माटी में मिल जाएगा। इसलिए गुटखा, पान और तंबाकू सेवन पर प्रतिबंधरुपी कटार चलाकर इस कला को नष्ट करने का प्रयास बहुत ही निंदनीय है और हम सभी कलाप्रेमी एक मत से इस फैसले की कड़ी से कड़ी निंदा करते हैं।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
कार्टून गूगल से साभार