चित्र गूगल से साभार |
सोचा था अपना जिन्हें, हैं घर से वो दूर
प्रेम आज घायल हुआ, मन में पला गरूर
यही सब होना ही था
दुःख अपने परिवार संग, साध रहा है बैर
राहें चलतीं पूछतीं, रोज - रोज ही खैर
किसे मैं क्या बतलाऊँ
दूर - दूर होते गए, अपने - अपने लोग
किस-किसको मैं दोष दूं, यह सब है संयोग
हुए अपने बेगाने
किसने यह साजिश रची, किया कौन अपराध
अपनेपन से दूर मन, साथी बना विराध
कौन है मामा शकुनी
दुविधाओं ने सहन का, तोड़ दिया है बाँध
दर्द तभी से दे रहा, आशाओं को काँध
पड़ोसी ताना मारे
रचनाकार- श्री शिवानंद सिंह "सहयोगी"
संपर्क- "शिवभा" ए- 233, गंगानगर, मवाना मार्ग, मेरठ- 250001
दूरभाष- 09412212255, 0121-2620880
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