बिहार में SIR के बाद फाइनल वोटर लिस्ट जारी, 47 लाख नाम कटे, 7.42 करोड़ मतदाता

बिहार में SIR के बाद फाइनल वोटर लिस्ट जारी, 47 लाख नाम कटे, 7.42 करोड़ मतदाता नव॰, 23 2025

भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अंतिम मतदाता सूची जारी कर दी है — 7.42 करोड़ मतदाता, लेकिन इसके पीछे छिपा है एक ऐसा विवाद जो देश के लोकतंत्र की नींव को छू रहा है। विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के तहत 47 लाख नाम हटाए गए, जिसमें मृत व्यक्ति, पलायन कर चुके और अस्थायी पते वाले शामिल हैं। लेकिन यह सिर्फ एक सूची शुद्धिकरण नहीं है... यह एक राजनीतिक बिंदु बन चुका है।

कैसे बनी ये अंतिम सूची? एसआईआर की अनोखी प्रक्रिया

25 जून 2025 तक बिहार में 7.89 करोड़ मतदाता थे। एसआईआर शुरू होने के बाद यह संख्या 7.24 करोड़ तक गिर गई — लेकिन फिर वापस बढ़कर 7.42 करोड़ हो गई। क्यों? क्योंकि इस बीच 21 लाख 53 हजार नए मतदाता जुड़े, और 3.66 लाख अयोग्य नाम हटाए गए। लेकिन फाइनल लिस्ट में ड्राफ्ट की तुलना में 17.87 लाख नए नाम जुड़े — यह आपत्तियों और अपीलों के जरिए हुए सुधारों का नतीजा है।

यह प्रक्रिया किसी ऑफिस में बैठकर नहीं हुई। ज्ञानेश कुमार, मुख्य निर्वाचन अधिकारी बिहार, ने घर-घर जाकर गिनती की। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने लगभग 1 लाख बूथ स्तरीय अधिकारी (BLOs), 243 निर्वाचक निबंधन अधिकारी (EROs) और 2,976 सहायक अधिकारी (AEROs) को जमीनी स्तर पर भेजा। सभी 38 जिलों में राजनीतिक दलों को बूथ स्तरीय डेटा दिया गया — जिसमें नाम हटाने के लिए आधार भी दिया गया।

डिजिटल टूल्स ने बदल दी गेम

यह पहली बार है जब एक राज्य की मतदाता सूची इतनी डिजिटल रूप से तैयार हुई। वोटर्स अब ceoelection.bihar.gov.in और voters.eci.gov.in पर अपना नाम चेक कर सकते हैं। मोबाइल ऐप से डॉक्यूमेंट्स अपलोड करने की सुविधा मिलती है — जिससे डुप्लीकेशन कम हुआ और अधिकारियों का बोझ हल्का हुआ। यह न सिर्फ तेज है, बल्कि पारदर्शी भी है।

अगर कोई नाम छूट गया हो, तो वह नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि से 10 दिन पहले तक आवेदन कर सकता है। यह नियम संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुरूप है — जो कहता है: ‘कोई भी पात्र मतदाता छूटे नहीं, और कोई भी अपात्र व्यक्ति सूची में शामिल न हो।’

विपक्ष का आरोप: चुनावी विषमता की योजना?

लेकिन यहां बात बदल जाती है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल — तीनों विपक्ष शासित राज्य — ने आरोप लगाया है कि SIR की टाइमिंग और नाम हटाने की दर, चुनावी मैदान को एकतरफा करने की कोशिश है। उनका कहना है कि बिहार में अधिकांश हटाए गए नाम विपक्षी दलों के समर्थक थे।

इस आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने ध्यान दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया: ‘अंतिम सूची जारी होने के बाद भी गड़बड़ी पाई जाए तो पूरी प्रक्रिया रद्द की जा सकती है।’ यानी — यह सूची कानूनी रूप से अछूती नहीं है।

7 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में SIR की वैधता पर अंतिम सुनवाई होगी। अगर कोर्ट इसे अवैध पाता है, तो बिहार के चुनाव की तारीख भी बदल सकती है।

असम में भी शुरू हुआ SIR, लेकिन अलग तरह

असम में भी शुरू हुआ SIR, लेकिन अलग तरह

बिहार के बाद असम ने भी एक विशेष संशोधन की घोषणा की है — लेकिन यहां यह प्रक्रिया SIR और Special Summary Revision के बीच का मिश्रण है। असम में क्वॉलिफाइंग डेट 1 जनवरी 2026 तय किया गया है, और फाइनल लिस्ट का ड्राफ्ट 10 फरवरी 2026 को जारी होगा। यहां लोगों को नागरिकता के दस्तावेज दिखाने की जरूरत है — जिससे विवाद अधिक गहरे हो रहे हैं।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया: ‘बिहार में हमने बस गलत नाम हटाए। असम में हम लोगों को भारतीय नागरिक बनने का साबित करना है।’

यह सूची वाकई निष्पक्ष है?

एसआईआर की सफलता का मापदंड नहीं है कि कितने नाम हटाए गए — बल्कि यह है कि कितने वास्तविक मतदाता छूट गए। बिहार में लगभग 12 राजनीतिक दलों ने इस प्रक्रिया में भाग लिया। अगर कोई दल अपने वोटर्स के नाम गायब पाता है, तो उसे आपत्ति दर्ज करने का मौका मिला।

लेकिन यहां एक बड़ा सवाल है: क्या यह प्रक्रिया असल में निष्पक्ष रही? या इसका इस्तेमाल विपक्षी वोटर्स को निष्क्रिय करने के लिए हुआ? यह अभी तक कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा है।

अगले कदम: चुनाव तक केवल 2 महीने

अगले कदम: चुनाव तक केवल 2 महीने

अब बिहार में चुनाव 20 अक्टूबर 2025 को होने वाला है। अगर सुप्रीम कोर्ट 7 अक्टूबर को एसआईआर को रद्द कर देता है, तो चुनाव टाले जा सकते हैं। अगर नहीं, तो यह अंतिम सूची आधार बनेगी।

इसके बाद अन्य राज्य भी इस मॉडल को अपनाने की तैयारी में हैं। अगर यह प्रक्रिया निष्पक्ष साबित होती है, तो यह देश के लिए एक नया मानक बन सकती है। लेकिन अगर इसे राजनीतिक उपकरण बना दिया जाता है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाएगा।

Frequently Asked Questions

SIR प्रक्रिया क्या है और यह सामान्य पुनरीक्षण से कैसे अलग है?

SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण, घर-घर जाकर डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन और बड़े पैमाने पर डेटा ऑडिट की प्रक्रिया है। इसके विपरीत सामान्य पुनरीक्षण में सिर्फ नए मतदाताओं को जोड़ा जाता है और छोटी गलतियां सुधारी जाती हैं। SIR एक विशाल ऑपरेशन है जिसमें लाखों अधिकारी शामिल होते हैं।

क्या बिहार में हटाए गए 47 लाख नाम सभी अयोग्य थे?

भारत निर्वाचन आयोग का कहना है कि इनमें मृत व्यक्ति, स्थायी रूप से पलायन कर चुके लोग और अस्थायी पते वाले शामिल थे। लेकिन विपक्ष आरोप लगाता है कि बहुत से वास्तविक मतदाता भी हटा दिए गए। इसकी पुष्टि के लिए अभी तक कोई आंकड़े नहीं जारी किए गए हैं।

अगर मेरा नाम फाइनल लिस्ट में नहीं है, तो क्या कर सकता हूँ?

अगर आप पात्र हैं और आपका नाम नहीं है, तो आप नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि से 10 दिन पहले तक आवेदन कर सकते हैं। आप ceoelection.bihar.gov.in पर ऑनलाइन फॉर्म भर सकते हैं और अपने आधार, पासपोर्ट या निवास प्रमाण पत्र अपलोड कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला कैसे चुनाव को प्रभावित कर सकता है?

अगर सुप्रीम कोर्ट SIR प्रक्रिया को अवैध पाता है, तो बिहार की अंतिम मतदाता सूची रद्द हो सकती है। इसका मतलब होगा कि चुनाव टाले जाने की संभावना है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सूची जारी होने के बाद भी कानूनी चुनौतियां स्वीकार्य हैं।

असम और बिहार की SIR प्रक्रिया में क्या अंतर है?

बिहार में SIR का उद्देश्य अयोग्य नाम हटाना है। असम में यह प्रक्रिया नागरिकता की पुष्टि के लिए है — जहां लोगों को नागरिकता के दस्तावेज दिखाने होते हैं। असम की प्रक्रिया अधिक जटिल है और इसके लिए 1 जनवरी 2026 को क्वॉलिफाइंग डेट तय किया गया है।

क्या यह प्रक्रिया भारत भर में लागू होगी?

अगर सुप्रीम कोर्ट SIR को सही पाता है, तो यह भारत भर में अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल बन सकती है। विशेष रूप से ऐसे राज्यों में जहां मतदाता सूची में गड़बड़ी की आशंका है। लेकिन अगर इसका दुरुपयोग हुआ, तो इसे बंद कर दिया जाएगा।