दिल्ली में AQI 400 के पार, क्लाउड सीडिंग से बारिश नहीं हुई पर प्रदूषण में 41.9% गिरावट

दिल्ली में AQI 400 के पार, क्लाउड सीडिंग से बारिश नहीं हुई पर प्रदूषण में 41.9% गिरावट अक्तू॰, 30 2025

30 अक्टूबर 2025 को दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कुछ क्षेत्रों में 400 के पार पहुंच गया, जो 'बहुत खराब' श्रेणी में आता है। सुबह से ही लोगों ने चश्मे और मास्क बांधे, बच्चे स्कूलों से घर पर रहे, और अस्पतालों में सांस संबंधी मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई। लेकिन एक अजीब बात ये रही — बारिश नहीं हुई, फिर भी प्रदूषण में गिरावट आई। क्या ये विज्ञान का नया जादू है? या सिर्फ एक भरोसेमंद झूठ?

क्लाउड सीडिंग: बारिश नहीं, पर प्रदूषण में कमी

दिल्ली सरकार और आईआईटी कानपुर ने मंगलवार को दो हवाई उड़ानों के जरिए क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया। एक फ्लाइट कानपुर से निकली, दूसरी दिल्ली के बादली क्षेत्रों पर उड़ी। इन उड़ानों में मनजिंदर सिंह सिरसा, दिल्ली के पर्यावरण मंत्री, के नेतृत्व में नमक, रॉक सॉल्ट और सिल्वर आयोडाइड का मिश्रण बादलों में छोड़ा गया। ये तकनीक बादलों में बूंदों के बनने की प्रक्रिया को तेज करती है — लेकिन बारिश के लिए नमी की कमी ने सब कुछ बर्बाद कर दिया।

वैज्ञानिकों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग के लिए बादलों में कम से कम 20-25% नमी होनी चाहिए। लेकिन उस दिन नमी सिर्फ 15-20% थी। फिर भी, आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि बादलों में इस मिश्रण के छोड़े जाने से PM10 प्रदूषकों में 41.9% तक की कमी आई। ये आंकड़े मयूर विहार और बुराड़ी जैसे अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों से आए।

बारिश न होने का कारण: बादलों की कमजोरी

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने उस दिन हल्की बूंदाबांदी की भविष्यवाणी की थी — लेकिन वो भी अधूरी रह गई। दिल्ली के कई हिस्सों में बादल छाए रहे, लेकिन बारिश नहीं हुई। ये नहीं कि बादल नहीं थे — बल्कि वो बहुत पतले थे। जैसे कोई चाय का बर्तन बर्फ से भरा हो, लेकिन गर्मी न हो तो वो पिघलता नहीं।

आईआईटी कानपुर के डायरेक्टर मनिंदर अग्रवाल ने कहा, "हमने बादलों को उत्तेजित किया, लेकिन उनमें बूंद बनने के लिए पर्याप्त जलवाष्प नहीं था। फिर भी, बादलों में आयनों का फैलाव हुआ, जिससे धूल के कण भारी हो गए और नीचे गिरे।" ये वही तरीका है जिससे पहले भी बांग्लादेश और चीन ने प्रदूषण कम किया — बारिश के बिना।

क्या ये एक अस्थायी जादू है?

दिल्ली सरकार ने इसे एक नई जीत बताया। मंगलवार को AQI 294 था, बुधवार को वो घटकर 279 हो गया — 15 अंकों की गिरावट। ये छोटी सी बदलाव लग सकता है, लेकिन जब आप एक शहर जहां हर दिन 1000 से ज्यादा लोग सांस लेने में परेशान होते हैं, तो ये अंक जिंदगी बचा सकते हैं।

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये एक टेस्ट है, न कि समाधान। "हम क्लाउड सीडिंग को एक टूल के रूप में देख रहे हैं, न कि एक बचाव के रूप में," कहते हैं आईआईटी कानपुर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक। "अगर हम गाड़ियों को बंद कर दें, तो एक दिन में AQI 150 तक आ जाएगा।"

इतिहास और भविष्य: 2023 से शुरू हुआ ये प्रयास

ये पहली बार नहीं है। 2023 में, तब के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्र सरकार को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें कृत्रिम वर्षा के लिए अनुमति मांगी थी। उसके बाद आईआईटी कानपुर ने लैब में टेस्ट किए, फिर छोटे पैमाने पर ट्रायल किए। अब ये शहर के स्तर पर आया है।

अगला बड़ा मौका जनवरी-फरवरी 2026 में आएगा। तब तक, बादलों में नमी का स्तर बढ़ जाएगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस समय बारिश के साथ क्लाउड सीडिंग का संयोजन असली ताकत बन सकता है। लेकिन इसके लिए बारिश के लिए बादलों की आवश्यकता होगी — न कि सिर्फ बादल।

सरकार का दूसरा मोर्चा: सड़क, वाहन, अपशिष्ट

सरकार का दूसरा मोर्चा: सड़क, वाहन, अपशिष्ट

दिल्ली सरकार ने कहा है कि क्लाउड सीडिंग सिर्फ एक हिस्सा है। उनका दावा है कि वो तीन मोर्चों पर लड़ रहे हैं: सड़क सफाई, वाहन उत्सर्जन नियंत्रण और अपशिष्ट प्रबंधन। लेकिन ये सब क्या काम कर रहा है?

2024 में दिल्ली में 4.7 लाख से ज्यादा वाहनों को बंद किया गया था — लेकिन नए वाहनों की संख्या उससे भी ज्यादा थी। सड़कों पर धूल का आंकड़ा 2023 से 2025 तक 12% बढ़ा। अपशिष्ट जलाने का आंकड़ा भी अभी भी अपरिवर्तित है। तो क्या क्लाउड सीडिंग वास्तव में जीत है? या सिर्फ एक धुंधला चित्र, जिसमें लोगों को उम्मीद दिखाई जा रही है?

अगले कदम: जनवरी तक इंतजार

अगला बड़ा प्रयोग जनवरी 2026 में होगा। तब तक, दिल्ली के लोगों को और भी अधिक सांस लेने के लिए मास्क पहनने की आदत डालनी होगी। विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर जनवरी में बादलों में 25% नमी हो जाए, तो क्लाउड सीडिंग के साथ बारिश हो सकती है — और तब तक की गिरावट असली होगी।

इस बीच, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा, "हमने पहली बार ये तकनीक सफलतापूर्वक टेस्ट कर ली है। अब हम इसे रोजाना का हिस्सा बनाने की तैयारी कर रहे हैं।" लेकिन एक सवाल बाकी है — क्या ये तकनीक जनवरी में भी काम करेगी? या फिर एक और भावुक झूठ?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्लाउड सीडिंग से बारिश न होने पर भी प्रदूषण में कमी कैसे हुई?

क्लाउड सीडिंग में नमक और सिल्वर आयोडाइड के मिश्रण को बादलों में छोड़ा जाता है, जिससे धूल के कण भारी हो जाते हैं और नीचे गिर जाते हैं। यहां बारिश की जरूरत नहीं होती — बस बादलों में आयनों का फैलाव होना चाहिए। इसी कारण PM10 में 41.9% तक की कमी आई, भले ही बारिश न हुई।

क्लाउड सीडिंग का वातावरण पर क्या प्रभाव है?

वैज्ञानिकों के अनुसार, इस तकनीक के लिए इस्तेमाल होने वाले रसायन (जैसे सिल्वर आयोडाइड) बहुत कम मात्रा में होते हैं और पर्यावरण के लिए खतरनाक नहीं माने जाते। हालांकि, लंबे समय तक इसका असर अभी तक अध्ययन के बाहर है। इसलिए इसे अस्थायी उपाय के रूप में ही देखा जा रहा है।

क्या दिल्ली में अगली बारिश कब होगी?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, 30 अक्टूबर को दिल्ली-एनसीआर में हल्की बूंदाबांदी की संभावना थी, लेकिन वो नहीं हुई। अगली बारिश की संभावना नवंबर के अंत तक नहीं है। जनवरी-फरवरी 2026 में बादलों में नमी बढ़ने के बाद बारिश की उम्मीद है।

क्या क्लाउड सीडिंग भारत के अन्य शहरों में भी लागू होगी?

हां, आईआईटी कानपुर और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने बैंगलोर, आगरा और नागपुर के लिए भी इस तकनीक के लिए अनुमति देने की योजना बनाई है। लेकिन इसके लिए बादलों की नमी का स्तर जांचना होगा — न कि बस एक बार फ्लेयर छोड़ देना।

क्या ये तकनीक गर्मियों में भी काम कर सकती है?

नहीं। क्लाउड सीडिंग केवल उन बादलों पर काम करती है जिनमें नमी होती है। गर्मियों में दिल्ली में बादल बहुत कम होते हैं, और जो होते हैं, वो बहुत ऊंचे और सूखे होते हैं। इसलिए ये तकनीक सिर्फ शीतकाल में, विशेषकर अक्टूबर से फरवरी तक ही प्रभावी होगी।

क्या ये तकनीक सरकार का एक धोखा है?

ये धोखा नहीं, बल्कि एक अस्थायी समाधान है। वैज्ञानिकों ने इसे ट्रायल किया है और डेटा उपलब्ध है। लेकिन अगर इसे एक विकल्प के रूप में देखा जाए, तो ये जीवन बचा सकता है। असली समाधान तो वाहनों को कम करना, अपशिष्ट जलाना बंद करना और नीले बादलों को लौटाना है — न कि बादलों को बांधना।