चित्र गूगल बाबा से साभार |
नेह के दीपक बुझ रहे,
फिर से जला दें,
आओ एक गीत गा दें|
बढ़ रहा तम घनेरा,धूप में भी,
दीप बन जल उठें,तम मिटा दें,
आओ एक गीत गा दें|
दरकती दीवार विश्वास और प्रेम की अब,
स्नेह का थोडा मुलम्मा चढ़ा दें,
आओ एक गीत गा दें|
धर्म के नाम पर भी सियासत हो रही है,
आस्था का कोई दीप जला दें,
आओ एक गीत गा दें|
सम्बन्ध भी बनाने लगे,अर्थ की नीव पर,
अर्थ के भी अर्थ का भाव बता दें,
आओ एक गीत गा दें|
होने लगे जुदा माँ-बाप,पति-पत्नी सभी,
रिश्तों के संसार को समर्थ बना दें,
आओ एक गीत गा दें|
अब तो संस्कार सारे खोने लगे हैं "कीर्ति"
रामायण का सार सबको बता दें,
आओ एक गीत गा दें_
रचनाकार- डॉ. ए. कीर्तिवर्धन
दूरभाष- 08265821800
वाह
ReplyDeleteमन में ज्ञान के दीपक जलावे
ReplyDeleteबुझाते संस्कार में संस्कार की ज्योति जला दे.
SHAILESH KUMAR
abdhesh-shaileshkumar.blogspot.in
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति.
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