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Tuesday, July 10, 2012
कलवा का सलाम (कहानी)
रात के संतरी को फारिग कर उससे असला(हथियार) लिया ही था, कि सामने थाने कासफाई कर्मचारी कलवा झाड़ू लगाते दिखा. जैसे ही वह मेरे पास से गुजरा, उसने मुझे एकज़ोरदार सलाम मारा. जिसका मैंने समुचित उत्तर दिया. वह थाने में कई दिनोंबाद दिखा था. आज उसकी चुस्ती देखने लायक थी. उसका एक सहायक भी था, जिसेकलवा समय-समय पर हिदायत दे रहा था. पूरे थाने की साफ़-सफाई होने के बाद जबमैंनेनिरीक्षण किया, तो एक स्थान पर टूटे गमले के कुछ टुकड़े पड़े थे. जबकलवा दोबारा मेरे पास से गुज़रा, तो मैंने उसे उन टुकड़ों को उठाकर कूड़ेदानमें फैंकने को कहा. उसने कहा, कि वह कल उन्हें फैंक देगा. परन्तु कुछ समयबाद आकर उसने मुझे बताया कि उसने गमले के टुकड़े कूड़ेदान में फैंक दिए दिएथे. मुझे ख़ुशी हुई. उस दिन कलवा ने मुझे आते-जाते कई बार सलाम ठोका. मैंनेसोचा कि शायद वह मेरा बहुत अधिक सम्मान करता है. ड्यूटी से फारिग होने कासमय आया, तो कलवा भागा-भागा मेरे पास आया व मुझसे पूछा कि क्या मेरे पास 100रुपये खुलेहैं. मैंने हाँ में जवाब दिया तो उसने 100 रुपये की सख्त जरूरतबता उसे उधार देने की प्रार्थना की तथा दो-तीन दिनों में वापस लौटा देनेका आश्वासन दिया. मैंने वह तुच्छ सी रकम उसे उधार दे दी. दो-तीन दिन बीत गए, किन्तु मुझे उधार दिए गए रुपये वापस न मिले. कलवा मुझे सलाममारकर इधर या उधर खिसक जाता था. मैंने इंतज़ार करना बेहतर समझा. लगभग एकसप्ताह बीत गया, किन्तु कलवा ने उधार लौटाने की कोई कार्यवाही न की. आखिरकारआठवें दिन मैंने ही उसे टोक दिया, परन्तु उसने बहाना बनाकर बात टाल दी.कुछ दिन बाद मैंने उसे फिर टोका. अबकी बार उसने तनख्वाह मिलने पर उधार लौटानेको कहा. महीने की पहली तारीख आई और चली गयी पर कलवा ने उधार न लौटाया. एकदिन मैंने देखा कि वह एक सिपाही से कुछ बतिया रहा था. मैं धीमे-धीमे उन दोनोंके पास पहुँचा. तभी कलवा मुड़ा और मुझे सलाम मारकर मुस्कुराया व मेरे कुछकहने से पहले ही वहाँ से गायब हो गया. मैंने उस सिपाही को सलाह दी, कि कलवाको कुछ भी उधार देने से परहेज करे, तो उसने बताया कि उसने तो अभी-अभी कलवा कोरुपये उधार दे दिए थे. ये कार्यवाही कुछ दिन में दो-तीन पुलिसवालों के साथकलवा ने और दोहराई. अब मैंने निश्चय किया कि मैं अपने सभी पुलिसवालेसाथियों को कलवा की इस गंदी आदत के बारे में सूचित करूंगा. परन्तु बहुत देर हो चुकी थी, क्योंकि कलवा ने लगभग सभी पुलिसवालों को अपने जाल मेंफांस लिया था. जो साथी बचे थे, उन्हें कलवा के धोखे से बचाने के लिए मैंनेथाने के सूचना पट पर कलवा को रुपए उधार न देने का निवेदन लिखने का विचार कियातथा इसके बारे में चिट्ठा मुंशी को बतलाया. चिटठा मुंशी ने थानाध्यक्ष सेपूछकर यह काम करने को कहा तथाइसके लिए कुछ समय माँगा. थानाध्यक्षजी को थाने की व्यवस्थाओं से ही समय न मिला और यह कार्य भी पूरा न हो पाया. अब मैं कलवा नामक जीव का कोई दूसरा हल खोजने लगा. मैंने अपने कुछ पुलिसवालेसाथियों संग इस बारे में मंत्रणा की. सबने इसका हल खोजा. हम सभी ने मिलकरयह निर्णय लिया, कि कलवा की शिकायत थानाध्यक्ष से करेंगे. हम सभी इसके लिएठीक मौके की तलाश करने लगे. एक दिन बैरक में बैठा था, कि चिट्ठा मुंशी वहांआया औरसुबह की ब्रीफिंग लेने के लिए थानाध्यक्ष के कमरे में पहुँचने के लिएकहा. मैं ब्रीफिंग लेने के लिए चल दिया.धीरे-धीरे उस कमरे में काफी स्टाफ इकट्ठा हो गया. मैंने आज निश्चय कर लिया था,कि थानाध्यक्ष को कलवा की मक्कारी के बारे में सूचित करके ही रहूँगा. थानाध्यक्ष कीब्रीफिंग शुरू हुई. सभी को मुनासिब हिदायत देने के बाद अचानक कलवा का नामलेकर वह उसे गाली देने लगे. वह कलवा से बहुत अधिक नाराज़ लग रहे थे. उन्होंने बताया की पुलिस आयुक्त इसथाने का कभी भी निरीक्षण कर सकते हैं, परन्तु कलवा का कई दिनों से कोई अता-पतानहीं है. पूरा थाना गंदगी से भरा पड़ा है. हमें उनके द्वारा ही मालूम हुआकि कलवा उनसे भी थोड़ा-थोड़ा करके पूरे छः हज़ार रुपये उधार ले चुका था व रुपयेउधार लौटाने का नाम तक नहीं लिया था. अब सभी पुलिसवालों ने एक-एक करके कलवाद्वारा उन्हें छले जाने की कहानी कहनी शुरू कर दी. मैं खुश था, कि अकेला मैंही कलवा द्वारा मूर्ख नहीं बना था, बल्कि मेरे सभी साथी व हमारे सरदार यानि कि थानाध्यक्ष भी उसके सलाम के चंगुल में फँस चुके थे. एक उपनिरीक्षक जी ने थाने कीसफाई का उपाय सुझाया. उन्होंने कहा की उनके पास जो निजी नौकर है उससेही थाने की सफाई का काम लेकर उसकी भरपाई महकमे (विभाग) से करवाई जाए. थानाध्यक्षजी भी इस बात से सहमत हो गए. अंत में उन्होंने हम सभी को निर्देश दिया, कि जैसेही कलवा थाने की चारदीवारी में घुसने की कोशिश करे, उसका स्वागत डंडों सेकिया जाए. उपनिरीक्षक जी के नौकर ने कलवा का कार्यभार संभाल लिया है और मैंव मेरे सभी साथी कलवा के स्वागत के लिए अपने डंडों को तेल पिलाते रहते हैं.पर कलवा है कि आता ही नहीं.
4 comments:
शिवम् मिश्राJuly 10, 2012 11:08 PM
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सच्चा प्यार चाहिए या नानवेज जोक..... ड़ाल करें - ब्लॉग बुलेटिन
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सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghJuly 11, 2012 10:02 AM
शुक्रिया शिवम भाई...
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डॉ. जेन्नी शबनमJuly 10, 2012 11:11 PM
ये तो आपकी आपबीती है सुमित जी. कलवा का सलाम बड़ा मजेदार रहा. यूँ ऐसे कई कलवा मिलते हैं जो मुस्कुराकर सलाम ठोकते हैं और सलाम के बदले चुना लगा जाते हैं. वैसे ये कलवा तो पक्का उस्ताद निकला...
बहुत अच्छी कहानी, शुभकामनाएँ.
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सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghJuly 11, 2012 10:03 AM
शुक्रिया डॉ. जेन्नी शबनम जी...
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इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सच्चा प्यार चाहिए या नानवेज जोक..... ड़ाल करें - ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeleteशुक्रिया शिवम भाई...
Deleteये तो आपकी आपबीती है सुमित जी. कलवा का सलाम बड़ा मजेदार रहा. यूँ ऐसे कई कलवा मिलते हैं जो मुस्कुराकर सलाम ठोकते हैं और सलाम के बदले चुना लगा जाते हैं. वैसे ये कलवा तो पक्का उस्ताद निकला...
ReplyDeleteबहुत अच्छी कहानी, शुभकामनाएँ.
शुक्रिया डॉ. जेन्नी शबनम जी...
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