ये अंतहीन सफर !!! न जाने कौन है वो... जिसके लिए चमकता है... रात भर !!! कितनी सदियाँ बीत गयी हैं और अभी कितनी बीतेंगी यूँ ही... फलक पर !!! शायद कुछ तलाशता है... शायद कुछ ढूंढता है !!! या फिर... मिली है उसे सज़ा... किसी को रुसवा करने की... किसी से बेवफाई करने की... या फिर दे रहा है सबूत... अपनी वफ़ा का.... न जाने कब खत्म होगा चाँद का ये सफर.... ये अंतहीन सफर !!!!
रचनाकार: श्री रविश ‘रवि’
फरीदाबाद, हरियाणा