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सावधान! पुलिस मंच पर है

Saturday, April 21, 2012

हम स्कूल में इंसान बना रहे हैं या फिर जानवर?


    मारे समाज में अपराधों की फेहरिस्त लगातार लंबी हो रही है.अगर हम इस का कारण जानने की कोशिश  करेंगे तो आम तौर पर  बेरोजगारी,अशिक्षा , गरीबी,पिछड़ापन इस के मुख्य कारण नज़र आते हैं.परन्तु आज के समय में इन कारणों से हटकर भी कुछ अन्य कारण है जिसने हमारे समाज कि नीव को हिला दिया है और हमारे लिए एक समस्या का रूप ले चुके है.देश में किसी भी अपराध की  अधिकतम सज़ा उम्र क़ैद और फांसी निर्धारित है पर मैं जिन अपराधों के बारे में बात कर रही हूँ वो बच्चों से जुडे है और इन अपराधों की जगह स्कूल बन गए हैं....आज हम  स्कूल के छात्रों द्वारा अपने ही सहपाठी का क़त्ल करना ,अपने शिक्षकों के साथ अभद्रता,अपने शिक्षक का क़त्ल,छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से दुश्मनों जैसा बर्ताव करना आदि स्थितियां देख रहे है.आज सबसे ज्यादा स्कूलों में अपराध का ग्राफ ऊपर की ओर बढ़ रहा है.जिस स्थान को हम विद्या का मंदिर कहते है.वहाँ पर ज्ञान प्राप्ति के साथ आज हमारी नयी पीढ़ी आपराधिक गुण भी सीख रही है. क्या यह सही है?
                         आज हम स्कूल में बच्चों को सिगरेट ,शराब की लत ,अपने दोस्तों के 'एमएमएस' बनाते  देख रहे है. एक नामी स्कूल की घटना आजकल चैनलों की सुर्खी बनी हुई है. जिसमें एक नवमी कक्षा के छात्र ने अपनी शिक्षिका का क़त्ल कर दिया, क्योंकि उसकी शिक्षिका ने उसके माता-पिता को उसकी गलतियों से अवगत करने के लिए नोट घर भेज दिया था. इस बात से परेशान छात्र ने कक्षा में शिक्षिका को अकेला पाकर उसे चाकू से गोदकर मार डाला. इसी तरह के कुछ अपराध लगातार मीडिया में दिख रहे है. क्या हम इन के पीछे का सच जानने का प्रयास नहीं करना चाहिए? मेरे विचार में कुछ ऐसे  कारण है जो इन समस्याओं का मूल है मसलन एकल परिवार , कंप्यूटर, लैबटॉप,पामटॉप का बढ़ता चलन, इन्टरनेट का आसान प्रयोग, इन्टरनेट का मोबाईल पर उपलब्ध होना, टीवी  में आ रहे कार्यक्रम,मातापिता का वर्किंग होना, संयुक्त परिवार का विघटन.  आजकल के  एकल परिवारों में बच्चों के लिए माँ-बाप के पास समय नहीं होता इसलिए बच्चों को टीवी और कंप्यूटर के साथ वक्त बिताना पड़ता है. अब इनमे वो क्या देख रहे है और उनसे क्या सीख रहे है यह जान पाने की फुर्सतमाँ-बाप  को नहीं है.शायद यही से वे वो सब कुछ सीख रहे है जिसने उनके धैर्य, सहनशीलता, अपनत्व,मित्रता की भावना को धीरे धीरे खत्म कर  दिया है.यहाँ यह सोचने वाली बात है कि क्या हम इन स्कूलों में बढ़ रहे अपराधों को कम कर सकते है? इस के लिए हम कुछ कदम उठाने होगे जिनमे संयुक्त परिवारों का महत्व बढ़ाना, बच्चों को कंप्यूटर के प्रयोग की सीमा निर्धारित की जाये, समय सीमा भी निर्धारित की जाये, इन्टरनेट का प्रयोग भी आवश्यकता अनुसार ही हो.माँ बाप वर्किंग टाइम के साथ साथ बच्चों को भी समय दे, उनकी पढ़ाई और अन्य गतिविधियों पर भी नज़र रखें, पेरेंट्स मीटिंग में स्कूल पहुंचकर शिक्षकों से मिलकर पूरी जानकारी ले .बच्चों को नाना- नानी, दादा- दादी के साथ मित्रवत सम्बन्ध बनाने के लिए प्रेरित करें ताकि वे कभी भी खुद को अकेला ना महसूस करें. आपने मित्रों के प्रति प्रतिस्पर्धा की भावना ना होकर मित्रतापूर्ण बर्ताव ही हो अगर हम यह छोटे छोटे कदम उठाएंगे तो  बच्चों को वो सुरक्षित, खुशहाल, शांत वातावरण दे पाएंगे और  हमारे बच्चों में नयी उमंग और उत्साह के साथ छात्र जीवन को आगे बढ़ा सकेंगे.और अपने सुनहरे भविष्य की नयी इबारत लिखेंगे.    
***चित्र गूगल बाबा से साभार***                                                     
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