पनपती ही जाये उदासी ज़मीं पर
ये फैली है क्यूँ बदहवासी ज़मीं पर
यहाँ भाई का भाई दुश्मन हुआ है
सबब कुछ नहीं बस ज़रा सी ज़मीं पर
अगर फैंके खाना उन्हें देख जिनको
मय्यसर नहीं झूठा, बासी ज़मीं पर
खता तूने कैसी बसर कर दी जिससे
बरसता नहीं अब्र प्यासी ज़मीं पर
औरत को देवी बताते तो हो तुम
बना कर रखो घर की दासी ज़मीं पर
हुई रौशनी तेरे घर मैं ‘असर’ जब
उतर आयी बेटी दुआ सी ज़मीं पर
रचनाकार : प्रमोद शर्मा 'असर'
हौज़खास, नई दिल्ली
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