यदि होती नेता मै
सिंहासन पर बैठती
अगल बगल प्यादे
लंबी मोटर कार होती
तिजोरी भर धन होता
यहाँ कुछ वहाँ होता
षटरस व्यंजन खाती
गिनती एक न करती
देना तो दूर की बात
सब छीन ले आती
भूखे कितने भी भूखे
दो रोटी की थाली
बनवाती देती संग मे
चावल , कटोरी दाल की
बोनस कह कद्दू देती
उन्नति का ठेंगा
पड़े रहते सब नेता
जो बिचारे फिरते है
वोट मांगते रहते है
अंत मे मौन रहे साध
आँख मूँद रहे अगाध
प्यादे बोलते हैं
प्यादे ही करते है
निपट निखट्टू सुनते
मंत्री जो संतरी कहते
चुपचाप की राजनीति
समझ न आती रीति
ऐसा ही करती
जो नेता होती ।
अन्नपूर्णा बाजपेई
कानपुर, उ. प्र.