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                                            उत्सवधर्मिता ऐसी की चार दिन बाद भी क्रिसमस और नए साल की थकान नहीं उतर सकी है इसलिए सरकारी दफ्तरों से लेकर बाज़ार तक चार दिन से बंद हैं. सड़कों/गलियों/मोहल्लों में क्रिसमस की छाप अब तक देखी जा सकती है.पूरा शहर रोशनी से नहाया हुआ है. जगह जगह मौजूद विशालकाय सांता,क्रिसमस ट्री और स्नो मेन, बहुरंगी लाइट से शराबोर चर्च और केक की मनमोहक खुशबू में डूबा पूरा शहर अब तक उनींदा सा है. लोग बस सुबह शाम चर्च में प्रार्थना और सेवा के लिए सज-धजकर निकलते हैं और बाकी समय पार्कों में समय काटते हैं. शहर में न तो कोई सिनेमाघर है और न ही कोई नामी मॉल,फिर भी मस्ती से समय काटते लोग.
                                          
                                          
                                            फैशन का यह हाल है कि शायद समूचे पूर्वोत्तर में आइज़ोल का कोई मुकाबला नहीं है. साड़ी तो दूर सलवार कमीज में भी कोई महिला दिख जाए तो आपकी किस्मत वरना घुटनों तक चढ़े शानदार बूट,जींस,स्कर्ट और टॉप पहने लड़कियां और जींस-टीशर्ट में कसे लड़के यहाँ की पहचान हैं. ‘जियो और जीने दो’ को चरितार्थ करते हाथों में हाथ डाले बेलौस घूमते जोड़े आपस में ही खोये रहते हैं. मैदानी इलाकों के उलट न तो वे किसी को घूरते हैं और न ही उन्हें कोई घूरता है. यदि कोई मुड़कर देखते नज़र आ रहा है तो आप सीधे जाकर हिंदी में बात कर सकते हैं क्योंकि शर्तियाँ वह किसी मैदानी इलाक़े से ही होगा. हाँ पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तरह पान यहाँ की भी कमजोरी है.  
                                          
                                          
                                            लगभग 175 वर्ग किलोमीटर में बसा यह शहर तक़रीबन 4 हजार फुट की ऊंचाई पर बसा है इसलिए तापमान आमतौर पर 10 से 30 डिग्री सेल्शियस के बीच बना रहता है. पूर्वोत्तर की पहचान बारिश यहाँ भी जमकर होती है. पत्रकारों के लिए तो यह इस लिहाज से स्वर्ग है कि महज तीन से चार किलोमीटर के दायरे में पूरी रिपोर्टिंग हो जाती है. मसलन राजभवन, मिज़ोरम विधानसभा, राज्य सरकार का सचिवालय, आकाशवाणी, पीआईबी और राज्य का जनसंपर्क कार्यालय जैसे राज्य और केंद्र सरकार के तमाम महत्वपूर्ण कार्यालय आसपास ही हैं. अगर आप पहाडी सड़कों के आदी हैं तो पैदल ही दिन में दो चक्कर लगा कर आ सकते हैं. वैसे भी यहाँ न तो समाचारों के लिए दूसरे प्रदेशों की राजधानियों की तरह मारामारी है और न ही उतनी गहमागहमी. पड़ोसी राज्य मणिपुर, नागालैंड और असम की तुलना में तो यह बिलकुल शांत हैं. 
                                          
                                          
                                            पहाड़ पर दूर दूर तक फैले रंग-बिरंगे और आकर्षक घर बरबस ही अपनी और ध्यान खींच लेते हैं. खासतौर पर हम जैसे मैदानी इलाकों से आने वाले लोगों के लिए तो ये घर भी किसी आकर्षण से कम नहीं हैं. वैसे तो आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में इसतरह के घर आम बात है लेकिन पूर्वोत्तर और फिर आइज़ोल में तो यहाँ की विरासत की छाप खुलकर नज़र आती है. रात में यह शहर ऐसा दिखाई देता है जैसे किसी ने पहाड़ पर रंग-बिरंगे सितारे बिखेर दिए हों. वक्त मिले तो एक बार आइज़ोल जरुर आइये क्योंकि महज तीन दिन में आप अपने देश में मौजूद इस ‘विदेशी शहर’ का लुत्फ़ उठा सकते हैं. वैसे यहाँ आने के लिए एक तरह के पासपोर्ट अर्थात ‘इनर लाइन परमिट’ की जरुरत पड़ती है इसलिए भी यहाँ की यात्रा और भी रोमांचक लगने लगती है. 
                                          


