Saturday, October 13, 2012

कविता: कवि सप्लाई केन्द्र


चित्र गूगल से साभार
       जब बिजनिस में
इस बार भी हुआ घाटा
तो हमारे-मनी-मान्डिड बाप ने
हमे डांटा I
बोला-
दो साल में
दस ट्रेड बदल चुके हो
जितनी जमा पूँजी थी
सब निगल चुके हो I
यही हाल रहा-
तो बेटा! भूखे मरोगे
क्या इसी तरह से
हमारा नाम रोशन करोगे?
अपने बाप की बात सुनकर-
हमें भी बहुत गुस्सा आया
कई दिन तक-
खाना ही नहीं खाया I
अचानक एक दिन-
हमारे कबाडी माईण्ड में
एक धांसू आईडिया आया
जिसके अनुसार-
हमने अपने मॊहल्ले में
कवि-सप्लाई केन्द्रखुलवाया.
एक लम्बा-चौड़ा बोर्ड लगवाया
जिसपर लिखवाया-
आईये!
पड़ौसियों को भी साथ लाईये
जन्म-दिन हो या शादी
बडे धूम-धाम से मनाईये
जहां तक-
विशेष प्रकार के
कार्यक्रमों का संबंध है
उसके लिए-
कवियित्रियों का भी प्रबंध है 
एक दिन-
एक सज्जन
हमारे केन्द्र पर आये
हम चाहते हुए मुस्कराये I
हाथ जोडकर पूछा-
सेवा बताईये?
वो बोले-
कोई अच्छा-सा कवि दिखाईये I
हमने-
एक कार्टून नुमा कवि की ओर
इशारा करते हुए कहा-
इसे ले जाईये I
बेचारे की प्रेमिका ने
इसे धोखा दिया है
इसलिए इसने
वियोग-रस में लिखता शुरू किया है I
अपने मन का गुब्बार
कविताओं में निकाल रहा है I
आज का हताश-युवा वर्ग
इसे ही-
अपना पथ-प्रदर्शक मान रहा है I
मय के सरुर में डूबकर
ऎसी कविताएँ लिखता है
कि-हर रोज-
कोई कोई निराश प्रेमी
इसकी कविताएँ सुनकर-
आत्महत्या करता है I
ऒर देखिए साहब
हमारे यहाँ  कवियों की
कई वॆराईटी हैं
यह जो-
कोट ऒर पेंट पहने बैठा है
आधुनिक कविताएँ लिखता है I
शब्दों प्रतीकों का
ऎसा माया-जाल बुनेगा
आम श्रोता की तो बात ही छोडिये
बुद्धिजीवी श्रोता भी
अर्थ ढूंढने के लिए
अपना सिर धुनेगा I
ऒर यह जो-
नेता टाईप दीखता है
राजनॆतिक कवितायें लिखता है I
चुनाव के दिनों में
इसका रेट काफी बढ जाता है
वॆसे भी-
इसकी डिमाण्ड में-
मंदा कम ही आता है I
पक्ष हो या विपक्ष
दोनों ही इसे बुलाते हैं
कविता के नाम पर-
खूब नारे लगवाते हैं I
यह देखिये-
आज-कल की सबसे फेमस वॆरायटी
अरे बाबूजी!
इसकी रोनी सूरत पर मत जाईये
मंच पर जाते ही-
ऎसे करतब दिखायेगा
बड़े से बड़ा नट भी
इससे मात खायेगा I
कविता सुना रहा हॆ या चुटकुला
आप समझ नहीं पायेंगें
सिर्फ ठहाके लगायेंगें I
पट्ठा!
नायिका का नख-शिख वर्णन
कुछ इस तरह से करेगा
कि कामसूत्र का वात्सायन
शर्म से डूब मरेगा I
इसकी भी डिमाण्ड ज्यादा है
कम सप्लाई है
इसलिए रेट बडा हाई है I
रेडियो दूरदर्शन वाले भी
इसे ही बुलाते हैं
सरकारी जलसों में भी
ये ही जाते हैं I
कुछ तथाकथित साहित्यिक कवि
इनकी पोपुलर्टी देखकर घबरा रहे हैं
इनपर-
अपसंस्कृति  फैलाने का आरोप लगा रहे हैं I
कहते हैं -
इनकी कविताओं में-
साहित्यिकता कलाका अभाव है
इन्हें सिर्फ-
तुकबंदी करने का चाव है I
ये मनोरंजन के नाम पर
कुसंस्कार सॊंप रहे हॆं
मानवता के सीने में
चाकू घोंप रहे हैं I
खॆर साहब! छोडिए
फिजूल की बातों से
मुंह मोडिये
यह इन कवियों का
आपसी मामला हॆ
अपने आप सुलट लेंगें  I
आप जरा उधर देखिए-
वह जो-
बॆशाखियों के सहारे खडा है
उसपर-
देशभक्ति का भूत चढ़ा है I
लोगों को जोड़ते-जोड़ते
खुद टूट गया है
लेकिन मेरा यार
अभी तक जिद पर अड़ा है
26 जनवरी या 15 अगस्त पर ही
इसके लिए कोई ग्राहक आता है
वॆसे तो यह सारे साल
मुफ्त की ही खाता है I
अच्छा!
आप जरा दुकान के अंदर आईये
कवियों की एक स्पेशल क्वालिटी दिखाता हूँ
आपको एक-
क्रांतिकारी कवि से मिलवाता हूँ
इसके खुले रुप से-
कविता पढने पर प्रतिबंध है
क्योंकि इसकी कविताओं में-
मानवता की सबसे ज्यादा गंध है I
सुना हॆ-
यह शोषण के विरुद्ध
आवाज उठाता है
अपनी कविताओं के जरिये-
लोगों को जगाता है
लेकिन-
बड़े-बड़े सेठ ऒर नेतागण
इसे देशद्रोही बताते है
इसपर-
हमले भी करवाते हैं I
इसकी हिम्मत तो देखिए साहब!
सिर से कफ़न बाँधकर-
आगे बढ़ रहा है
अपनी ही तरह की
फॊज तॆयार कर रहा है I
कभी-कभी-
मई दिवस पर ही-
इसके लिए बुलावा आता है
और आप विश्वास नहीं करेंगें
यह मजदूर ऒर किसानों को
बहुत सस्ते रेट में-
कविता सुनाता है I
अब तक-हमने आपको
कवियों की कई किस्में दिखाई हैं
आपको कॊन-सी पसंद आई है I
भाई साहब!
क्या करें
हम तो व्यापारी है
तरह तरह के कवि  रखना
हमारी लाचारी है
यहाँ हर तरह के ग्राहक आते हैं
अपनी पसंद का कवि ले जाते हैं I

आप भी ले जाईये
हमने तो-धंधे का
एक ही वसूल बना रखा है
जिसमें दो पॆसे मिल जायें
वही कवि अच्छा है  I
*************


9 comments:

  1. Kailash SharmaOctober 13, 2012 1:36 PM

    लाज़वाब..बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...

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    Replies
    1. विनोद पाराशरOctober 14, 2012 8:03 AM

      धन्यवाद शर्मा जी,
      रचना आपको पसंद आई.

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    Reply
  • Ratan singh shekhawatOctober 13, 2012 7:03 PM

    बहुत ही लाजबाब| ऐसी रचनाएँ बहुत कम पढने को मिलती है| आभार कवि महोदय का व प्रस्तुत करने वालों का|

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    Replies
    1. विनोद पाराशरOctober 14, 2012 8:07 AM

      रतन सिंह जी,
      कविता पर उत्साह-वर्धक टिप्पणी के लिए आभार.यह कविता लगभग 26 वर्ष पहले लिखी थी.

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  • Amar TakOctober 14, 2012 3:47 AM

    behad sunder andaz me likhi bhawnaon ko umda dhang se prastut karti ek behad shandar rachna,sunder likhne ke liye rachnakar mhoday ko badhai.

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    Replies
    1. विनोद पाराशरOctober 14, 2012 8:08 AM

      धन्यवाद,अमर जी!

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  • Madan Mohan SaxenaOctober 15, 2012 11:35 AM

    This comment has been removed by the author.

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  • विनोद पाराशरOctober 17, 2012 7:53 AM

    आपका भी धन्यवाद!मदन मोहन जी.

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  • Madan Mohan SaxenaDecember 24, 2012 2:20 PM

    वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति .

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