विषय: भ्रष्टाचार
हक समझा था जिसको,
असल में थी वो चोरी,
जिसको खूबी समझा था,
वो निकली कमजोरी।
प्यास बुझाने जहां चले,
मटका मिला वहां खाली,
जहां इनाम की आशा थी,
वहा मिली है गाली।
मंथरा-शकुनि जैसों का,
आज है इज्जत और नाम,
हरिशचन्द्र को झूठा कहकर
करते है बदनाम।
करते है बदनाम।
प्रशंसा-पत्र पाता यहां
थामें जो खुशामद की डोर,
हर मेहनत करने वाला,
कहलाया है कामचोर।
मंत्री और अधिकारी के चहेते,
चुने गए रिश्वत और गुजारिश से,
परीक्षा में अव्वल था जो,
रह गया बिना सिफारिश के।
दंगों को अंजाम दे जो,
वो अहिंसावादी कहलाते हैं,
और बापू आसाराम को ये
बच्चों को हत्यारा बतलाते हैं।
त्यागी दानवीर कहलाते हमेशा,
जिसने परायी पोटली झपटी है,
संत-महात्मा को कहते,
ये छली, पाखण्डी, कपटी है।
दो आसन जानता है जो,
उसका योगाचार्य नाम है,
जीवन भर योग सिखाने वाला,
श्री ईश्वर आर्य गुमनाम है।
लड़का-लड़की एक समान है,
जो डाॅक्टर बतलाता था ये बात,
उसी ने करवाया या कल,
शरीक-ए-हयात का गर्भपात।
दहेज एक अभिषाप विषय पर बोलकर,
जिसने पाया प्रथम पुरस्कार,
उसी ने अपनी शादी में,
दस लाख कैश किया स्वीकार।
जो दिखता वो होता नहीं
जो होता वो दिख पाता नहीं
दीनू लिखता जमाने को देखकर
यूं ही लिख पाता नहीं ।
रचनाकार - श्री दिनेश जांगड़ा
हिसार, हरियाणा
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