विषय - कन्या भ्रूण हत्या
फूल -सी बच्ची गर्भ की,कुचल रहे क्यों आज ?
क्यों बेटे की चाह में,दानव बना समाज ?
बेटी हीं हैं देवियाँ ,दुर्गा की अवतार |
यहीं करेंगी फिर यहाँ ,दनुजों का संहार |।
तू भी तो बेटी रही ,मिला तुझे सम्मान |
फिर अपनी हीं कोंख का ,क्यों करती अपमान ।।
मंदिर में देवी पूजै, बगुला भगत समाज |
बेटी के दुश्मन बने ,घर वाले हीं आज |।
दानव से मानव बनो , हरो मनुज की पीर |
भ्रूण हत्या को बंद कर ,बहा प्रेम का नीर |
रचनाकार - डॉ. मनोज कुमार सिंह
आदमपुर [सिवान], बिहार |