गज़ल
हम भी जिद पर आ गए हैं ,उसे आजमाने की
देखते हैं बेरुखी कितनी,उसकी ये दिल झेल पाता है
दुनिया ही बसा ली थी,उसके ख्यालों को लेकर
पर खैरात में सच्ची मुहब्बत भला कोई पाता है
बिखर ही जायेगा एक दिन दर्द और तन्हाई से
खेल एक तरफ़ा, कौन कब तक खेल पाता है
अपनी हर छोटी बड़ी ख़ुशी उससे जोड़ ली थी
अब देखें खोया वजूद मेरा कैसे संभल पाता है
अब उस मसरूफ से दूर जाना ही मुनासिब होगा
कीमती कितना था,बिछड़ने पर पता लग पाता है
दुआएं की कितनी,कितने किये सजदे ,वो न मिला
ख़ुदा भी मेरी किस्मत के आगे खुद को मजबूर पाता है
उसके ज़िन्दगी में न होने से कैसे जी पायेंगे हम
क्या कहें,देखें जिस्म बिना रूह कैसे रह पाता है
रचनाकार: सुश्री इरा टाक
जयपुर, राजस्थान