Friday, February 1, 2013

शोभना फेसबुक रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 4

नारी तुम स्वतंत्र हो

सुबह से शाम तक 
चक्कर घिन्नी सी घूमती 
 कभी आँगन से गुसल तक  
 कभी चौके से  देहरी तक 
 कभी हाथ में  जुराब लिए 
 कभी आटे  में हाथ  सने 

 कभी चाय की पुकार 
 कभी कमरे की बुहार 
कभी बस की  रफ़्तार 
 बॉस के तानो की बौछार 
 सुबह से शाम तक 
चक्कर घिन्नी सी घूमती 

 कभी माँ का दायरा 
 कभी पति का हक 
 कभी बहु का कर्तव्य 
 कभी दफ्तर का लक 
 सुबह से शाम तक 
चक्कर घिन्नी सी घूमती 


 नारी !!!तुम कितनी भी
 आधुनिक हो जाओ 

 क्या तुम स्वतंत्र हो ?
 अपने ही बनाये 
दायरों से !
 संस्कारों से !!
व्यवहारों से !!
 लोकाचारो से !!

रचनाकार: सुश्री नीलिमा शर्मा

देहरादून, उत्तराखंड 

22 comments:

  1. शालिनी कौशिकFebruary 1, 2013 at 8:24 PM

    बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्तिनसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले
    आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. NeelimaFebruary 1, 2013 at 10:52 PM

      बहुत बहुत शुक्रिया Shalini jee

      Delete
    Reply
  • expressionFebruary 1, 2013 at 10:55 PM

    बहुत बहुत बधाई नीलिमा जी....
    बहुत सुन्दर रचना..

    अनु

    ReplyDelete
    Replies
    1. NeelimaFebruary 1, 2013 at 10:59 PM

      हार्दिक आभार अनु जी

      Delete
    Reply
  • Pragya BahugunaFebruary 1, 2013 at 11:12 PM

    रचनात्मकता से भरी अंतःकरण को छू लेने वाली
    बेहद संजीदा कृति... बधाई नीलिमा जी |

    सभी लेखकों एवं ब्लॉग के संपादक को हार्दिक शुभकामनाएं|

    ReplyDelete
    Replies
    1. NeelimaFebruary 1, 2013 at 11:18 PM

      शुक्रिया प्रज्ञा बहुगुणा

      Delete
    Reply
  • अरुणाFebruary 2, 2013 at 9:58 AM

    बधाई नीलिमा जी , बहुत खूब लिखा आपने :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. NeelimaFebruary 2, 2013 at 11:24 AM

      बहुत बहुत धन्यवाद अरुणा जी

      Delete
    Reply
  • Shanti PurohitFebruary 2, 2013 at 10:14 AM

    bahut achchi rachna hai ...neelemaji

    ReplyDelete
    Replies
    1. NeelimaFebruary 2, 2013 at 11:25 AM

      सराहनीय शब्दों के लिय आभार आपका शांति जी

      Delete
    Reply
  • KrRahulFebruary 2, 2013 at 10:27 AM

    Wah, bahut sundar rachna. Aur samsamayik bhi...

    ReplyDelete
    Replies
    1. NeelimaFebruary 2, 2013 at 11:25 AM

      बहुत बहुत धन्यवाद राहुल

      Delete
    Reply
  • vandana guptaFebruary 2, 2013 at 11:07 AM

    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (2-2-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
    Replies
    1. NeelimaFebruary 2, 2013 at 11:26 AM

      मेरी रचना को आपने मान दिया उसके लिए बहुत बहुत आभार आपका वंदना जी

      Delete
    Reply
  • Meena PathakFebruary 2, 2013 at 3:36 PM

    बहुत सुन्दर रचना सखी .. बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. NeelimaFebruary 2, 2013 at 3:44 PM

      शुक्रिया मीना .

      Delete
    2. mukeshFebruary 2, 2013 at 4:29 PM

      umdaah....

      Delete
    3. NeelimaFebruary 2, 2013 at 4:34 PM

      shukriya Mukesh ji

      Delete
    Reply
  • RahulFebruary 2, 2013 at 5:20 PM

    सही कहा आपने कि ये दायरे नारी के ही बनाये हुए हैं। इस लिए "स्वतंत्रता" कहना एक मायने में उचित नहीं होगा क्योंकि परिवार पोषण और आने वाली पीढ़ी को नैतिकता और सदाचार का अभिप्राय समझाने में जितना नारी का योगदान है और ये सब उसके अस्तित्व से इस तरह जुड़ा हुआ है कि अपने इन जिम्मेदारियों को बोझ समझना या इनसे स्वतंत्रता पाने की चेष्टा नारी या इस सारे समाज के लिए अकल्पनीय है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. NeelimaFebruary 2, 2013 at 6:16 PM

      shukriya Rahul jee

      Delete
    Reply
  • mystic mohinyFebruary 2, 2013 at 10:23 PM

    This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
    Replies
    1. NeelimaFebruary 3, 2013 at 12:38 PM

      kya hua mystic mohiny jee

      Delete
    Reply
Add comment
Load more...

यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!