Friday, February 15, 2013

शोभना फेसबुक रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 7

क्या तुम लौटा पाओगे?

 जुर्म जो ये संगीन किये हैँ,
क्या उनको भर पाओगे?
जो कुछ तुमने छीन लिया है,
क्या तुम लौटा पाओगे?
थकी हुई यह सूखी धरती,
जल की दो बूँदोँ को तरसती,
उसके सीने की फुहार तुम,
उसको लौटा पाओगे?
उङते विहग शिकार बन गए,
मानवता पर वार बन गए,
कर्णप्रिय वो चहचाहटेँ,
क्या तुम लौटा पाओगे?
रंग-बिरंगी पुष्प लताएँ,
सावन की ठंडी बरखाएँ,
सौँधी माटी की सुगंध वो,
क्या तुम लौटा पाओगे?
वन्य पशु विलुप्त हो गए,
जो थे वो भी सुप्त हो गए,
बाघोँ, सिँहोँ की दहाङ वो,
क्या तुम लौटा पाओगे?
धरती माँ की अथाह हरीतिमा,
चिर यौवन की भाव भंगिमा,
सहती अत्याचार तुम्हारे,
क्या तुम लौटा पाओगे?
झेल रहीँ त्रासदी नदियाँ,
बहते-बहते बीती सदियाँ,
उन का साफ़ स्वच्छ शीतल जल,
क्या तुम लौटा पाओगे?
पेङ जो तुमने काट दिये हैँ,
हरे सूखे सब छाँट दिये हैँ,
आतंकित पेङोँ का गौरव,
क्या तुम लौटा पाओगे?
पशु-पक्षी को तुम खाते हो,
फिर भी भूखे रह जाते हो,
प्राण जो तुमने छीन लिये हैँ,
क्या तुम लौटा पाओगे?
खोद चले हिमालय सारा,
मिला है जो दैवीय सहारा,
विस्मित हो कर धरती पूँछे,
"क्या तुम लौटा पाओगे?"

रचनाकार: सुश्री स्वरदा सक्सेना
 
 
बुलन्दशहर , उत्तर प्रदेश


8 comments:

  1. Alka GuptaFebruary 15, 2013 at 1:41 PM

    शानदार मार्मिक यथार्थ अभिव्यक्ति ............

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  2. धीरेन्द्र सिंह भदौरियाFebruary 15, 2013 at 1:54 PM

    बहुत ही उम्दा सार्थक रचना ,,,

    recent post: बसंती रंग छा गया

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  3. Shanti PurohitFebruary 15, 2013 at 3:41 PM

    Umda rachna

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  4. Swarda SaxenaFebruary 15, 2013 at 5:45 PM

    ments:

    Alka Gupta ji, धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ji aur Shanti Purohit ji apka abhaar... ki aapne pdha or saraaha.

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  5. Swarda SaxenaFebruary 15, 2013 at 5:47 PM

    This comment has been removed by the author.

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  6. Rajendra KumarFebruary 15, 2013 at 7:32 PM

    बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!बेहतरीन अभिव्यक्ति.सादर नमन ।।

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  7. sushma 'आहुति'February 16, 2013 at 9:10 AM

    बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......

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  8. rajeev goelFebruary 16, 2013 at 5:38 PM

    This comment has been removed by the author.

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