पत्तियों का डाली से छूटना आया
पतझर में जैसे वृक्ष को रोना आया
परिंदों का था ये पत्तियों का पर्दा
छाँव छूटी और तपिश गहराया |
पत्तियां भी होती बेटियों की तरह
वृक्ष / घर को ये कर जाती सूना
रूठ कर करती है जिद्दी फरमाइशें
पिता /वृक्ष कर देते पूरी फरमाइशें |
नई कोपलें फूटने पर कोयल गाती
सूनेपन में फिर से खुशिया छा जाती
पूजे जाते हैं आज भी वृक्ष और बेटियां
वृक्ष पर ना करो वार ,ना करो भ्रूण -हत्या |
बेटियां रो - रोकर कह रहीं ईश्वर से
कब ख़त्म होंगे भ्रूण हत्याओं के पाप
पर्यावरण / रिश्ते हो जायेंगे जब ख़त्म
दुनिया करने लगेगी तब फिर संताप |
बेटियां और वृक्ष से ही तो कल है
इनसे ही जीवन जीने का एक - एक पल है
संकल्प लेना होगा इन्हें बचाने का आज
दुनिया बचाने का होगा ये ही एक राज |
रचनाकार: संजय वर्मा "दृष्टि "
संपर्क: १ २ ५, शहीद भगत सिंह मार्ग
मनावर, जिला- धार ( म. प्र. )
चित्र गूगल से साभार