Saturday, April 21, 2012

कविता: तलवार





''राजपूत'' की आन-बाण-शान का प्रतीक है तलवार,
जीने का नया ढंग नया अंदाज सिखाती है ये तलवार,

सुंदर सजी हुई शानदार म्यान के अंदर रहकर भी ,
''वीरों'' के संग अर्धांगिनी सी विराजती है तलवार 


''राजपूत'' की अर्धांगिनी बनने का है गर्व इसे प्राप्त,

तभी तो राजपूत बड़े प्यार से रखते हैं अपने दिल के पास,

वक्त पड़ने पर ये उसका साथ बखूबी निभाती है,
एक वार में ही दुश्मन का काम तमाम कर जाती है,

ऐसे ही नहीं राजपूत वीरों ने इसे दिल से है अपनाया,
अंगूठे का रक्त पिलाकर मस्तक पे तिलक कराया,
जब तक है म्यान के अंदर है शांत दिखाई देती,
निकलती है जब बाहर रक्त पिए बिना बिना न रहती

तलवार की शोभा किसी ऐरे गैरे के हाथ में नहीं होती,
ये तो शान है राजपूत की, शोभा भी उन्ही से होती
याद रखो,अपनी पीढ़ियों को इसे भुलाने नहीं देना है,
तलवार और कलम के सहारे,,राजपूताना वापिस लाना है

''जय राजपूत--जय राजपूताना''
''मधु --अमित सिंह ''

2 comments:

  1. संगीता तोमर Sangeeta TomarApril 21, 2012 8:32 PM

    सुंदर कविता.

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  2. Kunwar Amit Singh (कुंवर अमित सिंह मुंढाड)April 21, 2012 10:00 PM

    शुक्रिया संगीता

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