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एंटी रोड रेज एंथम: गुस्सा छोड़

Saturday, June 15, 2013

व्यंग्य: अचार

पसे एक बात पूछनी थी. यही कि आपको कौन सा अचार पसंद है. अब ये मत कहिएगा, कि आप अचार खाते ही नहीं हैं. हम सब में शायद ही कोई ऐसा हो जिसने अचार का स्वाद न लिया हो. विभिन्न मसालों का प्रयोग कर तीखा और चटपटा अचार हर भारतीय के घर की जरूरत है. क्यों जीभ से लार टपकने लगी न? भारत के हर प्रदेश का अचार बनाने का अलग-अलग तरीका है, लेकिन मजा सबमें बरोबर होता है. वैसे इन दिनों तो पारंपरिक अचारों से अलग प्रकार के अचारों का बोल-बाला है. आप सभी उनसे भली-भांति परिचित होंगे. अनुमान तो लगाइए कि मैं किन विशेष अचारों की बात कर रहा हूँ. चलिए छोड़िये आपका जानबूझ कर बुद्धू बनना मुझे बहुत बुरा लगता है. खैर लगता है कि मुझे ही उन अचारों के विषय में बताना पड़ेगा. देखिए इन दिनों पारंपरिक अचारों से हटकर कुछ अचार हैं, जिन्हें देशवासी बड़े मजे से उपयोग कर रहे हैं. पहला अचार है भ्रष्टाचार. इस अचार को खाने वाले दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं. इस अचार को प्रयोग करने का सबका अलग-अलग ढंग है. यह अचार शरीर में चुस्ती-फुर्ती भर देता हैं और इसे प्रयोग करने वाला निरंतर इस अचार को अधिकाधिक खाने का जुगाड़ लगाता रहता है. यह कलियुग का सबसे विशेष अचार है. इस अचार को लगभग हर व्यक्ति खाता है, लेकिन दावा यह करता है, कि उसने इस अचार का कभी सेवन किया ही नहीं. जो जितना पहुँचा हुआ और सक्षम होता है वह इस अचार का सेवन अपनी हैसियत के अनुसार करता है. बड़े से लेकर छोटे तक सभी इसे अधिक मात्रा में लेना चाहते हैं, लेकिन उन्हें नसीब होता है अपनी औकात के अनुसार ही. एक और अचार है व्यभिचार. यह अचार कभी अकेले नहीं खाया जाता. इसे इस अचार के शौक़ीन नर और नारी मिलजुल कर मजे से खाते हैं. हालाँकि इसे खाने वाले इसे प्रेमाचार कहते हैं, लेकिन असल में ऐसा है नहीं. व्यभिचार का सेवन करने वाले प्रेमाचार की खुशफहमी में जीते हुए अपना जीवन काटते हैं. मजे की बात ये है कि जो भी व्यभिचार का सेवन करता है वह साथ ही साथ मुफ्त में भ्रष्टाचार का भी सेवन कर लेता है, क्योंकि यह भी भ्रष्टाचार का ही एक रूप. इसका स्वाद लेने वाले देश में जगह-जगह बिखरे हुए हैं. विशेषरूप से कला और साहित्य के क्षेत्र में इस अचार का सेवन बड़े चाव से किया जाता है. अपने-अपने क्षेत्र में जल्द से जल्द नाम कमाने की प्रबल इच्छा इस अचार की ओर आकर्षित करती है. इसका अर्थ यह नहीं है कि सिर्फ कला और साहित्य के क्षेत्र में ही इस अचार को खाने वाले हों. जहाँ भी प्रतिस्पर्धा होती है, तो दूसरे को पछाड़कर आगे बढ़ने के लिए इस अचार का सेवन करना अवश्यंभावी हो जाता है. इस अचार के सेवन से कुछ पल के लिए बूढ़े भी युवा हो उठते हैं. इसका साइड इफेक्ट केवल इतना है, कि इसका सेवन करने वाले या तो सार्वजनिक रूप पिट-पिटकर इज्ज़त को प्राप्त करते हैं या फिर अपने जीवनसाथी या पारिवारिक सदस्यों द्वारा झाड़ू, डंडो अथवा जूते-चप्पलों से धुनकर असीम प्रेम को प्राप्त करते हैं. तीसरा अचार है अत्याचार. इस अचार को शायद ही कोई खाना चाहता हो. इसे जबरन खिलाया जाता है. अपने देश का मैंगो मैन बोले तो आम आदमी इस अचार को मजबूरन समय-समय पर खाता रहता है. दूसरे शब्दों में कहें तो उसे यह अचार जबरन खिलवाया जाता है. इस अचार के बल पर ही इस देश में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक सत्ताधारियों ने अपनी सत्ता को सुरक्षित रखा. जब-जब इस देश का आम आदमी जागा, तब-तब उसे यह अचार खिला दिया गया और वह आलस में आकर फिर से सो गया. अब आप पूछेंगे कि मुझे इन तीन अचारों में कौन सा अचार अच्छा लगता है, तो आपकी आशाओं पर पानी फेरते हुए मुझे बड़ा दुःख हो रहा है, कि मुझे इन तीनों अचारों में से कोई सा भी अचार नहीं भाता है. भ्रष्टाचार और व्यभिचार नाम के अचारों का सेवन करने का सौभाग्य मुझ बदनसीब को कभी मिला नहीं है और न ही यह सौभाग्य लेने का इच्छुक ही हूँ. बाकी रहा अत्याचार नामक अचार, तो यह अचार तो समय-समय पर मजबूरन खाना ही पड़ जाता है, क्योंकि मैं भी उस मैंगो मैन अर्थात आम आदमी में से एक जो ठहरा. वैसे आप यह बताने का कष्ट करेंगे, कि आपको इन तीनों में कौन सा अचार भाता है?

सुमित प्रताप सिंह 
इटावा, नई दिल्ली 
चित्र गूगल बाबा से साभार