व्यंग्य: निरीक्षण
जब भी मैं बाज़ार जाता तो मेरी निगाह अनायास उस ऑफिस की तरफ जरूर चलि जातीं, जिसे मैंने आज तक खुला नहीं देखा था। पर आज जब मैं सुबह घर से निकला तो अजीब सा दृश्य था। ऑफिस न सिर्फ खुला था बल्कि उसमें कुछ लोग भी व्यस्त हो अपने काम में लगे हुए थे। मैं अपनी उत्सुकता रोक न सका और बाइक खड़ी करके ऑफिस में घुस गया,वहां पर कोई भी बात करने को तैयार नहीं था पर सभी परेशान से जरूर थे। मैंने एक सभ्य से दिखने वाले सज्जन से पूछा, "भाईसाहब क्या हो रहा है?" उन्होंने झल्लाकर जबाब दिया, "दिखाई नहीं देता सफाई हो रही है।" मैं चुप हो गया। कुछ पल बाद उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो प्यार से बॊले, "ऑफिस खुल रहा है।" "पर आज तक तो नहीं खुला" मैंने प्रश्न किया तो महाशय बॊले "आज तक ये समस्या भी तो नहीं आयी थी।" मैंने पूछा कैसी समस्या तो बोले "तुम नहीं समझोगे।" मैंने कहा, " समझाओगे तो जरूर समझेंगे।" वो बॊले, "रात में फैक्स आया है, कि मंत्री जी सचिव साहब के साथ निरीक्षण पर आ रहे हैं। समय बहुत कम है और सारी व्यवस्था करनी है।" हमने पूछा, "कैसी व्यवस्था?" वे बॊले, "हेड क्लर्क नैनीताल घूमने गए हैं। वापसी संभव नहीं है। अकाउंट बाबू अपने गाँव में है मोबाइल नहीं लग रहा है। चपरासी वैसे भी कभी नहीं आता है तो आज क्या आएगा। शासन ने मानक भेजे हैं, जो कि पूरे करने हैं समझ में नहीं आ रहा है क्या करें? कैसे हो पाएगा? मैंने पूछा, "आप किस पद पर हैं?" उन्होंने कहा "मैं इन सबका हेड हूँ।" मैंने पूछा,मैं" कुछ मदद करूं?" वो बॊले, "आपके बस का नहीं है।" मैंने कहा, " एक ऐसी जगह देखी है जहाँ ऐसी समस्यायों का हल चुटकियों में होता है"बे बोले"कैसे" हमने कहा कुछ पैसे खर्च करोगे उन्होंने कहा नौकरी बचाने के लिए कुछ भी करूँगा, तो फिर मेरे साथ ऑफिस पॉइंट चलो। "वहां क्या है?" उन्होंने प्रश्न किया। "वहाँ सब कुछ है जो आपको चाहिये मैंने जबाब दिया तो वो हमारे साथ चल दिए। हमने उन्हें ऑफिस पॉइंट की दुकान पर जाकर खड़ा कर दिया। दुकान के बोर्ड पर लिखा था "हमारे यहाँ अधिकारी, कर्मचारी, चपरासी और सामान इत्यादि उचित मूल्य पर मिलता है"। बोर्ड पढ़कर उनकी आखों में चमक आ गयी और लपककर दुकान में घुस गए। दुकान पर बैठे व्यक्ति ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया और पूछा, "मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।" बड़े साहब बॊले, "पहले ये बताओ कि बोर्ड पर जो लिखा है वो सही है।" उसने कहा, "शत प्रतिशत सही है।" आप बतायें क्या चाहिए बड़े साहब ने तुरंत एक परचा निकला और बोले नोट करो एक हेड क्लर्क एकअकाउंट बाबू और एक चपरासी। दूकानदार ने पुछा, "कब चाहिए?" "आज ही चाहिए।" साहब ने कहा तो दुकानदार बॊला, "ठीक है पर अर्जेंट के पैसे ज्यादा लगेंगे।" "तुम उसकी चिंता मत करो बहुत कमाया है।" "तो फिर आप निश्चिन्त होकर पता नोट करा दें।" दूकानदार बोला। "पर गड़बड़ तो नहीं होगी। ये ट्रेंड तो हैं।" साहब ने प्रश्न किया। दुकानदार बोला, "ये इतने अच्छे कर्मचारी है कि आप खुश हो जायेगे।" "पर आप इन्हें लाये कहाँ से हैं।" साहब ने पूछा तो दुकानदार ने मुस्कराकर कहा "साहब ये बेरोजगार हैं और प्रतियोगी परीक्षा के लिए ओवर एज हो गए हैं। परीक्षा की तैयारी करते-करते और पेपर देते-देते ये खुद को अधिकारी और बाबू ही मानते है। चिंता मत कीजिये पचासों निरीक्षण करवाएं हैं। शिकायत मिले तो पैसे वापस ले लेना।" साहब को बात समझ में आ गयी पर दुबारा चिंतित हो गए। मैंने पूछा, "अब क्या हुआ?" वो बोले, "बाकी सामान कहाँ से आयगा?" मैंने कहा इसी से पूछ लो।" साहब ने दुकानदार से पूछा, "कुछ चीजें और चाहिए जैसे फर्नीचर रजिस्टर वगैरह।" वह बोला, " आप नोट करवा दें सारा सामान मिल जाएगा। ऑफिस के बाहर गमले भी लग जायेंगे। कलई-वलई डालकर ऐसा ऑफिस बना देंगे कि अधिकारी घुसते ही हैरान हो जायें।" साहब निश्चिंत हो गए। वापस आते समय मैंने पूछा, "फर्नीचर तो होगा।" साहब बॊले, " कहाँ बचा है? साल साल भर कमरे बंद रहते हैं सब दीमक खा गयी।" रास्ते में बोले, "कुछ क्लाइंट भी तो चाहिए।" हमने कहा, "उसी को फ़ोन कर देना।" सुबह जब अख़बार खोला तो खबर कुछ इस प्रकार थी "निरीक्षण में व्यवस्था देखकर मंत्री जी इतने गदगद हुए कि अफसर को दिया प्रमोशन।"
अवनीन्द्र सिंह जादौन
278, कृष्णा पुरम कालोनी,
कचौरा रोड, इटावा
Subscribe to: Post Comments (Atom)