देश के आकाश पर एक बार फिर से आई पी एल के काले बादल घिर कर बरसने लगे हैं। स्टेडियम रुपी तालाबों में दर्शक रुपी मेंढ़कों की कर्ण भेदी टर्र टर्र गूंजने लगी है । चीयर लीडर्स के सुन्दर कोमल फूल एक बार फिर से खिल खिल गए हैं। बड़ी बड़ी टीमें आपस में बादलों की तरह से टकरा कर हार जीत का आतंक मचा रही हैं। टी वी कमेंटरी ठंडी बियर ..सॉरी ..ठंडी बयार की तरह से बह रही है. लेकिन तुम्हारे बिना सब सूना सूना सा है। तुम कब आओगे ?
हे सुरा स्वामी , बहुत दिन हो गए तुम्हें यहां से हम सबको गच्चा दे कर भागे। इतने दिन तुम्हारा वियोग सह लिया पर आई पी एल के इस सावनी माहौल में तुम्हारे बिना रहना बिलकुल ऐसा लग रहा है जैसे सत्ता के बिना सोनिया गांधी। हे मदिरा शिरोमणि , अब तो अपने देश लौट आओ। तुम तो वहां आनंद से ही होगे। यहीं की तरह से सुंदरियों के शबाब के साथ शराब का सेवन करते हुए। पर यहां हमारे बुरे हाल हैं। तुम्हारे यूँ चले जाने से नितीश कुमार को इतना गहरा सदमा लगा कि उन्होंने अपने यहां शराब बंदी ही लागू कर दी। तुम लौट आओ तो शायद तुम्हारा माल बिकवाने के लिए वे अपने निर्णय को बदल कर वहां मदिरा का सूखा झेल रहे और अपनी जान से भी ज़्यादा तुम्हारे माल को चाहने वालों को बिना पिए मरने की जगह पी पी कर मरने की सुविधा फिर से उपलब्ध करवा दें।
ओ विचित्र वेशभूषाधारी, ये आई पी एल क्या तुम्हारी और तुम्हारे सपूत की अलग अलग प्रकार की पोशाकों और हरे , लाल , नीले अलग अलग रंग में रंगे बालों से वंचित रह जाएगा ? और उस पर महाभारत के कर्ण जैसे तुम्हारे कानों में झूलते कुंडल और हाथों में सजे मदिरा के प्याले ! तुम्हारे ऐसे तेजस्वी रूप से आकर्षित होकर टी वी कैमरे बार बार तुम्हारी तरफ ऐसी ही लपकते थे जैसे किसी फाइव स्टार होटल से निकलते सुपर रईस की तरफ भिखारी लपकते हैं। तुम न होगे तो देश के लोग आई पी एल में किसके जलवे देखेंगे, जिल्लेसुभानी।
प्रिय कलात्मक कैलेंडर निर्माता , आई पी एल के स्विमिंग पूल में तैरने वाली मछलियों की शामें तुम्हारी पार्टियों के बिना शुध्द वैष्णव भोजनालय का खाना हो जाएंगी। उनकी यौवन रुपी आइसक्रीम इस सीजन में क्या यूँ ही पिघल जायेगी ? और वो देसी विदेशी खिलाड़ी जो अपने पैसों से बिसलरी की बोतल भी नहीं खरीदते हैं उनकी मुफ्त की पार्टियां क्या विदर्भ का सूखा बन जाएंगीं ? कुछ तो सोचो इन सबके बारे में, हे बैंक उधारकर्ता।
ओ 9000 हज़ार करोड़ पचाने की क्षमता रखने वाले संसदीय रतन , तुम्हें तो इस देश के क़ानून के बारे में हमसे ज़्यादा पता है। फिर किस बात से भयभीत हो ? अव्वल तो तुम अंदर जाओगे ही नहीं और अगर कुछ दिनों के लिए जाना भी पड़ गया तो तुम्हारी छत्रछाया में जेलखाना भी मयखाना बन जाएगा। इसलिए देर न लगाओ जल्द वापस लौट आओ डिअर माल लिया।
लेखक : संजीव निगम
मुंबई, महाराष्ट्र
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