"दद्दू गजब हो गया।" घीसू भागता हुआ आया।
दद्दू ने घबराते हुए पूछा, "क्या हुआ बेटा?"
"दद्दू बाबा के चरणों में जगह-जगह छेद हो गए हैं।" घीसू ने दुखी हो बताया।
दद्दू भी दुखी हो गए, "बेटा अभी कुछ रोज पहले तो बाबा के चरण ठीक-ठाक थे। ये अचानक छेद कैसे हो गए।"
"दद्दू बाबा के जन्मदिन पर उनकी मूर्ति के सामने पूरे दिन भक्तों की भीड़ लगी रही। हर कोई अपने को बाबा का सबसे बड़ा भक्त सिद्ध करने की होड़ में था।" घीसू बोला।
दद्दू मुस्कुराए, "अच्छा ऐसी बात है?"
"हाँ दद्दू! इस होड़ में हर कोई बाबा के चरण चाटना शुरू करता था तो तब तक चाटता ही रहता था जब तक कि लाइन में लगा दूसरा भक्त अपनी बारी की याद न दिलाए।"
दद्दू ने पूछा, "पुराने भक्त ही आए थे या फिर कुछ नए भी?"
"पुराने भक्त तो सबसे पहले आए और सबसे बाद में ही गए। कुछेक नए भक्त भी आए थे पर पुराने भक्तों ने अपने पुराने होने के कारण बाबा पर अपना अधिकार दिखा उन्हें बाबा के चरण छूते ही एक ओर बिठा दिया और खुद बार-बार बाबा के चरण चाटने में लगे रहे।" घीसू बोला।
दद्दू ने समझाया, "तो बेटा उन्हें बोलना था न कि बाबा के चरणों को आराम से चाटें। अगर तुम्हारी बात नहीं मान रहे थे तो मुझे ही बुला लेते।"
"मैंने उन्हें बोला था पर उन्होंने मुझे डपट दिया और बोले कि वो लोग हम लोगों के कल्याण के लिए कार्य आरम्भ करने के लिए बाबा का आशीर्वाद ले रहे हैं। और रही बात आपको बुलाने की तो आपकी तबियत वैसे भी ठीक नहीं थी ऊपर से अगर आप बाबा के भक्तों की हरकतें देख लेते तो जाने क्या होता?" घीसू बोला।
दद्दू ने तंज कसा, "इतने दशक बीत गए अब तक तो हम लोगों का उन्होंने कल्याण नहीं किया अब क्या ख़ाक करेंगे। अच्छा हमारी सबसे बड़ी शुभचिंतक आयीं थीं या नहीं?"
"आयीं थीं और चीख-चीखकर सभी भक्तों से कह रहीं थीं कि बाबा सिर्फ और सिर्फ उनके हैं। लेकिन उनके भारी बटुए ने उन्हें अधिक देर संघर्ष नहीं करने दिया। सो विवश हो बाबा के बगल में वो स्वयं भी इस आस से अपना बटुआ खोलकर बुत बनकर खड़ी हो गयीं कि शायद कोई भक्त आकर उनके बटुए में दक्षिणा डालकर उनके भी चरण चाट ले।"
दद्दू यह सुन खिलखिला उठे, "हा हा हा वो भरे बटुए और बुत के बिना शायद रह भी नहीं सकतीं। खैर चल उठ अपना काम शुरू करते हैं।"
"कौन सा काम दद्दू?" घीसू ने हैरानी से पूछा।
दद्दू ने तसला उठाया और उसे सिर पर रखते हुए बोले, "गाँव के किसी घर से कुछ सीमेंट माँगकर लाते हैं, ताकि बाबा के पैरों में हुए छेदों को भरा जा सके जिससे कि बाबा के भक्त अगली बार भी उनके चरण पूरे भक्ति भाव से चाट सकें।"
लेखक : सुमित प्रताप सिंह