सुमित मानव मूल्यों के सप्तरंगी कवि हैं। उनके मूल्यों के विषय लोक व्यवहार के हैं, मानवीय प्रवृत्तियों के हैं, लोकाचार के हैं, भारतीय परिवेश के है। उनका कविता संग्रह समाज में व्याप्त विसंगतियों, विषमताओं एवं विगलती होती परिस्थितियों पर प्रहार कर उन्हें रेखांकित करता है । कविता संग्रह भावनाओं और यथार्थ का समिश्रण है जिसकी कवितायें संवेदनाओं में बहकर प्रस्फुटित हो रही हैं। सुमित समय सचेत हैं। उन्होंने छोटी-छोटी बातों पर दृष्टि डालकर और उन्हें सहज संवेदनाओं में पिरोकर चिंतन के लिए कविता संग्रह में प्रस्तुत किया है ।
सुमित ने अपने इस काव्य संग्रह में आम आदमी की परेशानियों को समाज के साथ-साथ पुलिस विभाग से जोड़कर मुखरित किया प्रतीत होता है लेकिन हकीकत में बात यह है कि पुलिस भी इंसान होती है, पर लोग उसे पुलिस ही मानते हैं इंसान नहीं और समय आने पर उससे जनता दोयम दर्जे का व्यवहार करती है । ‘एक सिपाही की कहानी’ व ’पुराना सिपाही’ में ही देखिए । सुमित के अभिव्यक्त-कथन में यह पीड़ा उभरकर सामने आती है । सुमित के स्वर में जो उच्छवास प्रकट होता है वह सृजनशीलता की अकुलाहट-व्याकुलता है । वे एक स्वस्थ्य परिवेश को देखना चाहते हैं।
उनकी शीर्षक कविता ‘सावधान! पुलिस मंच पर है’ विशुद्ध व्यंग्य कविता है, जो मंचीय लोगों द्वारा किए जा रहे कारनामों पर खुलकर प्रहार कर उन्हें आईना दिखा रही है। ‘विनती सुन लो भगवान’ ’तुम नागनाथ हम साँपनाथ’ कविताओं में व्यंग्य की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि व्यंग्य के दर्शन भी कविता संग्रह में हो रहे हैं। एक बात और सुमित के लेखन हेतु कहना चाहूँगा कि वे सहजता से गंभीर बात कह जाते हैं और हमें चिंतन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है यह उनकी लेखनी की सार्थकता है। ऐसा ही ‘गुलाम’, ‘भेड़ों की चिंता’, ‘थू’ ‘आओ जलाएं रावणपन’ आदि कविताओं में परिलक्षित हो रहा है।
जहाँ मंच पर कवियों के गिरते स्तर को उन्होंने अपनी लेखनी में सम्मिलित किया है तो वहीं वय उमर के चलतू प्रेम ’तू लड़की है झकास, अपुन लड़का बिंदास’ ’तेरी चाहत में बना देवदास’ आदि समय के प्रभाव की रचना है, लेकिन ’बकरे का इंतजार’ और ‘अच्छा है बकरापन’ ‘धंधेवाली’ ’वो बच्ची’ ‘खूनी दरवाजा’ लेखक के चिन्तन की पूर्ण परिपक्व रचनायें कहीं जा सकती हैं, जिनके द्वारा वे समाज पर सटीक प्रहार करते हुए गंभीर चिन्तन के लिए प्रेरित करते हुए प्रतीत हो रहे हैं। इन कविताओं को राष्ट्रीय फलक पर रखा जा सकता है। लेखक वर्तमान परिस्थितियों से ‘मनाएँ पन्द्रह अगस्त’ ‘बन जा भारत का किसान’ में भी रूबरू होता है । आज लोगों ने गिरगिट को भी मात कर दिया है इसीलिए तो ऐसे छली और प्रपंची लोगों का जमावड़ा समाज में है जो अपने स्वार्थ के लिए समाज में भ्रम फैला रहे हैं। ऐसे लोगों एव ऐसी परिस्थितियों को केन्द्र कें रखकर सुमित का रचनाकर्म सार्थक उॅचाईयों को छू रहा है। भाषा भी स्थानीय, सहज और आम बोल चाल की है इसीलिए पाठक इस कविता संग्रह को सहजता से आत्मसात कर सकेंगे।
पुस्तक - सावधान ! पुलिस मंच पर है
लेखक - सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली
प्रकाशक- हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर, उ.प्र.
पृष्ठ - 104
मूल्य - 200 रुपए
समीक्षक - श्री रमाकान्त ताम्रकार, जबलपुर, मध्य प्रदेश