आज हमारी सांसद का जन्मदिवस है। अब आप सोचेंगे कि मैं बहुत जागरूक मतदाता हूँ जो अपनी सांसद के जन्म की तिथि तक याद रखता है। ऐसा कुछ भी सोचकर आप सिर्फ और सिर्फ अपने मस्तिष्क की ऊर्जा ही नष्ट करेंगे। मैं भी उसी अधिकांशतः भारतीय जनता का एक अंश हूँ जिसके बाप-दादाओं ने जागरूक शब्द से शायद जानबूझकर दुश्मनी रखी। जिसका फल ये मिला कि दुनिया के बाकी देश तरक्की कर गए और हमारा देश तरक्की की खोज में अब तक घूम रहा है।
अच्छा अब आपको बातों में अधिक न उलझाकर सीधे-सीधे बता ही दूँ कि मुझे अपनी सांसद के जन्मदिन की तिथि कैसे मालूम हुई। असल में मैं अपने संसदीय क्षेत्र में बहुत दिनों बाद चहलकदमी करने गया था तो मुझे जगह-जगह सांसद महोदया को उनके जन्मदिन की बधाई देते हुए पोस्टर मुस्कुराते हुए मिले। उन पोस्टरों में हमारी सांसद महोदया का मुस्कुराता हुआ एक विशाल सा चित्र था और उन्हीं के ठीक नीचे उन पोस्टरों को संसदीय क्षेत्र की जनता तक पहुँचाने का पावन कार्य करनेवाले सांसद महोदया के दल के कुछ भले सेवकों के चित्र भी मुस्कुरा और खिलखिला रहे थे। मैं उन पोस्टरों को देखकर मुस्कुरा दिया। पोस्टर भी मुझे देखकर मुस्कुरा दिए। मुझे लगा कि शायद पोस्टर कहना चाह रहे थे कि हे मतदाता अपने सांसद के अपने संसदीय क्षेत्र में न दिखाई देने की शिकायत दूर कर और पोस्टर के माध्यम से उनके दिव्य दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त कर। और मैंने झट से पोस्टर के माध्यम से अपने क्षेत्र में प्रकट हुईं सांसद महोदया को नमन करते हुए जन्मदिन की शुभकामनायें दे डालीं।
वैसे मैंने अपने क्षेत्र के निवासियों की भाँति अपने विधायक को भी तस्वीरों में ही देखा है। विधायक जी सांसद महोदया के विरोधी दल के हैं, लेकिन उन दोनों में एक बात सामान्य है। वो दोनों ही अपने-अपने कर्मक्षेत्र से दूर रहने का आनंद उठाते रहते हैं। हमारे एक निगम पार्षद भी हैं। उनका दल सांसद व विधायक के दल का घोर विरोधी है और उनके दल का शीर्ष नेतृत्व पानी पी-पीकर सांसद व विधायक के दलों को दिन-रात कोसता रहता है और राजनीतिक तूफ़ान में खंडहर हुए अपने महल की दिन-रात मरम्मत करता रहता है। हमारे पार्षद जी हमारी सांसद और हमारे विधायक से थोड़ा हटकर हैं। वो अक्सर दिखते रहते हैं। हमारे क्षेत्र की झोपड़पट्टी में तो वो आए दिन समय-असमय प्रकट होते रहते हैं। बाकी जगह वो कभी-कभार ही जाते हैं। बात ये है कि वोट रुपी धन का अकूत भंडार झोपड़पट्टी में ही मिल सकता है इसलिए वो यहाँ हाजिरी लगाना कभी नहीं भूलते। उनकी नियमित हाजिरी का सबूत देती हुईं यहाँ कुछ वर्षों में अचानक से बढ़ी झुग्गियों की संख्या व फुटपाथ की छाती पर मूँग दलती हुईं सैकड़ों रेहड़ियाँ मिल जाती हैं। पार्षद जी के मतानुसार झोपड़पट्टी का वोट रुपी खजाना उनके दल का पारंपरिक खजाना है। जबकि समय के फेर ने इस खजाने के मालिकों का दिमाग भी लोमड़ी सा कर दिया है और हो सकता है कि आनेवाले समय में ये पारंपरिक खजाना जाने किसके हाथों स्वयं ही लुट जाए और लुटते हुए बेशर्मी से खिलखिलाए?
लेखक : सुमित प्रताप सिंह