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Thursday, April 4, 2013

कहानी: दोस्ती की खातिर



      आज इतने सालो बाद मेरा मन कांता आंटी और अंकल के घर मुंबई जाने का हुआ. आज मै बहुत खुश थी, कांता आंटी ने मुझे  बैठाया, मेरी शादी मुंबई के लड़के के साथ हुई जो एक मल्टीनेशनल  कंपनी मे काम करता था. अब जब मै मुंबई आई हूँ तो अंकल- आंटी से तो मिलना अवश्यम्भावी है. आज भी मुझे याद है  अंकल- आंटी का वो अपनापन वो प्यार जो एक दोस्त की बेटी को दिया, बी. टेक. मेरा चयन  आई.आई.टी. मुंबई में  हुआ, इसके लिये मुझे चार साल मुंबई रहना था.
     घर में सब खुश थे कि मुझे इतनी बड़ी सफलता मिली,  जैसे दिन के साथ रात का होना निश्चित है वैसे ही ख़ुशी के साथ गम भी होता है पिताजी बहुत खुश थे, पिताजी गवर्नमेंट स्कूल मे टीचर थे, मुझे हॉस्टल मे रखकर पढाना उनके वश मे नहीं, पिताजी खुश होने के साथ टेन्स भी थे, कि कैसे वो बिना पैसो के इतनी दूर पढने को भेजेगे. मुश्किल से उन्होंने मुझे यहाँ तक पढाया है.
    हमारा कोई भी रिश्तेदार मुंबई नहीं रहता, अचानक पिताजी को याद आया उनका एक बहुत ही अच्छा दोस्त मुंबई रहता है. जो कभी पिताजी के साथ ही काम करता था. सालो से दोस्त है जो उनका बड़े भाई की तरह सम्मान करता है. पिताजी ने शुभ काम मे देरी नहीं वाली उक्ति को चरितार्थ करते हुए उसी वक़्त फोन किया. माँ को मनाना पिताजी के लिये थोडा मुश्किल काम था, बेटी को इतनी दूर भेजना वो भी दूसरे के घर |पर बेटी के भविष्य का प्रश्न था तो समझना ही पड़ा. आखिर वहीँ  जाने का तय हुआ.
      अब मैं अपने पापा के दोस्त के घर आ गयी. नया शहर नए लोग जाहिर है कुछ दिन तो मेरा मन नहीं लगा. अंकल आंटी मुझे अपनी बेटी की तरह रखने लगे. आंटी मेरे  खाने -पीने को लेकर बहुत फिक्रमंद रहती यहाँ तक सोने से पहले मुझे केसर वाला दूध पिला कर खुद सोती थी. उनका अपने लिये इतना प्यार देख कर मेरा मन अब यहाँ अच्छे से लगने लगा था और एक साल कैसे बीत गया मुझे पता ही नहीं चला.
       छुट्टियों में मैं अपने माँ -पापा के पास घर आ गयी. पापा ने कहा ''अच्छे से रखा ना मेरे दोस्त और भाभी जी ने?"  हाँ ,पापा उन्होंने अपनी बेटी की तरह ही रखा. पापा खुश थे की चलो एक साल तो अच्छे से निकल गया. तुम्हारी पढाई ठीक से हो जाये बस. अब मुझे दूसरे साल के लिये कल मुंबई के लिये निकलना है. माँ और पापा ऐसे तैयारी कर रहे है जैसे उनकी बेटी ससुराल जा रही है. हर माँ -पापा के दिल मे बेटी के लिये सॉफ्ट कोर्नर रहता है. बेटी को तो माँ -पापा को छोड़ कर जाना ही होता है.
        जब मैं अंकल के घर पहुंची तो देखा वहां आंटी नहीं थी,पूछने पर अंकल ने कहा आंटी बाहर गाँव गयी है, किसी जरुरी काम से उन्हें अपने मायके जाना पड़ा. मुझे आंटी के बिना रहना जम नहीं रहा था तभी अंकल ने कहा ''आंटी आठ दिन बाद आएगी तब तक तुम अपनी किसी फ्रेंड के घर चली जाओ.मैं जाना चाहती थी पर सोचा अंकल को लगेगा उन पर भरोसा नहीं है, तो यही रहने को तय किया ''अंकल आप फिक्र ना करो मैं सब काम संभाल लूँगी. घर का और कॉलेज  दोनों का काम करके मैं दो ही दिन में थकान से बीमार सी हो गयी.
        अगले ही दिन अंकल ने कहा ''मेरे बहुत ही करीबी रिश्तेदार का बेटा समीर का भी चयन मुंबई में हुआ और वो कल आ रहा है. अब मुझे थोड़ी फिक्र हुई जो सुविधाए अब तक मुझे मिलती रही है शायद अब वो समीर को मिलेगी, वो इनका रिश्तेदार जो है और अंकल सोच रहे है कि समीर के आने से मुझे  कंपनी मिलेगी. संस्थान भी एक है तो जाने आने का भी दोनों मे साथ रहेगा. आंटी आ गयी थी ये देख कर खुश थी कि दोनों बच्चे आराम से यहाँ रहकर  पढ़ रहे है.
        समीर आ गया मुझे उसका आना अच्छा लगा पर मैं जल्दी ही उससे परेशान  रहने लगी, जब आंटी नहीं थी तो समीर अपनी हर छोटी जरुरत के लिये मेरे पास आता रहता था, अंकल ने कहा भी था ''समीर अपना काम तुम खुद किया करो हिना को पढने के वक़्त परेशान मत किया करो पर वो कहाँ बाज आता था अपनी आदत से.
        एक बार चारो जन रात का खाना खाने के बाद अपने -अपने कमरे मे सोने चले गये, अंकल- आंटी सो गये. समीर की आँखों मे नींद नहीं थी वो बार -बार मेरे कमरे की और देख रहा था मेरे  कमरे की लाइट जल रही थी, मैं नोट्स बना रही थी.  रात बहुत हो चुकी तो समीर मेरे कमरे मे जाने के लिये जैसे ही बरामदे मे आया,कि किसी ने उसके  कंधे पर हाथ रखा. पीछे मुड़कर देखा तो अंकल, इतनी रात को हिना के कमरे में क्यों जा रहे थे?  समीर अंकल को सामने देख कर घबरा गया. फिर भी अपने को सहज करके बोला ''हिना से नोट्स लेने को गया था, सुबह लेना जाओ जाकर सो जाओ.
         सुबह अंकल ने आंटी को रात को जो हुआ बताया. कहा ''कांता हिना मेरे दोस्त की बेटी ही नहीं अब वो यहाँ है तो मेरी बेटी है उसका ख्याल रखना हमारी जिम्मेदारी है, आंटी उनकी बात से सहमत थी. अब आंटी समीर को मेरे पास कम ही आने देती, आते ही किसी न किसी बहाने से जाने को बोल देती थी.
         उस दिन अंकल आंटी को किसी रिश्तेदार के घर उनके बच्चे की बर्थडे पार्टी मे जाना था मेरी  चिंता भी थी, जाना भी था पार्टी में मन नहीं लगा तो दोस्त को बिना बताये वहां से निकल लिये. घर आये तो समीर को कहते सुना ''हिना मुझे तुम से प्यार हो गया है, कल हम घुमने चलेंगे, मैंने जवाब दिया ''समीर ,कमरे में से निकल जाओ नहीं तो अंकल से शिकायत कर दूंगी, ''मै अंकल से डरता नहीं हूँ, इतना कह  कर वो उसके कमरे मे से निकल गया.
         अंकल को बहुत गुस्सा आया उस रात वो सो नहीं सके और मेरी सुरक्षा के लिये एक बहुत ही कठिन फैसला कर लिया.  सुबह ही समीर के पापा को फोन किया '' मै आपके बिगड़े हुए बेटे को अपने घर नहीं रख सकता, सुनकर उन्होंने अपने बीच के रिश्ते का हवाला दिया. अंकल ने कहा तुम्हारे बेटे को रखने की बजाय में अपने दोस्त की बेटी की हिफाजत करना ज्यादा ठीक समझता हूँ और उन्होंने मेरे लिये अपना रिश्ता बिगड़ने की भी परवाह नहीं की.
         मुझे ये सब देख कर आश्चर्य हो रहा था कि आज भी ऐसे लोग है, दुनिया में जो बेटी की इतनी इज्जत करते है, इतना ख्याल रखते है. ये सब मैंने अपने पापा को फोन करके बताया तो वो बहुत खुश हुए. अपने दोस्त के लिये उनका सर आज और भी ऊँचा हो गया था.
        समय कब किसी के लिये रुका है. आज मेरा रिजल्ट आना है मैंने अपने सभी साथियों को पीछे छोड़ते हुए टॉप किया. संस्थान ने मुझे  दो दिन बाद गोल्ड मैडल देने की घोषणा की और अपने माता- पिता को भी साथ लाने को कहा. मैंने अंकल- आंटी से कहा,  कल आप दोनों मेरे साथ कालेज चल रहे है. आप ही यहाँ मेरे माँ-पापा हो. जब मुझे मंच पर बुलाया तो अंकल- आंटी को भी अपने साथ मंच पर ले गयी. गोल्ड मैडल उनके हाथ मे दे कर दो शब्द बोलना था मुझे ''मेरे इस गोल्ड मैडल के असली हक़दार अंकल- आंटी है जिन्होंने मुझे अपने घर अपनी बेटी की तरह रखा. आज भी इनके जैसे लोग है जो दोस्त की बेटी के लिये इतना करते है इनके चरणों मे मेरा प्रणाम. अंकल- आंटी और हिना रो पड़े हाल मे बैठे सारे श्रोतागण की आँखों मे आंसू थे.
        
     रचनाकार: श्रीमति शांति पुरोहित  
बीकानेर, राजस्थान 
                                                                                                                  

12 comments:

  1. Shiva TomarApril 4, 2013 at 8:22 PM

    वाह अगर सब अंकल आंटी ऐसे हो तो देश ही सुधर जाये।।।।।

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    1. Shanti PurohitApril 5, 2013 at 7:52 AM

      यही संदेस देना इस कहानी का उदेश्य है|
      आभार

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  • SarasApril 5, 2013 at 6:53 AM

    हालात इस कद्र बिगड़ चुके हैं की जल्दी किसी पर ऐतबार नहीं किया जा सकता ...लेकिन आपकी कहानी पढ़कर सुकून हुआ की आज भी दुनिया में अच्छाई जिंदा है ....एक घने बरगद की छाँव सी ...बहुत अच्छी कहानी ...!!!

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    1. Shanti PurohitApril 8, 2013 at 8:23 PM

      आभार सरस जी

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  • वाणी गीतApril 5, 2013 at 6:58 AM


    अविश्वास के इस दौर में यह कहानी आशा जगाती है !

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    1. Shanti PurohitApril 5, 2013 at 7:53 AM

      शुक्रिया वाणी गीत आपका |

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  • Ramaajay SharmaApril 5, 2013 at 10:24 AM

    आशावादी ....बहुत सुंदर लिखा आप ने शांति जी ...

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  • Shanti PurohitApril 5, 2013 at 10:42 AM

    बहुत शुक्रिया रमा आपका

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  • Vinnie PanditApril 7, 2013 at 9:07 PM

    शान्ति जी,

    आप की कहानी 'दोस्ती की खातिर 'पढ़ी।आप ने सिद्ध कर दिया कि आज भी बेटी को सम्मान देने वाले लोग हैं।कहानी ने मन को छू लिया।

    समय मिलने पर मेरे ब्लोग Unwarat.com पर कभी आईये।लेख और कहानी पढ़ने के बाद अपने विचार भी व्यक्त कीजियेगा। मुझे अच्छा लगेगा।

    विन्नी

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    1. Shanti PurohitApril 8, 2013 at 8:25 PM

      शुक्रिया विन्नी जी आपका

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  • Meena PathakApril 10, 2013 at 3:18 PM

    बहुत सुन्दर कहानी शान्ती जी .. बधाई

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  • Shanti PurohitApril 10, 2013 at 8:04 PM

    मीना जी आभार

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