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क्या नियति के क्रूर पंजों में इतनी ताकत है कि वो हमसे हमारा वेद छीन सके? या फिर काल इतना हठी हो सकता है कि उसे पूरी दुनिया में बस हमारा वेद ही पसंद आए? सब कह रहे हैं कि वेद हमारे बीच नहीं रहा,हमारा प्यारा वेद अब ईश्वर के दरबार में अपना रंग जमाएगा. हम में से कोई भी यह सोच भी नहीं सकता था कि ईश्वर के कथित ‘पैरोकारों’ से हमेशा दो-दो हाथ करने वाले वेद की जरुरत खुद ईश्वर को पड़ सकती है.शायद ईश्वर सीधे वेद से ही यह जानना चाहता होगा कि समस्याओं,चिंताओं और परेशानियों से भरी मेरी दुनिया में तुम इतने बेफ़िक्र-बेलौस और खिलंदड कैसे रह सकते हो?
वेद यानि वेदव्रत गिरि, एटा के पास छोटे से गाँव की एक ऐसी शख्सियत जिसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं था.वह पत्रकार भी था और यारों का यार भी,लेखक भी था और दोस्तों का आलोचक भी,कवि भी था और मित्रों का गुणगान करने वाला भी,पटकथा लेखक भी था और अपने ही भविष्य से खेलने वाला अभिनेता भी...क्या नहीं था हमारा वेद और क्या नहीं कर सकता था हमारा वेद. कल ही की बात लगती है जब हम सब यानि कुल जमा ४० युवा भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में मिले थे और पंख लगाकर उड़ते समय के साथ पत्रकार कहलाने लगे.जब हम सभी भोपाल और मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में अपना भविष्य तलाश रहे थे तो वेद को दिल्ली में अपनी मंजिल नज़र आ रही थी...आखिर सबसे अलग जो था हमारा वेद.जब दिल्ली में उसके पैर जमे तो उसने मुंबई की राह पकड़ ली और मुंबई में सराहना मिलने लगी तो इंदौर-भोपाल को पड़ाव बना लिया. कुछ तो खास था वेद में तभी तो वह जहाँ भी जाता मंजिल साथ चलने लगती. शायद यही कारण था कि साथ-साथ पढ़ने के कई साल बाद एकाएक इंदौर में अल्पना का हाथ थामा तो अल्पना की पढ़ाई और परीक्षा की तैयारियों में ‘जान’ आ गयी और वह पढते-पढते कालेज में अपने हमउम्र छात्रों को पढाने वाली प्राध्यापक बन गयी...कुछ तो अलग करता था वेद को हमसे तभी तो जब हम सब अपने बच्चों को ब्रांडनेम बन चुके स्कूलों में पढ़ाने की जद्दोजहद में जुटे थे तब वेद ने अपने बेटे को अपने से दूर बनारस में लीक से हटकर पढ़ाई करने के लिए भेज दिया ताकि वह भी हमारे वेद की तरह सबसे हटकर परन्तु सभी का चहेता इन्सान बने.
आज के दौर में जब लोग गाँव से दूर भाग रहे हैं और परम्पराओं के नाम पर औपचारिकताएं निभा रहे हैं तब वेद ने त्यौहार मनाने के लिए भी अपने गाँव की राह पकड़ ली. वह आंधी की तरह आता था,ठेठ अंदाज़ में दिल की बात कह-सुन जाता था और फिर तूफ़ान की तरह चला भी जाता था. उसका अंदाज़ सबसे जुदा था और यही बेफ़िक्र शैली वेद को सबसे अलग,सबसे जुदा,सबका प्रिय और सबका चहेता बनाती थी. वेद, आत्मा के सिद्धांतों में न मुझे विश्वास था और न ही तुम भरोसा करते थे लेकिन अब होने लगा है इसलिए मैं न केवल तुमसे बल्कि अपने सभी दोस्तों से कह सकता हूँ तुमको हमसे कोई नहीं छीन सकता.तुम्हारी जिम्मेदारी भरी बेफिक्री,गहराईपूर्ण खिलंदडपन,आलोचना भरा अपनापन और गंभीरता के साथ बेलौस अंदाज़ हमारे साथ है. हम उसे जीवित रखेंगे और अपने झूठे बाहरी आवरणों,दिखावे की गंभीरता और तनाव बढ़ाती फ़िक्र को परे रखकर तुम्हारी तरह बनने का प्रयास करेंगे.हम एक वेद से अनेक वेद बनकर दिखायेंगे क्योंकि हम सभी वेद बन जायेंगे इसलिए मेरा दावा है कि वेद तुमको हमसे कोई नहीं छीन सकता..काल भी नहीं,नियति भी नहीं,तुम्हारी बेफिक्री भी नहीं और आँखों देखी सच्चाई भी नहीं...!!!
(वेदव्रत गिरि देश के जाने-माने पत्रकार थे. दैनिक भास्कर से लेकर देश के तमाम समाचार पत्रों में वे रहे हैं और‘मेरीखबर डाट काम’तथा‘मायन्यूज़ डाट काम’नामक न्यूज़ पोर्टल का संचालन कर रहे थे.उनका हाल ही में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया है.)
1 comment:
अरूण साथीDecember 5, 2012 4:49 AM
dukhad.....
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