Friday, February 8, 2013

अपाहिज (लघुकथा)


गुप्ता जी ने शून्य की ओर निहारते हुए मिश्रा जी से जा पूछा "मिश्रा जी क्या मिश्रानी  के ख्यालों में खोये हुए हैं?"
"अरे नहीं गुप्ता जी हम तो कुछ और ही सोच रहे थे। मिश्रा जी एक लंबी साँस लेते हुए बोले।
"तो फिर इस उदासी की वजह क्या है?" गुप्ता जी ने पूछा।
मिश्रा जी आँखें नम करते हुए बोले, "गुप्ता जी अब आपसे कैसे कहें? सामने देखिए पांडे को ससुरा हाथ और पैरों से अपाहिज है, लेकिन फिर भी हमसे ऊँचे पद पर जमा हुआ है और एक हम हैं कि शरीर से ठीक-ठाक होते हुए भी उससे जूनियर हैं।"
गुप्ता जी हँसते हुए बोले, "पांडे और आपमें बहुत फर्क है।"
मिश्रा जी ने गंभीर होकर पूछा, "कैसा फर्क है?"
"पांडे शारीरिक रूप से अपाहिज है और आप मानसिक रूप से।" इतना कहकर गुप्ता जी अपनी सीट की ओर चल दिये।

रचनाकार: सुमित प्रताप सिंह


इटावा, नई दिल्ली, भारत
चित्र गूगल बाबा से साभार 

8 comments:

  1. vandana guptaFebruary 8, 2013 at 4:54 PM

    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (9-2-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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    1. सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghFebruary 10, 2013 at 5:44 PM

      शुक्रिया वंदना जी...

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  • Rajendra KumarFebruary 9, 2013 at 9:09 AM

    बहुत ही ज्ञानप्रद है आपकी लघुकथा,आभार।

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    1. सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghFebruary 10, 2013 at 5:44 PM

      शुक्रिया राजेन्द्र जी...

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  • प्रवाहFebruary 9, 2013 at 1:51 PM

    सफल सन्देश देती और मनोभावों को इमानदार से परखती और व्यक्त करती सफल कृति ,प्रभावशाली लघु कथा,शुभकामनाये

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    1. सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghFebruary 10, 2013 at 5:45 PM

      शुक्रिया प्रवाह जी...

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  • Manav Mehta 'मन'February 9, 2013 at 3:24 PM

    bahut sunder ...

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    1. सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghFebruary 10, 2013 at 5:45 PM

      शुक्रिया मानव जी...

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