आपको एक बात बतानी है। अब तक किसी से नहीं कहा है। अब आप अपने खास हैं, इसलिए बताने में कोई हर्ज़ नहीं है। वैसे मुझे यह भी डर है, कि आपके पेट में यह बात हज़म होनी बहुत मुश्किल है, फिर मैं रिस्क ले रहा हूँ। अब आपको बताये बिना ये मन भी तो नहीं मानता। मैंने भगवान से एक मन्नत माँगी है। मन्नत नहीं समझो जन्नत माँगी है। वो भी अगले जन्म के लिए। मैंने भगवान से मन्नत में माँगा है, कि हे भगवान अगले जनम में मुझे नेता ही बनाना। अब आप मेरी मन्नत को सुनकर अपने मुँह को विभिन्न आकर देंगे, लेकिन मुझपर आपके मुँह की बेढंगी क्रियाओं का असर नहीं पड़नेवाला। मैंने जो सोच लिया सो सोच लिया। अगले जन्म में मुझे नेता ही बनना है बस। देखिए आपके फालतू के भाषणों का मुझपर अब कोई असर नहीं होनेवाला। आपके प्रवचन सुन-सुनकर मेरा भेजा पक चुका है। आदर्श-आदर्श चिल्लाते रहते हैं। आपके इस शब्द को सुनकर आदर्श घोटाला हो गया। अब मैं आपके आदर्श नामक शब्दजाल में नहीं फंसने वाला। एक तो पहले ही भगवान ने आम आदमी की योनी में फैंककर घोर अन्याय किया है, ऊपर से आपका ये आदर्शवाद। इस जन्म तो मर-मरकर जी रहा हूँ, कम से कम अगले जन्म को सुखमय बनाने का जतन तो कर लेने दीजिए। अब आप पूछेंगे कि मैं अगले जन्म में नेता क्यों बनना चाहता हूँ? तो सुनिए इस आम आदमी की योनी में मेरे पिता का पूरा जीवन धक्के खाते-खाते बीत गया और मेरा जीवन भी उनकी तरह धक्के खाते हुए बीतेगा। आम आदमी को अपनी योनी में भला क्या हासिल हो पाता है? मँहगाई की मार सहता, विवशताओं की चक्की में पिसता और अपनी आवश्यकताओं की रोज कुर्बानी देता ये जीवन बेशक आपको भाता हो, लेकिन मुझे ये कतई पसंद नहीं है। नेताओं को देखिए क्या ठाट-बाट हैं। जीवन का असली आनंद तो नेता नामक प्रजाति ही ले रही है। अभी पिछले दिनों आयी उस खबर को आपने भी अच्छी तरह पढ़ा होगा, कि कैसे केवल कुछ सालों में नेताओं का धन पांच से दस गुना हो गया। हो न हो नेता बनने के बाद उनके हाथों में कोई जादुई शक्ति आ जाती होगी, जिससे उनकी बल्ले-बल्ले हो जाती है। आपको अपने मोहल्ले का वो फटीचर कलुआ तो याद होगा ही। कैसे इधर-उधर से उधार माँगकर और कभी चोरी-चकारी करके अपना गुजारा चलाता था। एक दिन अचानक ही उसकी योनि नेता की योनि में परिवर्तित हो गई। अब उसके जलवे देखिए। चोरी-चकारी में बंद होकर जिन पुलिसवालों के हाथों पिट-पिटकर उसके अंजर-पंजर ढीले हो गए थे, अब वो ही उसे सलाम ठोंकते हैं। अब आप स्वीकारें या न स्वीकारें, लेकिन नेता बनने के फायदे ही फायदे हैं। जनता को उल्लू बनाकर घोटाले करो, घोटालों से अपना पेट भरो और जब पकड़े जाने की नौबत आए तो घुड़की देकर पकड़ने वाले को शांत कर दो। मान लीजिए अगर घुड़की भी काम न आए, तो केस न्यायालय में चलता रहेगा और चलता ही रहेगा। तब तक मरने की उमर हो जाएगी। मरने के साथ ही केस भी खतम। तो है न नेता के जीवन भर मजे ही मजे। अब आप कहेंगे, कि इस जन्म में ही क्यों नेता नहीं बन जाते, तो आपको स्पष्ट कर दूँ। मेरी इस जन्म में नेता बनने की औकात नहीं है। मैं आम आदमी का किरदार निभाते-निभाते बिल्कुल आम ही बन गया हूँ और इस जन्म में शायद आम ही रहूँगा। नेता के भीतर बसने वाले विशेष कीटाणु मेरे भीतर आने से भी डरते हैं, कि कहीं शरीर में घुसते ही उनका राम नाम सत्य न हो जाए। इस जन्म में तो मैं नेता जैसा चारित्रिक रूप से महान नहीं बन सकता। इसलिए मैं नियमित तौर पर भगवान से विनती करता रहता हूँ, कि हे भगवान अगले जनम मोहे नेता ही कीजो और इस जनम में जो दुःख दे रहे हैं, अगले जनम में बिल्कुल न दीजो।
सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली
चित्र गूगल बाबा से साभार