आज की नारी
बेबस नहीं
उस में हिम्मत है
साहस है
कुछ करने की
इच्छा है
उसे कमजोर
डरपोक
बुज़दिल
मत समझो
आज की नारी
समाज को संभालती है
अब वह घर में कैद
अबला नहीं
अब वह दुर्गा का रूप है
जिसे देख कर
गुंडे थर थर कांपते हैं
जब नर में
दो मात्राएं लगती हैं
तब जाकर बनती है
आज की नारी।
रचनाकार: सुश्री रमा शर्मा