आज फिर रजनी की सास अपने तरकश से जहर बुझे तीर छोड़ रही थी – “मेरे तो करम ही फूटे थे जो ऐसी बहू मिली, कितना कहा था मैंने मिश्रा जी की लड़की से शादी करने के लिए, वो सब कुछ देने के लिए तैयार थे, लड़की भी नौकरी कर रही थी, बस् थोड़ी साँवली ही तो थी तो क्या हो गया बाद में गोरी हो जाती पर मेरी किसी ने नही सुनी और उठा ले आये इस दलिद्र बाप की बेटी को” बस् इसके आगे रजनी सुन नही सकी और अपनी सास के सामने जा कर बोली – “बस् माँ जी अब इसके आगे कुछ ना बोलियेगा मै सह नही पाऊँगी, आप को मुझे जो बोलना हो बोल लीजिये पर मेरे पापा को एक भी शब्द मत बोलियेगा, सुन नही सकूँगी मै |” इतना बोल कर रजनी पैर पटकती हुई बर्तनों के ढेर के पास जा कर बर्तन धोने लगी | वो गुस्से से थर-थर कांप रही थी और अपना गुस्सा उन बेजान बर्तनों पर उतार रही थी | अपनी बेबसी और क्रोध की वजह से रोये जा रही थी | उसे नही पता था कि उसके पति सब कुछ सुन चुके हैं और उसकी सारी गतिविधियाँ देख रहें हैं | वो बर्तन धोने में लगी थी कि अचानक उसकी आँखों के सामने तारे छिटकने लगे थे, उसकी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे अटक गई थी | वो बर्तन धोना छोड़ कर उसी गंदे हाथ से अपनी कमर पकड़ कर साँस आने का इंतजार करने लगी, मुंह से कोई आवाज नही निकल पा रही थी | इस स्थिति में वो करीब दो या तीन मिनट तक स्टैचू की तरह अकड़ी हुई दर्द सहती रही | और जब उसकी साँस वापस आई तब उसने पीछे मुड कर देखा पतिदेव की आँखों में लाल-लाल अंगारे दहक रहे थे उन्हें उसके दर्द से कुछ लेना देना नही था उन्हें तो इस बात की भी परवाह नही थी कि वो माँ बनने वाली थी, “बहुत जुबान चलती है आइन्दा फिर कभी माँ को जवाब दिया तो जुबान खींच लूँगा” उसे धमकी देकर वो बाहर निकल गये, अब उसे पता चला कि उसके पति ने पीछे से एक जोर की लात उसकी कमर पर दे मारी थी | वो उठने नही पायी और वही जमीं पर ढेर हो गई | रोने की शक्ति नही थी उसमे साँस भी ठीक से नही ले पा रही थी चेहरा दर्द से काला पड़ गया था | कराहती रही, उसी समय उसे महसूस हुआ कि कुछ गर्म सा तरल पदार्थ उसके पैरों की तरफ़ रेंगता हुआ बढ़ा जा रहा था और वो बेहोश होती चली गई |
अगले दिन उसे होश आया तो वो हस्पताल में थी | रजनी ने देखा कि उसके हाथ में एक सुई चुभी हुई थी जिसके द्वारा ग्लूकोज उसके शरीर में बूँद-बूँद कर के जा रहा था | बेड के एक तरफ़ उसकी सास और एक तरफ़ उसके पति बैठे हुए थे, इन दोनों को देख कर उसे सब कुछ याद आ गया और वो अन्दर तक नफरत से भर गई | इतने में उसके अन्दर कुछ तेजी से घूमा उसके दोनों हाथ खुद ब खुद पेट पर आया गया | मन ही मन भगवान का शुक्रिया किया कि उसके अन्दर जो भी था सुरक्षित था | वो आँख बंद कर के बीती घटना के बारे में सोचने लगी “ क्या बेटी होना पाप है ?
माँ-बाप के लिए बेटी के ससुराल वालो से जीवन भर अपशब्द सुनते हुए भी हाथ जोड़े हुए खड़े रहते हैं और बेटी माता पिता को बोले जाने वाने अपशब्द सुन के सहती रहे नही तो प्रताड़ना झेलने के लिए तैयार रहे फिर चाहे उसकी जान पर ही क्यों ना बन जाए | उसने तो अपनी सास को सिर्फ इतना ही कहा था कि “माँ जी आप मुझे चाहे जो कह लें पर मेरे माँ पापा को कुछ ना कहिये बस् इतनी सी बात के लिए मुझे इतनी बड़ी सजा ?? मै इनकी माँ को कुछ नही बोल सकती पर वो मेरी माँ को कुछ भी बोल सकतीं हैं | क्योंकि वो बेटे की माँ हैं और मेरी माँ एक बेटी की माँ ? बेटे को बुरा लगता है कि उसकी माँ को कोई जवाब दे तो क्या बेटी को बुरा नही लगता कि उसके माता पिता को कोई अनाप-शनाप बोले ? क्या बेटी बन कर जन्म लेना श्राप है ? आँख बंद किये हुए वो अपने अंतर्द्वंद्व से जूझ रही थी | क्या वो इतनी कमजोर है कि अपने खिलाफ़ हो रहे अत्याचार के खिलाफ़ आवाज नही उठा सकती ? इतनी इच्छाशक्ति की कमी क्यों है मुझमे ? थोड़ी देर बाद वो एक दृढ संकल्प के साथ अपनी आँखे खोलती है उसकी नजर सामने की दीवार पर दुर्गा माँ के चित्र पर पड़ती है | वह आँखे बंद कर के मन ही मन प्रार्थना करने लगती है कि हे शक्ति की देवी मुझे बेटी ही देना जिससे ये लोग भी बेटी वाले कहलाने लगें पर मुझ जैसी कमजोर बेटी मत बनना उसे अपनी शक्ति से सिंचित कर देना माँ! ताकि वो अन्याय के विरुद्ध आवाज उठा सके और बेटियों को इस तरह प्रताड़ित करने वालों को उनकी सही जगह दिखा सके |
माँ ... माँ ....
रजनी चौंक कर उठ बैठती ही | चेहरे पर उम्र की रेखा उभर आई थी बालों में कही कही चांदी की सफेदी झलक रही थी तकिये के पास से चश्मा उठा कर अपनी आँखों पर लगा लेती है सामने ही दीवार पर सासू माँ के साथ पतिदेव की फोटो पर भी माला चढ़ा हुआ था |
“हाँ बोल बेटा” रजनी अपनी बेटी शक्ति की तरफ़ देख कर बोलती है |
शक्ति उसके करीब आकर उसकी आँख पर से चश्मा हटा कर उसके आँसू पोंछते हुए बोलती है -- “माँ ... हमेशा किन ख्यालों में खोई रहती हो और ये आँखे फिर से क्यों गीली हो गई, कितनी बार समझाया आप को अब पिछली बाते सोच कर खुद को तकलीफ़ मत दिया करो, भूल जाओ सब आज के बाद आप की आँखों में आँसू नही देखना चाहती मै |”
शक्ति माँ के गले से लग जाती है, रजनी भी बेटी को सीने से लगा लेती है | थोड़ी देर बाद शक्ति बोलती है “ माँ आज मेरा पहला केस है आशीर्वाद दो मुझे |” शक्ति झुक के माँ का पैर छूती है और गाड़ी में बैठ कर कोर्ट निकल जाती है | रजनी अपनी एडवोकेट बेटी को जाते देख रही है और अपनी आँखों में आ गये आँसू अपने आँचल से पोंछते हुए ऊपर देख कर बुदबुदाती है “शुक्रिया माँ आप की दी हुई शक्ति के लिए |”
मीना पाठक
कानपुर, उत्तर प्रदेश