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एंटी रोड रेज एंथम: गुस्सा छोड़

Wednesday, October 2, 2013

व्यंग्य: देहाती औरत


भौजी राम-राम!

राम-राम देवर जी!

अरे भौजी कैसे मरे-मरे बोल रही हो? कोई गम है क्या?

गम बहुत तगडो है.

कौन सा गम है, जो आपको इतना परेशान कर रहा है?

हमाई इज्ज़त से खिलवाड़ करो गओ है.

किसकी हिम्मत हुई, जो हमारी भौजी की इज्ज़त से खिलवाड़ करने की हिमाकत की?
कोई कलमुआं हैगो जाने काऊ दूसरे आदमी को देहाती औरत की उपमा दई है.

आपको किसने ये बात बताई?

अरे बू अपने गाँव में दलीपा प्रधान को मोड़ा है न. बई ने हमें जा बात बताई हती.

तो उसने उस कलमुएँ का नाम नहीं बताया?

बताओ तो हतो पर हमईं भूल गए. का नाम हतो शायद खरीफ हतो.

खरीफ नहीं कुछ और नाम बताया होगा.

जोऊ नाम हुइए. बा कमीन ने हमाई इज्ज़त को खराब करबे की कोशिश करी है. बस जा बात हम जानत हैं.

भौजी अब गुस्सा छोड़ भी दो. जिन्हें उसने देहाती औरत कहा था, जब वो ही बुरा नहीं मान रहे.

बे बेशक न माने पर हमाई चार गाँव में इज्ज़त है. हम तो बुरो मानयें. जरूरी हतो देहाती औरत कहबो. गंवारू औरत, कस्बाई औरत या शहरी औरत कुछऊ कह देतो.

अब क्या बताएँ भौजी उसने तो उन्हें कोहनी मार कर भी गिरा दिया, फिर भी वे इतने क्षमाशील हैं कि उसके माफ़ी माँगने पर झट से माफ़ी दे डाली.

धत तेरे की कैसे आदमी हैं. उनसे अच्छी तो हम औरतईं हैं. हमें कोई कोहनी गलती सेऊ मार के देखे. अगर बाकी कोहनी मार-मारके पीठ न टोर डारी, तो हमऊ तुम्हारी भौजाई नहीं.

भौजी इतना गुस्सा सेहत के लिए ठीक नहीं है.

अरे भाड़ में गई सेहत. जब इज्ज़तई नहीं रहिए, तो सेहत को का अचार डारियें.

भौजी मैं पहले ही आपको बता चुका हूँ, कि देहाती औरत आपके लिए नहीं किसी और के लिए कहा गया था और जिसने ये शब्द कहे थे वह खुद ही दूसरे देश के ठुमको पर मुज़रा करने वाली बेगैरत औरतरुपी आदमी है.

ठीक है हमने तुम्हारी जा बात मानी, कि बू आदमी बेगैरत औरत है पर अपने देश वाले को तो गैरत वालो हुईबे चाहिए. ससुरे ने अगर कछु उलटो-सीधो कहो हतो तो एक घुमाय के बाके दे नहीं सकत हते.

भाभी अब क्या बोलूँ?

हमाय से गाँव में कोई जरऊ सी बदतमीजी करत है, बाकी तो हम ऐसी मरम्मत करत हैं कि जा जनम में तो बू हमसे उलझबे से रहो.

अब भौजी आप जैसी शक्ति और स्वाभिमान तो हर किसी में नहीं हो सकता न.

काहे नहीं हुय सकत. स्वाभिमान आसमान से थोड़े ही तपकत है. बू तो इंसान की सोच में होत है.
भौजी इसी सोच की तो कमी है और शायद इसी कारण उनसे स्वाभिमान दूर भागता है.

अच्छा देवर जी एक बात तो बताओ?

हाँ पूछिए.

दालीपा को मोड़ा बताय रहो हतो, कि अपने देश के वे महाराज इत्ती बेईज्ज़ती सुनबे के बादऊ बा 
आदमी से बात करन गए हैं. ऐसी का बात है जो इत्ती जरूरी हती, कि बेईज्ज़ती सहबे के बादऊ करी जाय.

भौजी जो भी आपने सुना है वो बिल्कुल ठीक सुना है. ये बात कई सालों से चल रही है और यूँ ही चलती रहेगी.

तो बातचीत से कछु हल नहीं निकरो?

हल निकलेगा न! अगली बातचीत या कहें अगली वार्ता का प्रस्ताव.

दोनों लोग बातें करबे के तगड़े शौक़ीन लगत हैं.

हाँ शायद आपकी बात सच है. तभी तो सालों-साल से बातचीत का ये सिलसिला जारी है.

जाको मतलब गाँव में हम बिना बातई में बदनाम हैं, कि हम जादा बात करत हैं. हमाए उस्ताद तो
जे बातचीत करन वाले हैं.

हा हा हा भौजी शायद आप ठीक ही कह रहीं हैं.

चलो छोड़ो जब उनहईं को शरम नहीं है तो हम देहाती औरत काहे बिना बात में परेशान होयें.

भौजी आपने अब बिल्कुल ठीक फैसला लिया है. चलिए अब मुझे आज्ञा दें. दरवाजे पर आपकी पड़ोसन चुन्नी आपसे मिलने को खड़ी है.

ठीक है देवर जी आत रहियो अपनी भौजी से मिलन को. हाँ चुन्नी का बात हुय गई?

कछु नहीं हम तो जा देखन आए हते, कि शहरी देबर को आज देहाती औरत याद कैसे आय गई?

कलमुँही तूने फिर मोय देहाती औरत कहके चिड़ाओ. अब तू बच के दिखा. आज हम तेरी पीठ अपनी कोहनी से टोर के रहियें.

और भौजी चुन्नी के पीछे चीते की फुर्ती से भागीं. उन्हें भागते देखकर मेरे मन में प्रश्न कौंध रहा था, कि देहाती औरत की संज्ञा अपमानजनक है या फिर सम्मानजनक?

सुमित प्रताप सिंह
इटावा, दिल्ली, भारत