हम इंसान भी फितरतें अजीब रखते हैं
                                          
                                          
                                            देकर ज़ख्म,अपने दर्दों का हिसाब रखते हैं,
                                          
                                          
                                            कहाँ ? कब ? क्यों? और क्या किया?
                                          
                                          
                                            ये भूल कर, दूसरों की किताब रखते हैं,
                                          
                                          
                                            दिखा कर आईना अपनी हसरतों का
                                          
                                          
                                            न जाने गुनाह कितनी बार करते हैं,
                                          
                                          
                                            तोड़ते हैं उसूलों को, कदम दर कदम
                                          
                                          
                                            और सरे राह उसूलों की बात करते हैं,
                                          
                                          
                                            दिए थे गम गए बरस,न जाने कितने
                                          
                                          
                                            इस बरस उम्मीदों की आरज़ू रखते हैं,
                                          
                                          
                                            ज़माने भर में कर के रुसवा दोस्तों को  
                                          
                                          
                                            साथ चलने की शिकायत बार-बार करते हैं,
                                          
                                          
                                            दिखा कर,जता कर नाराज़गी का चलन,
                                          
                                            वफाओं के आलम की चाहत रखते हैं.   
                                          
                                          
                                            रविश 'रवि'
                                          
                                          
                                          
                                            फरीदाबाद