न जाने
कैसे गुजरेगा
अब के बरस ....
सर्दियों का मौसम !!!
सपनों के धागों से बुना स्वेटर
उधड़ गया है
जगह-जगह से !!!!
उम्मीदों की रजाई में
गांठें पड़ गयी हैं
रुई की !!!
और
जिस धूप के तवे पर
सिकतीं थीं रोटियां
वो धूप ...
चटक गयी है
कई जगह से !!!
न जाने
कैसे गुजरेगा
अब के बरस
सर्दियों का मौसम !!!
रविश ‘रवि’
फरीदाबाद