बसंत पंचमी ( बसंतोत्सव एवं सरस्वती देवी का पूजन महोत्सव )
हमारी संस्कृति मे व्रत पर्व एवं उत्सवों की विशेष प्रतिष्ठा है । यहाँ कोई दिन ऐसा नहीं होता जिस दिन कोई न कोई व्रत या पर्व उत्सव न मनाया जाता हो । माघ की शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत का आगमन होता है और इस दिन बसंत की पूजा नई आम की बौर , नई गेहूं की बाली , पीले फूल , आम के नए पत्तों द्वारा की जाती है । इसी दिन सरस्वती माता की आराधना की जाती है । भगवती सरस्वती विद्या , बुद्धि , ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी है तथा सर्वदा शास्त्र - ज्ञान को देने वाली है । उनका विगृह शुद्ध ज्ञान मय एवं आनन्द मय है । उनका तेज दिव्य एवं अपरिमेय है और वे ही शब्दब्रम्ह के रूप मे स्तुत होती है । सृष्टि काल मे ईश्वर की आद्याशक्ति ने अपने को पाँच भागों मे विभक्त कर लिया था । वे राधा , पद्मा , सावित्री , दुर्गा , और सरस्वती के रूप मे भगवान श्री कृष्ण के विभिन्न अंगों से प्रकट हुई थी । उस समय श्री कृष्ण के कंठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ ।
इनके अनेक नाम है जिनमे से वाक ,वाणी , गीः , गिरा , भाषा , शारदा , वाचा , धीश्वरी , ब्राम्ही , गौ , सोमलता , वाग्देवी , और वाग्देवता आदि अधिक प्रसिद्ध है । भगवती सरस्वती की महिमा असीम है , ऋग्वेद के १० / १२५ सूक्त के आठवे मंत्र के अनुसार वाग्देवी सौम्य गुणों की दात्री तथा वसु रुद्रादित्यादी सभी देवताओं की रक्षिका है । वे राष्ट्रिय भावना प्रदान करती है तथा लोकहित के लिए संघर्ष करती है । श्रष्टि निर्माण वाग्देवी का कार्य है ।
बसन्त पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है । अतः इसको श्री पंचमी भी कहते है , सरस्वती की उत्पत्ति तत्त्व गुण से हुई है इसलिए इनकी पूजा मे प्रयुक्त होने वाली अधिकांश वस्तुएँ श्वेत वर्ण की होती हैं । इसलिए बसंत पंचमी पर बसंत के आगमन और सरस्वती पूजा का महोत्सव मनाते है ।