भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में आई.ए.एस. एक महत्वपूर्ण पद है। पर इस पद को धारण करने वालों को आज तक ये पता नहीं है उन्हें भारत सरकार ने किस कार्य के लिए चयनित किया है। एक जनपद में नियुक्त जिलाधिकारी जब तक ये पता कर पता है, कि जनपद की भौगोलिक स्थिति क्या है? जनपद की प्रशासनिक स्थिति क्या है? जनपद की आवश्यकता क्या है? किन्तु जनपद के लिए मास्टर प्लान बनाने के पहले ही उसका स्थानान्तरण अन्य जनपद में कर दिया जाता है और फिर वही क्रम चालू हो जाता है। कभी सचिवालय, कभी निदेशालय तो कभी जनपद के बीच रिटायरमेंट कब आ जाता है पता ही नहीं चलता है। अगर कोई एक्टिव अधिकारी किसी महत्वपूर्ण योजना का निर्माण कर भी ले, तो उसे क्रियान्वित करने का अवसर मिलना असंभव सा है। ऐसे में किसी विभाग में सुधार के लिए कोई अधिकारी प्रयास क्यूँ करें? जीवन में कम से कम 50-60 स्थानान्तरण के साथ नयी जगह से तालमेल बिठाना तथा अपने बच्चों और परिवार की चिंता ही इस पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी रह जाती है। शायद सरकार ने कभी यह कोशिश नहीं की कि विशेष विभाग या जनहित की महत्वपूर्ण योजनाओं के लिए पूर्णकालिक प्रशासनिक अफसरों को तैयार किया जाए और नियुक्ति कर योजनाओं के निर्माण और क्रियान्वयन के लिए उनकी जबाबदेही तय की जाए। शिक्षा विभाग के वरिष्ठतम पद पर तैनात अधिकारी यदि शिक्षा शास्त्र के ज्ञाता नहीं अथवा स्वास्थ्य विभाग के योजना निर्माता को अगर दवाओं की जानकारी नहीं, तो क्या आप उनसे बेहतर योजनाओं के निर्माण और क्रियान्वयन की उम्मीद कर सकते हैं। ऐसे में आगे आने वाले समय में नवीन योजनाओं का निर्माण तो होगा लेकिन उनके बेहतर क्रियान्वयन की उम्मीद ना ही करें तो अच्छा होगा।
अवनीन्द्र सिंह जादौन
इटावा, उ.प्र.