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गुस्सा छोड़

Saturday, September 13, 2014

एक पत्र पत्थरबाजों के नाम


माननीय पत्थरबाजो

सादर भुगतस्ते!

और कैसे हैं आप? पत्थरबाजी कैसी चल रही है? सुरक्षाबलों के ऊपर रोज कितने पत्थर फैंककर दुश्मनी निभाई जा रही है? लाल चौक पर देशद्रोही गतिविधियां करके पाकिस्तानी झंडा ठीक से फहरा रहे हैं या नहीं? उम्मीद करता हूँ कि भारतीय तिरंगा जलाकर अपने देशद्रोही होने का सबूत नियम से दे रहे होगे क्या कहा इन दिनों ये सब नहीं कर पा रहे हैं? अच्छा तो इन दिनों आपकी किस्मत रुपी भैंस डूब रखी है? वैसे इन दिनों आप सब पर जो बीत रही है उसकी मुझे अच्छी तरह खबर विभिन्न संचार माध्यमों से मिल रही है अमाँ यार मैं तो बस यूँ ही दिल्लगी कर रहा था ओहो आप तो नाराज़ होने लगे अरे भाई आप सब लोगों ने इतने दिनों अपने मुल्क से दिल्लगी की तो मैंने आप सबसे ज़रा सी दिल्लगी करके कौन सी गुस्ताखी कर दी? जानता हूँ कि इन दिनों भारत के स्वर्ग यानि कि कश्मीर में, जिसे आप सब अपनी बपौती समझते हैं, कुदरत अपने भयानक रूप में आ रखी है जिसकी वजह से इन दिनों आप सब की बोलती बंद हो रखी है जिस सेना को आप सब फूटी आँख नहीं देख सकते थे, आजकल उस सेना के आगे ही हाथ जोड़कर रहम की भीख माँग रहे हैं ज़रा बीते दिनों को भी कुछ पलों के लिए भी याद करें जिस देश ने तुम्हें अपना अभिन्न अंग समझकर इतनी सुविधाएँ दीं, सस्ती बिजली, सस्ता अनाज और दिल खोलकर अनुदान दिए, घाटी में पर्यटन उद्योग को विकसित करने के लिए सरकारी कर्मचारियों को विशेष पैकेज दिए सिर्फ और सिर्फ इसलिए ताकि घाटी का विकास हो सके और आप सब लोग चैन से रहकर खुशहाल जीवन जी सकें, लेकिन तुमने तो जिस थाली में खाया उसी में छेद किया धर्म के नाम पर अन्य धर्म के अनुयायियों को काफ़िर घोषित कर उन्हें घाटी से ही खदेड़ दिया भारतीय होकर भी दुश्मन देशों के गुण गाए और आप सबकी सुरक्षा के लिए जिन सुरक्षा बलों को तैनात किया गया उन पर ही पत्थर बरसाए यह देश आप सबको अपना समझता है और आप सब इसे पराया इस देश की सेना आप सबके लिए अपनी सेना न होकर भारतीय सेना है आप सब अक्सर जन्नत और दोजख के नाम पर चिल्ल-पों करते रहते हैं न तो भई जहाँ तक अपना तजुर्बा है जन्नत और दोजख के लिए मरने की जरूरत नहीं है ये दोनों तो ऊपरवाले की कृपा से इस जन्म में ही नसीब हो जाते हैं न्याय और अन्याय का पूरा हिसाब-किताब ऊपरवाला इस धरती पर ही चुका देता है अब जैसे आप सबने प्यार का बदला नफरत से दिया, वफ़ादारी का बदला गद्दारी से दिया और दोस्ती का बदला दुश्मनी दिखाकर दिया तो ऊपरवाले का नाराज होना तो लाजमी था न उसने कुदरत के माध्यम से भयंकर रूप धरा और आप सबको जन्नत से दोजख का नज़ारा दिखा दिया हालाँकि ये और बात है कि आप सबके पापों की सज़ा आप सबके साथ-साथ कुछ बेगुनाहों को भी मिल गई अब उम्मीद है कि आप सब कुदरत के कहर से कुछ सबक लेंगे और आप सबको बचाने की खातिर अपनी जान को जोखिम में डालकर दिन-रात एक कर रहे सेना के जवानों की भावना को समझते हुए अपने दिलों में भरे हुए खतरनाक ज़हर को बाढ़ के पानी के साथ ही बहा देंगे और आगे आनेवाले एक नये भारत के निर्माण में अपना योगदान देंगे तथा भारत के स्वर्ग कश्मीर को सही मायने में स्वर्ग बनवाने में योगदान देंगे यह तब ही हो पाएगा जब आप सब खुद को एक अच्छा भारतीय नागरिक मानना शुरू करेंगे उम्मीद है कि वह दिन जल्द ही आएगा जब आप सब अपनी भारतीय सेना का स्वागत अपने हाथों से पत्थर नहीं फूल बरसाकर करेंगे और देश के दुश्मनों की साजिशों को ठेंगा दिखाकर लाल चौक पर तिरंगा फहराकर राष्ट्रगान को स्वाभिमान से गाते हुए दुनिया को दिखाई देंगे

कुदरत के शांत होने की कामना करते हुए आप सबके दिलों के बदलाव की कामना करता हुआ...

आपका एक भारतीय भाई   

लेखक: सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत 

*चित्र गूगल से साभार 
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