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Friday, August 17, 2012

पुण्य (लघु कथा)

***चित्र गूगल बाबा से साभार*** 
     नेहा सुबह की सैर के लिए घर से निकली, तो उसने रास्ते में देखा की सविता आंटी झुग्गियों के गरीब बच्चों को लड्डू बांट रहीं थीं. नेहा ने उनसे पूछा,"आंटी आज कोई खास बात है, जो आज इन बच्चों को मिठाई खिलाई जा रही है?" सविता आंटी ने मुस्कराते हुए कहा, "अरे बेटी कोई खास बात नहीं है. घर में रखे-रखे इन लड्डुओं में बदबू आनी शुरू हो गई थी. मुझे लगा, कि अगर घर में  बच्चों ने इन्हें खा लिया, तो बीमार पड़ जाएँगे. अब इन झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों को तो गन्दा-संदा सब हजम हो जाता है. मैंने सोचा, कि इन लड्डुओं को इन्हें ही बांट दूँ. कम से कम इस बहाने कुछ पुण्य तो मिल जाएगा."

लेखिका- संगीता सिंह तोमर 

10 comments:

  1. SushmajeeAugust 17, 2012 at 2:02 PM

    aisa punya na hi kiya jaye to achcha hai..

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    1. संगीता तोमर Sangeeta TomarAugust 18, 2012 at 1:43 PM

      शुक्रिया! सुषमा जी.

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  • Kailash SharmaAugust 17, 2012 at 2:49 PM

    मानव स्वभाव का एक कटु पहलू...

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    1. संगीता तोमर Sangeeta TomarAugust 18, 2012 at 1:45 PM

      शुक्रिया! कैलाश शर्मा जी.

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  • सोशल जस्टिस फाउंडेशन SOCIAL JUSTICE FOUNDATIONAugust 18, 2012 at 3:37 PM

    यह तो सरासर पाप है पुण्य नहीं.

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    1. संगीता तोमर Sangeeta TomarAugust 19, 2012 at 1:01 PM

      आपका आभार!

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  • पवन *चंदन*August 18, 2012 at 4:49 PM

    लडडू के साथ साथ मानसिकता भी सड़ गयी है...

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    1. संगीता तोमर Sangeeta TomarAugust 19, 2012 at 1:03 PM

      शुक्रिया!पवन *चंदन* अंकल.

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  • vandanaOctober 22, 2012 at 6:38 AM

    संचयवादी सोच पर बहुत सही कटाक्ष किया संगीता जी जब सड़ने लगता है तभी बांटने की सोचते हैं लोग उससे पाले नहीं

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  • संगीता तोमर Sangeeta TomarMarch 23, 2013 at 11:20 AM

    धन्यवाद वंदना जी.....

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