पुण्य (लघु कथा)
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***चित्र गूगल बाबा से साभार*** |
नेहा सुबह की सैर के लिए घर से निकली, तो उसने रास्ते में देखा की सविता आंटी झुग्गियों के गरीब बच्चों को लड्डू बांट रहीं थीं. नेहा ने उनसे पूछा,"आंटी आज कोई खास बात है, जो आज इन बच्चों को मिठाई खिलाई जा रही है?" सविता आंटी ने मुस्कराते हुए कहा, "अरे बेटी कोई खास बात नहीं है. घर में रखे-रखे इन लड्डुओं में बदबू आनी शुरू हो गई थी. मुझे लगा, कि अगर घर में बच्चों ने इन्हें खा लिया, तो बीमार पड़ जाएँगे. अब इन झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों को तो गन्दा-संदा सब हजम हो जाता है. मैंने सोचा, कि इन लड्डुओं को इन्हें ही बांट दूँ. कम से कम इस बहाने कुछ पुण्य तो मिल जाएगा."
लेखिका- संगीता सिंह तोमर
aisa punya na hi kiya jaye to achcha hai..
ReplyDeleteशुक्रिया! सुषमा जी.
Deleteमानव स्वभाव का एक कटु पहलू...
ReplyDeleteशुक्रिया! कैलाश शर्मा जी.
Deleteयह तो सरासर पाप है पुण्य नहीं.
ReplyDeleteआपका आभार!
Deleteलडडू के साथ साथ मानसिकता भी सड़ गयी है...
ReplyDeleteशुक्रिया!पवन *चंदन* अंकल.
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