मित्रो सादर ब्लॉगस्ते! आप यहाँ तक आएँ हैं तो निराश होकर नहीं जाएँगे I यहाँ आपको 99% उत्कृष्ट लेखन पढ़ने को मिलेगा I सादर ब्लॉगस्ते पर प्रकाशित रचनाएँ संपादक, संचालक अथवा रचनाकार की अनुमति के बिना कहीं और प्रकाशित करने का प्रयास न करें I अधिक जानकारी के लिए [email protected], [email protected] पर अथवा 09818255872 पर संपर्क करें I धन्यवाद... निवेदक - सुमित प्रताप सिंह, संपादक - सादर ब्लॉगस्ते!
पापा, भैया लोग मुझे ऐसी अजीब सी नज़रों से क्यों घूर रहे थे?
चित्र गूगल से साभार
ग्यारह बसंत पूरे कर चुकी मेरी बिटिया के एक सवाल ने मुझे न केवल चौंका दिया बल्कि उससे ज्यादा डरा दिया.उसने बताया कि आज ट्यूशन जाते समय कुछ भैया लोग उसे अजीब ढंग से घूर रहे थे.यह बताते हुए हुए उसने पूछा कि-"पापा भैया लोग ऐसे क्यों घूर रहे थे? भैया लोग से उसका मतलब उससे बड़ी उम्र के और उसके भाई जैसे लड़कों से था.खैर मैंने उसकी समझ के मुताबिक उसके सवाल का जवाब तो दे दिया लेकिन एक सवाल मेरे सामने भी आकर खड़ा हो गया कि क्या अब ग्यारह साल की बच्ची भी कथित भैयाओं की नजर में घूरने लायक होने लगी है? साथ ही उसका यह कहना भी चिंतन का विषय था कि वे अजीब निगाह से घूर रहे थे.इसका मतलब यह है कि बिटिया शायद महिलाओं को मिले प्रकृति प्रदत्त 'सेन्स' के कारण यह तो समझ गयी कि वे लड़के उसे सामान्य रूप से नहीं देख रहे थे लेकिनकम उम्र के कारण यह नहीं बता पा रही थी कि 'अजीब' से उसका मतलब क्या है.हाँ इस पहले अनुभव(दुर्घटना) ने उसे चौंका जरुर दिया था. दरअसल सामान्य मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों की तरह उसने भी अभी तक यही सीखा था कि हमउम्र लड़के-लड़कियां उसके दोस्त हैं तो बड़े लड़के-लड़कियां भैया और दीदी. इसके अलावा कोई और रिश्ता न तो उसे अब तक पता है और न ही उसने अभी तक जानने की कोशिश की, लेकिन इतना जरुर है कि इस अजीब सी निगाहों से घूरने की प्रक्रिया ने हमें समय से पहले उसे समाज के अन्य रिश्तों के बारे में समझाने के लिए मजबूर जरुर कर दिया.
बिटिया के सवाल के जवाब की जद्दोजहद के बीच अखबार में छपी उस खबर ने और भी सहमा दिया जिसमें बताया गया था कि एक नामी स्कूल के बस चालक और कंडक्टर ने छः साल की नन्ही सी बच्ची का दो माह तक यौन शोषण किया और डरी सहमी बच्ची अपनी टीचर की पिटाई की धमकी के डर से यह सहती रही. क्या हो गया है हम पुरुषों को? क्या अब बच्चियों को घर में बंद रखना पड़ेगा ताकि वह उस उम्र में किसी पुरुष की कामुक निगाहों का शिकार न बन जाए जबकि उसके लिए पुरुष पापा,भाई,अंकल,ताऊ,दादा जैसे रिश्तों के अलावा और कुछ नहीं होते और जिनकी गोद में वह स्त्री-पुरुष का भेद किये बिना आराम से बैठ एवं खेल सकती है. यदि अभी से बच्चियों पर इस तरह की पाबन्दी थोपनी पड़ी तो फिर वह भविष्य में लार टपकाते पुरुषों का सामना कैसे करेगी?आखिर कहाँ जा रहा है हमारा समाज! हम बेटियों को कोख में ही मारने का षड्यंत्र रचते हैं,यदि वे किसी तरह बच गयी तो सड़क पर या कूड़ेदान में फेंक दी जाती हैं और यदि यहाँ भी उनमें जीवन की लालसा रह गयी तो फिर हम कामुक निगाहों से घूरते हुए उनके साथ अशालीन हरकतों पर उतर आते हैं.किसी तरह उनकी शादी हुई तो दहेज के नाम पर शोषण और फिर बेटी को जन्म देने के नाम पर तो घर से ही छुट्टी मानो बेटी पैदा करने में उसकी अकेले की भूमिका है? यह सिलसिला चलता आ रहा है और हम चुपचाप देख रहे हैं. क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? क्यों नहीं हम अपने बेटे को भैया और उसकी निगाहों को शालीन रहने के संस्कार देते?बड़े होने पर उसे लड़कियों का भक्षक बनने की बजाय रक्षक बनने की शिक्षा क्यों नहीं देते?बच्चियों को ताऊ,पिता और भैया की आयु के पुरुषों और शिक्षक से भी यौन हिंसा का डर सताने लगे तो फिर इस सामाजिक ताने-बाने का क्या होगा? महिला में हमें उपभोग की वस्तु ही क्यों दिखती है? ऐसे कई ज्वलंत प्रश्न हैं जिन पर अभी विचार नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा समाज महिला विहीन हो जायेगा और माँ-बहन-बेटी जैसे रिश्ते पौराणिक कथाओं के पात्र!.
17 comments:
पी के शर्माSeptember 13, 2012 11:23 AM
आने वाली पीढ़ी में पारिवारिक शिक्षा का अभाव है... इस कमी की तरफ अभी किसी का ध्यान नहीं जा रहा है...जो शिक्षा संस्थाएं पारिवारिक मूल्यों को महत्व देती हैं उनको संप्रदाय विशेष से जोड़कर देखा जाने लगता है और धर्मनिर्पेक्षता की दुहाई दी जाने लगती है। जो मिशनरियों पब्लिक स्कूल चलाती हैं वो भारतीय पंरपराओं के अनुरूप्ा शिक्षा दे रहीं हैं या नहीं, ये देखने वाला कोई निगरानी तंत्र भी नहीं है....
ReplyDelete
Replies
संजीव शर्माOctober 8, 2012 3:14 PM
सही बात है शर्मा जी जब लोग एकल परिवार को ही सब कुछ समझने लगेंगे तो समाज में संस्कारों में कमी आना तय है....
Delete
Reply
सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghSeptember 13, 2012 11:29 AM
नैतिक शिक्षा को पारिवारिक जीवन व स्कूल के पाठ्यक्रम से तड़ीपार करने का खामियाजा है यह...
ReplyDelete
Replies
संजीव शर्माOctober 8, 2012 3:15 PM
शुक्रिया सुमित जी...आपने गागर में सागर जैसी बात कह दी..
Delete
Reply
Kunwar Amit Singh (कुंवर अमित सिंह मुंढाड)September 13, 2012 11:46 AM
आज की सच्चाई
ReplyDelete
Replies
संजीव शर्माOctober 8, 2012 3:15 PM
धन्यवाद कुंवर जी
Delete
Reply
Ratan singh shekhawatSeptember 13, 2012 12:55 PM
नैतिक शिक्षा तो अब हमारी बातों में ही रह गयी है बस|
और थोड़े समय बाद नैतिकता,ईमानदारी आदि बाते सिर्फ हमारे साहित्य में रह जायेगी|
ReplyDelete
Replies
संजीव शर्माOctober 8, 2012 3:16 PM
वाकई यदि अभी भी हमारी आँखे नहीं खुली तो नैतिकता जैसी बाते इतिहास का हिस्सा बन जायेगी...
Delete
Reply
shikha varshneySeptember 13, 2012 5:13 PM
क्या इसके पीछे हमारी खुद की मानसिकता दोषी नहीं ? हमारे खुद की पारिवारिक शिक्षा ? जहाँ बेटी को तो बीस हजार शिक्षाएं दी जाती हैं कि यह मत करो, वह मत पहनो, ऐसे मत बैठो, यूँ मत हँसो, ऐसे मत बोलो ....पर लडको को किसी शिक्षा की जरुरत नहीं समझी जाती बड़े अभिमान से कह दिया जाता है अरे वो तो लड़का है ..हम क्यों नहीं तब यह समझते कि यही एटीट्युट पडोसी भी अपने घर में रख रहा होगा फिर हो सकता है उसके घर का लड़का हमारे घर की बेटी को अजीब नजरों से घूरे और हमारा बेटा उसकी बेटी को.
ReplyDelete
Replies
संजीव शर्माOctober 8, 2012 3:18 PM
आपने पते की बात कही है शिखा जी ...ज्यादातर परिवारों में यही हो रहा है..सभी को बास लड़के की फिर्क है क्योंकि बिटिया तो बनी है संस्कार की सलीब ढोने के लिए..लेकिन आप-हम पहल करेंगे तभी हालात बदलेंगे...अच्छी प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया
Delete
Reply
AnonymousSeptember 14, 2012 3:49 PM
YE SAB HAMARI EDUCATION POLICY KI HI DEN HAI...AAJ NAITIK SHIKSHA KI JAGAHA HAMRE EDUCATION MINISTER SEX EDUCATION KI PARVI KAR RAHE TO NISCHIT HI SAMAJ KA PATAN TO HOGA HI ....OR RAHI SAHI KASAR TV OR MEDIA PURI KAR DETE HAI
ReplyDelete
Replies
संजीव शर्माOctober 8, 2012 3:20 PM
आपका मानना उचित है कि सरकार-मीडिया और टीवी ने इन दिनों संस्कारों की ऐसी काकटेल बना दी है कि बच्चे भ्रमित हो गए हैं लेकिन अभिभावक आगे बढ़कर उन्हें सहारा दे तो बात बिगड़ने से बच सकती है
Delete
Reply
Kunwar Amit Singh (कुंवर अमित सिंह मुंढाड)September 15, 2012 5:54 PM
जब भी किसी की माँ, बीवी,,बहन,,बेटी,,,पर बुरी नजर डालने का ख्याल आए,
एक दफा अपनी माँ, बीवी,,बहन,,बेटी,,के बारे में जरूर सोच लेना....''कुंवर अमित''
ReplyDelete
Replies
संजीव शर्माOctober 8, 2012 3:21 PM
आपने तो संस्कारों का मूलमंत्र दे दिया है..बास इतनी सी बात सभी समझ लें तो आधी से ज्यादा समस्याएं खत्म हो जाएँगी..
Delete
Reply
S.R.BhartiSeptember 20, 2012 2:39 PM
Bahut hi sunder lekhan logon ki ankhey kholne ke liye.
ReplyDelete
Replies
संजीव शर्माOctober 8, 2012 3:21 PM
शुक्रिया भारती जी आपकी सराहना के लिए
Delete
Reply
वीरेश अरोड़ाOctober 8, 2012 9:57 PM
अनुत्तरित प्रश्न .......... ये नैतिक शिक्षा का आभाव ही कहा जायेगा.
ReplyDelete
Add comment
Load more...
यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!
आने वाली पीढ़ी में पारिवारिक शिक्षा का अभाव है... इस कमी की तरफ अभी किसी का ध्यान नहीं जा रहा है...जो शिक्षा संस्थाएं पारिवारिक मूल्यों को महत्व देती हैं उनको संप्रदाय विशेष से जोड़कर देखा जाने लगता है और धर्मनिर्पेक्षता की दुहाई दी जाने लगती है। जो मिशनरियों पब्लिक स्कूल चलाती हैं वो भारतीय पंरपराओं के अनुरूप्ा शिक्षा दे रहीं हैं या नहीं, ये देखने वाला कोई निगरानी तंत्र भी नहीं है....
ReplyDeleteसही बात है शर्मा जी जब लोग एकल परिवार को ही सब कुछ समझने लगेंगे तो समाज में संस्कारों में कमी आना तय है....
Deleteनैतिक शिक्षा को पारिवारिक जीवन व स्कूल के पाठ्यक्रम से तड़ीपार करने का खामियाजा है यह...
ReplyDeleteशुक्रिया सुमित जी...आपने गागर में सागर जैसी बात कह दी..
Deleteआज की सच्चाई
ReplyDeleteधन्यवाद कुंवर जी
Deleteनैतिक शिक्षा तो अब हमारी बातों में ही रह गयी है बस|
ReplyDeleteऔर थोड़े समय बाद नैतिकता,ईमानदारी आदि बाते सिर्फ हमारे साहित्य में रह जायेगी|
वाकई यदि अभी भी हमारी आँखे नहीं खुली तो नैतिकता जैसी बाते इतिहास का हिस्सा बन जायेगी...
Delete