Wednesday, November 28, 2012

शोभना काव्य सृजन पुरस्कार प्रविष्टि संख्या - 3


कविता: मुझे इंतज़ार रहेगा ओ समाज के ठेकेदारों !

स्त्री पुरुष

विवादित स्वरुप

सदा से दो गोलार्ध

होता रहा हमेशा

संवेदनाओं का उत्खनन

नहीं हो पायी पहचान 

ना स्त्री ने जाना 

ना पुरुष ने जाना
बस लकीर के फकीर बने
दोनों चलते रहे 
अपने अपने हाशियों पर 
साथ होते हुए भी पृथक 
स्त्री की पवित्रता बनी उसकी देह
आखिर क्यों ?
क्या वो पुरुष जो हुआ दिग्भ्रमित
या जिसने जान बूझकर 
खुद को सौंप दिया 
किसी अनजान बिस्तर को 
क्या वो ना हुआ अपवित्र
फिर ये दोहरा अवलोकन क्यों ?
आचार विचार मान्यताएं रस्मों - रिवाज़ 
होते तो दोनों के लिए ही हैं
क्योंकि समाज कभी एक से नहीं बनता
और जब सह अस्तित्व की बात हो 
तो क्यों मापदंड बदल जाते हैं ?
क्या स्त्री का जन्म कोख से ना होकर
किसी श्राप से हुआ है 
जो सिर्फ वो ही उस दुराचार की शिकार बने 
क्या पुरुष जो खुद जान बूझकर 
खाई में उतरा है 
उसका जन्म ही सार्थक है 
क्योंकि वो पुरुष है 
इसलिए सब उसे माफ़ है 
क्यों हैं ये दोहरे मापदंड?
क्यों भरी गयी स्त्री के मन में ये आत्मग्लानि ?
क्यों हर दंश उसके हिस्से में ही आया ?
क्यों नहीं उसे भी समाज की एक 
बराबर की इकाई स्वीकारा गया ?
कहीं ना कहीं कोई ना कोई तो कारण रहा होगा
रही होगी कहीं कोई दोषपूर्ण व्यवस्था 
जिसने स्त्री को दोयम दर्जा दिया होगा
जबकि शास्त्रों में तो स्त्री को सबसे ऊंचा दर्जा मिला है
फिर क्यूँ उसे देह ही समझा गया है
और भोग्या की छवि से नवाज़ा गया है 
जो कर्म एक के लिए अमान्य है 
वो दूजे के लिए कैसे स्वीकार्य हुआ 
अब ये विश्लेषण करना होगा 
एक नया शास्त्र गढ़ना होगा
और दोषपूर्ण व्यवस्था को बदलना होगा 
तभी स्त्री पुरुष 
विवादित स्वरुप ना रहकर
सह अस्तित्व के महत्त्व को सार्थक दर्शन दे पाएंगे 
और एक नए सभ्य समाज का निर्माण कर पाएंगे
 जैसे 
पुरुष की देह उसकी पवित्रता का मापदंड नहीं
वैसे ही स्त्री की देह भी उसकी पवित्रता का मापदंड नहीं
क्योंकि 
दोनों देह से इतर 
अपने अपने व्यक्तित्व से
आलोकित इन्सान हैं 
जिनके हर कर्त्तव्य और अधिकार समान हैं 
फिर कैसे देह के मापदंड पर पूरा चरित्र कसा जा सकता है 
हो कोई उत्तर तो जवाब देना 
मुझे इंतज़ार रहेगा .........ओ समाज के ठेकेदारों !

रचनाकार: सुश्री वन्दना गुप्ता


निवास:
आदर्श नगर,
दिल्ली---110033


7 comments:

  1. दीपक शर्मा कुल्लुवी DEEPAK SHARMA KULUVINovember 28, 2012 at 5:01 PM

    truly said vandana ji

    duel standards should defiantly be changed.wonderful reality based poem.

    deepak sharma kuluvi

    ReplyDelete
  2. Kailash SharmaNovember 28, 2012 at 6:29 PM

    बहुत सुन्दर और सार्थक रचना...

    ReplyDelete
  3. Kewal Anand JoshiNovember 29, 2012 at 4:58 PM

    kavya rachnao ke alawa anya kisi vidha me aap
    purashkrit karte he -- jaise -- itihaas lekhan-- mithological
    contents and -- daily astrology in www.navbharattimes.com

    Pt.Kewal Anand Joshi
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    New Delhi(India)
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  4. Kewal Anand JoshiNovember 29, 2012 at 5:01 PM

    Asstha aur Chintan me mere 52 Blogs Hindi
    Mythological subjects ke chape hen -- aap
    khud chek kar sakte he --mera latest blog
    abhi Homepage se linked ho raha hai ...


    Pt. Kewal anand Joshi

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  5. expressionDecember 2, 2012 at 1:13 PM

    बहुत सुन्दर कविता....
    बधाई वंदना जी,इस सार्थक सृजन हेतु...

    अनु

    ReplyDelete
  6. AnitaDecember 2, 2012 at 5:24 PM

    बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है ! ये दोहरे मापदंड आख़िर क्यों ???
    सार्थक रचना !
    ~सादर !!!

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  7. sushma 'आहुति'December 7, 2012 at 9:15 PM

    खुबसूरत अभिवयक्ति......

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