कांग्रेसनीत यूपीए सरकार का कार्यकाल देखकर यह तो नहीं लगता कि इस सरकार के पास देश चलाने की जिम्मेदारी थी। जिस तरह बीते पांच साल में घोटालों की बाढ़ आई है उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि यूपीए की सरकार हजारों हाथ से देश को लूट रही है। मंत्री से सरकारी पद तक सब नीलाम हो रहे हैं, बस खरीददार की जेब में दाम हो। टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले ने बताया कि सरकार में मनचाहा मंत्रालय किस तरह बिकता है और अब रेल मंत्री पवन बंसल के भांजे विजय सिंगला ने संवैधानिक पद की भी दलाली खाकर बता दिया कि कांग्रेस के राज में सब बिकाऊ है। मामा-भांजे की जोड़ी ने महेश कुमार को वेस्टर्न रेलवे जीएम से रेलवे बोर्ड का सदस्य बनाने के लिए १० करोड़ की रिश्वत ली। सीबीआई ने भांजे को रंगेहाथ पकड़ा। बेशर्मी की हद है कि प्रधानमंत्री सहित पूरी कांग्रेस रेलमंत्री पवन बंसल के बचाव में आ खड़ी हुई। इसके लिए बेजोड़ तर्क दिया गया कि मंत्री जी का इसमें क्या दोष है, यह तो उनके रिश्तेदार की करतूत है। एक साधारण-सा आदमी भी इतना सहज ज्ञान रखता है कि पवन बंसल की शह के बिना भांजा विजय सिंगला इतना बड़ा कारनामा नहीं कर सकता था। अलबत्ता सीबीआई की रिपोर्ट भी पवन बंसल को इस रिश्वत काण्ड में लिप्त मानती है। कांग्रेस की बेशर्मी पर यहीं लगाम नहीं लगता, विपक्ष यानी भारतीय जनता पार्टी की ओर से इस्तीफा मांगने पर कांग्रेस के प्रवक्ता कहते हैं कि भाजपा को तो इस्तीफा मांगने की बीमारी हो गई है। यूं तो विपक्ष अपने धर्म का निर्वहन कर रहा था। फिर भी मान लिया कि भाजपा को इस्तीफा मांगने की बीमारी हो गई। लेकिन, क्या कांग्रेस के नेता और प्रवक्ता बता सकते हैं कि आए दिन प्रधानमंत्री और मंत्रियों के इस्तीफे मांगने का मौका भाजपा को कौन दे रहा है? क्या यह सच नहीं कि हर माह औसत एक बड़ा भ्रष्टाचार इन पांच सालों में सामने आया है। हालात ये हैं कि प्रधानमंत्री को भी ऐसी सरकार से शर्मिंदा होकर खुद ही इस्तीफा दे देना चाहिए। भांजे के रंगेहाथ पकड़े जाने के बाद भी पवन बंसल मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। एक जमाना था जब रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री हुआ करते थे, उन्होंने एक रेल दुर्घटना पर ही इस्तीफा दे दिया था। क्योंकि उन्हें अपनी नैतिक जिम्मेदारी का भान था। कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के किसी भी मंत्री यहां तक कि सौम्यता और ईमानदारी का लबादा ओढ़े प्रधानमंत्री से भी इस स्तर की नैतिकता, शुचिता की राजनीति की अपेक्षा नहीं की जा सकती। जिस सरकार का ध्येय ही भ्रष्टाचार हो गया हो, उससे आप उम्मीद भी क्या कर सकते हैं। कांग्रेस का हाथ भी अब गरीब के साथ नहीं बल्कि गरीब के गिरेबां पर है और भ्रष्टाचारियों के साथ है। जरा अतीत पर नजर डाली जाए तो स्पष्ट होता है कि आज भ्रष्टाचार की जो विशाल इमारत खड़ी दिख रही है, उसकी नींव कांग्रेस ने अपने पहले ही शासन काल में रख दी थी।
भारत में भ्रष्टाचार की पौध आजादी की तुरंत बाद ही कांग्रेस ने रोप दी थी। अनेक वीर स्वतंत्रता सेनानियों के प्राणों की आहुति देकर सन् १९४७ में भारत ने अंग्रेजों के चंगुल से शासन व्यवस्था छीनी। लेकिन, तत्कालीन कर्णधारों ने सुराज देने की जगह कुराज के बीज बो दिए। आजादी के बाद कांग्रेस के शासनकाल में ही भ्रष्टाचार का बीज अंकुरित हुआ बल्कि शनै-शनै बढ़ता भी गया। अलग-अलग समय सत्ता में रही कांग्रेस ने उस भ्रष्टाचार के पौधे को खूब खाद-पानी दिया, उसका खयाल रखा। आज वही पौधा विशाल वट वृक्ष बन गया है। उसके इस प्रिय पौधे पर जब भी कोई अंगुली उठाता है कांग्रेस उसकी खूब खिंचाई करती है। बाबा रामदेव ने वर्षों से विदेश में जमा होते आ रहे कालेधन की मांग की तो कांग्रेसनीत यूपीए सरकार उन पर डण्डा लेकर पिल पड़ी। दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन करके रात में सो रही महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों पर आंसूगैस के गोले छोड़े गए। अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार का गला घोंटा गया। बाद में इस बर्बर घटना में घायल एक महिला ने अस्पताल में दम तोड़ दिया था। जो कुछ समय पहले तक बाबा रामदेव के आश्रम में जाकर उनका आशीर्वाद लेते थे वे बाबा को ठग कहते नहीं थक रहे। वहीं कांग्रेस ने बाबा रामदेव के तमाम ट्रस्टों पर जांच बैठा दी।
अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मजबूत लोकपाल की आवाज बुलंद की तो कांग्रेस ने उन्हें घेरना शुरू कर दिया। कांग्रेस के नेता अन्ना हजारे के साथ बदतमीज पर उतर आए। उनका चरित्रहनन करने के लिए अमर्यादित भाषा का जमकर इस्तेमाल किया गया। जिस आदमी के पास अपना खुद का घर नहीं उसे बेईमान ठहराने में पीछे नहीं रहे कांग्रेसी। अन्ना के दामन पर कीचड़ उछालते समय कांग्रेस भूल गई कि उसी ने अन्ना की ईमानदार और समाजसेवी छवि के लिए उन्हें पदम् विभूषण पद से सम्मानित किया था। किरण बेदी जैसी ईमानदार महिला को भी कांग्रेस ने निशाना बनाना शुरू कर दिया। दरअसल, कांग्रेस भ्रष्टाचार को रोकना ही नहीं चाहती। वह ऐसा चाहेगी भी क्यों? उसने तो आजादी के बाद ६४ वर्षों में भ्रष्टाचार को पनपने का अवसर दिया है, संरक्षण दिया है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (सीपीआई) की १८३ देशों की सूची में भारत भ्रष्टाचार के मामले में ९५वें नंबर पर है। अगर कोई पानीदार सरकार होती तो भ्रष्टाचार के मामले में देश की यह रैंकिंग देखकर चुल्लूभर पानी में डूब मरती। स्विटजरलैण्ड बैंकिंग एसोसिएशन की रिपोर्ट भी कहती है कि स्विस बैंकों में जमा धन के मामले में भारत सबसे आगे है। यानी विदेशों भारत का कालाधन सबसे अधिक है। का
लाधन भ्रष्टाचार से ही बनाया है। आजादी के बाद से लेकर अब तक भारत में करीब ९१ सौ खरब के घोटाले प्रकाश में आ चुके हैं और अभी भी नए-नए घोटालों का जन्म तेजी से होता जा रहा है।
आजाद भारत का पहला ज्ञात घोटाला सन् १९४७ में हुआ था। सन् १९४८-४९ में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में जीप घोटाले को उनके चहेते वीके कृष्णा मेनन ने अंजाम दिया। वीके कृष्णा मेनन उस समय लंदन में भारत के हाई कमिश्नर थे। १९४८ में ही पाकिस्तान ने हमला कर दिया था। भारतीय सेना को जीपों की जरूरत आन पड़ी। जीप खरीदने की जिम्मेदारी जवाहरलाल नेहरू ने मेनन को सौंपी। मेनन ने विवादास्पद कंपनी से जरूरी औपचारिकताएं पूरी किए बिना २००० जीप खरीदने का सौदा कर लिया। इसके लिए उन्होंने कंपनी को एक लाख ७२ हजार पाउंड की राशि (८० लाख रुपए, उस समय) का भुुगतान भी कर दिया। ब्रिटेन से १५५ जीप की एक ही खेप पहुंची सकी थी। कृष्णा मेनन की करतूत से पर्दा उठ गया। १५५ जीप में से एक भी चलने की स्थिति में नहीं थी। उस समय नाममात्र के विपक्ष की मांग पर दिखाने के लिए एक जांच कमेटी बनाई गई। लेकिन, दोषी मेनन पर कार्रवाई तो दूर बल्कि उनका प्रमोशन कर दिया गया। १९५६ में वीके कृष्णा मेनन कैबिनेट मंत्री बना दिए गए। यहीं से भ्रष्टाचार को बल मिला। अगर कांग्रेस वाकई देश को सुशासन देना चाहती थी तो उसी समय जीप घोटाले के दोषी वीके कृष्णा मेनन पर कड़ी कार्रवाई कर देती तो शायद आज भारत में भ्रष्टाचार की यह स्थिति नहीं होती। कांग्रेस और उसके वरिष्ठ नेता इसी एक घोटाले पर नहीं रुके। कांग्रेस के नेताओं में होड़-सी लग गई घोटाले करने की। जीप घोटाले को दो साल भी नहीं बीत पाए थे कि साइकिल घोटाला १९५१ में सामने आ गया। यह भ्रष्टाचार की यह काली सूची दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ती गई। अब तो घोटालों में रकम का आंकड़ा करोड़ो-अरबों में पहुंच गया है। लाख रुपए के घोटाले को घोटाला ही नहीं माना जाता। सलमान खुर्शीद पर जब विकलांगों के उपयोग की सामग्री वितरण में कुछ लाख के घोटाले का आरोप लगा था तो कांग्रेस के प्रवक्ता यह कहते हुए पाए गए कि इस कदर मंत्री की औकात कम मत करो, भला मंत्री भी लाख का घोटाला करेगा क्या? यह राशि करोड़ में होती तो ही विश्वास किया जा सकता था। कांग्रेस को अपनी बची-खुची छवि बचानी है तो तत्काल भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे मंत्रियों को बर्खास्त कर देना चाहिए। वरना, यूं ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की बातों का क्या है, बातें तो सब करते हैं।
रचनाकार - श्री लोकेन्द्र सिंह राजपूत
सीनियर सब एडिटर, नई दुनिया, ग्वालियर, म.प्र.