इतिहास साक्षी है कि प्राचीन समय से ही देशभक्ति व सांस्कारिक फिल्मों ने दर्शकों के मन-मस्तिष्क पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है ; इस हद तक, कि पर्दे पर धार्मिक चरित्र की भूमिका निभाने वाले अभिनेता-अभिनेत्रियों को दर्शकों की श्रद्धा व आस्थानुरूप अपने वास्तविक जीवन में आचरण करना अनिवार्य माना जाता था , क्योंकि दर्शक उस फ़िल्मी चरित्र से संवेगात्मक रूप से इतना जुड़ जाते थे कि पत्र -पत्रिकाओं में उनका और कोई रूप सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते थे ! हालाँकि अब वह दौर नहीं रहा है और दर्शक काफी सजग हो गया है , तथा फ़िल्मी व वस्तविक चरित्र के अंतर को सहजता से स्वीकार कर लेता है , किन्तु इस बात से अब भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मीडिया द्वारा फैलाई गयी अनैतिकता का हमारे समाज में बढ़ते आपराधिक आंकड़ों से सीधा सम्बन्ध है !
इसके साथ ही सैंसर बोर्ड की भूमिका पर भी गम्भीर प्रश्न उठते हैं ! सेंसर का तो काम ही है किसी भी फिल्म अथवा कार्यक्रम द्वारा उपजने वाले सम्भावित खतरे को महसूस करना ! क्या यह व अन्य ऐसी फ़िल्में उसकी सहमति के बिना प्रदर्शित की जाती हैं ? या सही -गलत , आचरण दुराचरण और व्यभिचार को पहचानने का उनका विवेक समाप्त हो चुका है ?
न केवल फ़िल्में, बल्कि ऐसे विज्ञापनों की भी आज के समय में भरमार है , जो अश्लीलता के पौधे को पूरी तन्मयता के साथ सींच रहे हैं और समाज का एक बड़ा वर्ग उससे खासी तरह प्रभावित हो रहा है , जिसकी संख्या दिन -ब -दिन तेज़ी से बढती जा रही है ! क्या भारत में हो रहे बलात्कारों की संख्या व स्वरुप में वृद्धि इनसे प्रभावित नहीं है ? बिलकुल है !! न सिर्फ टी वी , बल्कि कम्प्यूटर व अन्य तमाम इलेक्ट्रौनिक संसाधनों की मेहरबानी से यह दुष्प्रभाव घर-घर और बच्चे-बच्चे तक पहुँच रहा है ! सस्ती और तुरंत लोकप्रियता हासिल करने वाले मॉडल्स की बाढ़ आई हुई है ! निकृष्टतम एम एम एस बनाने की होड़ लगी हुई है ! इंटरनेट स्कूली शिक्षा का एक अनिवार्य व अभिन्न अंग बन चुका है ! ऐसे में बच्चों को कैसे और कहाँ तक इंटरनेट से दूर रखा जा सकता है ? क्या इस सन्दर्भ में ब्रॉडकास्टिंग कमिटी कुछ नहीं कर सकती ? बेशक़ कर सकती है ! माता -पिता लाख कोशिश करके भी बच्चों को टीवी और इंटरनेट से फ़ैल रहे जीवाणुओं की चपेट में आने से नहीं रोक सकते ! किन्तु सेंसर बोर्ड और ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्ट्री चाहे तो सख्त कदम उठाकर इस तरह के कार्यक्रमों पर रोक लगा सकती है और मैं दावे से कह सकती हूँ कि ऐसा करने से कई दामिनियाँ और गुड़िया सुरक्षित हो जाएँगी !
रचनाकार: सुश्री रचना त्यागी 'आभा'
दिल्ली
विचारणीय आलेख
ReplyDeleteआपके विचारों से पूरी तरह सहमत हैं!
ReplyDeleteआजकल सबकुछ मोबाइल तथा सी. डी. पर सस्ते से सस्ते में मिल जाता है! और ये एक बहुत बड़ा कारण है...गंभीर और घृणित अपराधों का! इस पर किसी न किसी तरह रोक अवश्य ही लगनी चाहिए!
~सादर!!!