स्कूल की जब होती छुट्टी
ऐसा लगता मानों बगीचे में उड़ रही हो
रंग -बिरंगी तितलिया ।
तुतलाहट भरी मीठी बोली से
पुकारती अपने पापा को
पापा ...
इतनी सारी नन्ही रंग -बिरंगी तितलियों में
ढूढ़ने लग जाती पिता की आंखे ।
मिलने पर उठा लेते मुझको वे गोद में
तब ऐसा महसूस होता है
मानो दुनिया जीत ली हो
इस तरह रोज जीत लेते हैं मेरे पापा दुनिया ।
मेरी हर जिद को पूरी करते है पापा
मै जिद्दी भी इतनी नहीं हूँ
किन्तु जब मै रोती हूँ तो
पापा की आँखें रोती हैं ।
सच कहूँ ,यदि मै नहीं होती तो
मेरे पापा क्या जी पाते मेरे बिना
सोचती हूँ बेटियाँ नहीं होती तो
उनके पापा कैसे जीते होंगे ?
बेटी के बिना ।
रचनाकार: श्री संजय वर्मा "दृष्टि "
संपर्क: १ २ ५, शहीद भगत सिंग मार्ग
मनावर जिला -धार( म. प्र. )