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एंटी रोड रेज एंथम: गुस्सा छोड़

Saturday, July 27, 2013

व्यंग्य: महिला सूचना तंत्र

   हाभारत के युद्ध के बाद का दृश्य माता कुंती और पुत्र धर्मराज आमने-सामने खड़े हुए है. धर्मराज युधिष्ठर इस बात से अत्यधिक क्रोधित हैं, कि उनकी माँ कुंती ने अपने व कर्ण के माता-पुत्र के संबंध का इतना बड़ा राज़ पांडवों से आखिर क्यों छिपाया तथा साथ ही साथ उनके हृदय में अंदर ही अंदर जलन भी हो रही है, कि उनकी माता को यह बात भला कैसे पच गई? माता कुंती के चेहरे पर दुःख व गर्व के मिश्रित भाव है. दुःख है अपने ज्येष्ठ पुत्र की युद्ध में मृत्यु का और गर्व है अपनी पाचन शक्ति का. परन्तु युधिष्ठर से अपनी माँ की पाचन शक्ति देखी न गई और उन्होंने संपूर्ण स्त्री जाति को ही बात न पचा पाने का श्राप दे डाला.
युग बीते और आधुनिक काल ने दस्तक दी. एक दिन मेरी माँ ने कोई बात पड़ोस की आंटी को बताई तथा किसी और को इस बारे में न बताने का उनसे आग्रह किया. बस आरंभ हो गया आंटी जी के पेट में भयंकर दर्द. पाचन वर्धक अनेक गोलियाँ व टॉनिक लिए पर सबके सब बेअसर. उनका पेट फूलना शरू हो गया. उनके घरवाले यह देखकर बुरी तरह डर गये. डॉक्टरों को फोन किया गया. इसी दौरान आंटी जी की प्रिय सहेली आ पधारी. आंटी जी को देखकर वह मंद-मंद मुस्कुरायी. आंटी जी के घरवाले उनकी सहेली के इस व्यवहार पर बहुत विस्मित हुए और क्रोधित भी. परन्तु आंटी जी की सहेली ने उनके परिवारवालों को आश्वासन दिया और अपना कान आंटी जी के मुँह के समीप ले गयी. आंटी ने जैसे ही मध्यम स्वर में कुछ बोलना आरंभ किया, उनका पेट अपने स्वभाविक आकार में आने लगा और कुछ ही पलों में आंटी जी स्वस्थ होकर उठ खड़ी हो गईं. उनके घर वालों की भी जान में जान आई. अब परेशान होने की बारी आंटी की सहेली व उनके परिवार की थी और धीरे-धीरे मेरी माँ द्वारा बताई गई बात पूरी कालोनी में फ़ैल गई. समाप्ति का दौर तब आया जब मेरी माँ द्वारा पड़ोसन आंटी को बताई गई बात कोई सहेली मेरी माँ को ही बता गई. मेरी माता श्री भी नहीं समझ पा रही थीं, कि किसे कोसें पड़ोसन को या धर्मराज युधिष्ठर को?
हमारे देश ने स्वतंत्रता के पश्चात बहुत प्रगति कर ली है. प्रगति का सूचक मुख्य रूप से महिलायें हैं. महिला सूचना तंत्र अत्यधिक गतिशील होता जा रहा है तथा सूचना प्रदान करने वाले अत्याधुनिक यंत्रों को भी फेल करने लगा है. अभी कुछ साल पहले की ही बात है. दिल्ली में खबर उड़ी, कि दिल्ली शहर में सात चुड़ैलें घूम रही हैं तथा प्रत्येक घर के बाहर जाकर प्याज मांगती हैं और घर के सामने ही प्याज फोड़कर रोटियों के संग खाती हैं. जिस भी घर के सामने वे यह सब करती हैं, उसके परिवार का कोई भी सदस्य जीवित नहीं बचता. इनसे बचने का एक ही उपाय है, कि घर के दरवाजों पर मेंहदी के थापे लगाये जायें, तो इन थापों को देखकर चुड़ैलें दूर से देखकर भाग जाती हैं. मैंने अपने गपोड़ी साथियों द्वारा बताई गई इस बात को अपने घर में आकर बताया. शाम तक यह खबर पूरी कॉलोनी में फ़ैल गई और कॉलोनी के प्रत्येक मकान के दरवाजे पर मेंहदी के थापे लग चुके थे. धीरे-धीरे यह खबर पूरे शहर की महिलाओं तक पहुँच गई. मीडिया व पुलिस भी महिला सूचना तंत्र की ऐसी चुस्ती को देखकर हैरान हो गए.
महिला सूचना तंत्र चुगल विभाग का एक अभिन्न अंग है. हर गली-मोहल्ले में चुगल विभाग का छोटा-मोटा केन्द्र अवश्य होता है और उनमें चुगल श्रेष्ठ बनने की गला-काट प्रतिस्पर्द्धा सदैव ही रहती है. यदि प्रत्येक घर की तलाशी ली जाए तो हर घर से कम से कम एक मीटर लंबी दूरबीन बरामद हो सकती है. चुगल विभागकर्मी अपना नेटवर्क बढ़ाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. कई लड़के भी अब चुगलखोरी में अपना कैरियर बनाने लगे हैं.  वह आत्मविश्वास के साथ यह दावा करते दिखते हैं, किसी भी खबर को कुछ पलों में वह पूरे शहर में सप्लाई कर सकते हैं. ऐसे ही एक महानुभाव को मैं बदनसीब भी जानता हूँ, जिनकी तीव्र सेवा से पूरे कॉलोनीवासी भी अचंभित रहते हैं. उनकी इस प्रतिभा से प्रभावित होकर कई चुगल केन्द्रों की अध्यक्षायें उन्हें अपने चुगल केन्द्रों को सेवा देने के लिए मनाने को उत्सुक हैं, किन्तु उन महानुभाव का स्वतंत्र रूप से कार्य करने का ही विचार है. अपने आस-पास क्या-क्या हो रहा है तथा किसके घर कौन आया व कौन गया, यह जानने के लिए महिलाएं अपने-अपने बरामदों में लटकी रहतीं हैं या फिर खिड़कियों की ओट में छिपकर पूरी स्थिति का जायजा लेती रहती हैं. आप समझ सकते हैं, कि घर के भीतर नेटवर्क की कितनी दिक्कत होती है, इसलिए उन्हें खिड़कियों और दरवाजों का आश्रय लेना पड़ता है. जब नेटवर्क प्रोब्लम कुछ अधिक ही हो जाती है, तो छतों का सहारा लिया जाता है. सूचना आदान-प्रदान के लिए छोटी-बड़ी किटी पार्टियाँ व मिलन समारोह आम बात है. अधिक महत्वाकांशी महिलाएं कॉलोनी के बाहर भी अपने नेटवर्क का जाल बिछाती हैं. इसके लिए सर्वश्रेष्ठ माध्यम होता है पार्क में सुबह और शाम की सैर. इन सब बातों से कॉलोनी को चाहे जितना भी नुकसान उठाना पड़ा हो, लेकिन एक लाभ तो अवश्य ही हुआ है, कि कॉलोनी में चोरी जैसी घटनाओं पर विराम लग चुका है. हर आने-जानेवाले पर निगाह रखने से संदिग्ध व्यक्ति कॉलोनी के आजू-बाजू भी नहीं फटकते हैं.

हमारे देश की गुप्तचर एजेंसियां यदि महिला सूचना तंत्र से कुछ सबक लें, तो निरंतर हो रही घुसपैठ तथा आतंकवादी घटनाओं से मुक्ति मिल सकती है. यदि हमारे देश का प्रत्येक विभाग इसकी भांति सक्रिय हो जाए, तो इसे विकासशील से विकसित राष्ट्र बनने से कोई माई का लाल नहीं रोक सकता. 

सुमित प्रताप सिंह


इटावा, नई दिल्ली, भारत


चित्र गूगल बाबा से साभार