अक्सर आ जाता हूँ ....
                                            
                                          
                                              घर की छत पर.....
                                            
                                          
                                              जब सूरज दिन के 
                                            
                                          
                                              सफ़र के अंतिम पड़ाव पर होता है 
                                            
                                          
                                              बहुत प्यारा लगता है
                                            
                                          
                                              उस वक़्त .....सूरज 
                                            
                                          
                                              एक अलोकिक तेज़ लिए 
                                            
                                          
                                              बिलकुल शांत ...निस्तेज़ ....
                                            
                                          
                                              मानो बैठा हो कोई संत  ...
                                            
                                          
                                              आँखें ..मौन किये .....
                                            
                                          
                                              दिन भर अपना प्रकाश-पुंज 
                                            
                                          
                                              बिखेरने के बाद ....
                                            
                                          
                                              कुछ देर खुद में ही 
                                            
                                          
                                              खोना चाहता है ....सूरज 
                                            
                                          
                                              रंग .... कुछ-कुछ लाल 
                                            
                                          
                                              कुछ - कुछ पीला सा 
                                            
                                          
                                              और कुछ संतरी सा भी ....
                                            
                                          
                                              देखता रहता हूँ उसे 
                                            
                                          
                                              टकटकी लगाये ...
                                            
                                          
                                              यूँ तो अक्सर सभी को 
                                            
                                          
                                              उगता हुआ सूरज भाता है 
                                            
                                          
                                              पर मुझे डूबता हुआ …
                                            
                                          
                                              सूरज 
                                            
                                          
                                              अच्छा लगता है ....
                                            
                                          
                                              उसकी सौम्यता ...भोलापन 
                                            
                                          
                                              और चेहरे पर शांति के भाव
                                            
                                          
                                              मानो कह रहे हों 
                                            
                                          
                                              मुझसे - 
                                            
                                          
                                              "कल फिर आऊँगा"
                                            
                                          
                                              तुम्हारे जीवन में उजाला करने ....
                                            
                                          
                                              तुम्हे उर्जा देने ....
                                            
                                          
                                              नयी खुशियाँ बाँटने के लिए 
                                            
                                          
                                              और .... 
                                            
                                          
                                              एक नए दिन की नयी शुरुआत करने के लिए ....
                                            
                                          
                                              और मैं भी ...
                                            
                                          
                                              मुस्करा कर 
                                            
                                          
                                              'सूरज' को देखता हूँ 
                                            
                                          
                                              और उचक कर उसका माथा चूम लेता हूँ ....
                                            
                                          
                                               और वो भी 
                                            
                                          
                                              मुस्करा कर छुप जाता है 
                                            
                                          
                                            बादलों के उस छोर पर ।
                                          
                                          
                                              रविश 'रवि'
                                            
                                          
                                              फरीदाबाद
                                            
                                          

