सींच कर अपने रक्त से
गढ़ती है नित नए कलेवर
असंख्य रत्नों का भंडार,
है सोने सा तन इसका ,
हरा भरा आंचल ,
सुंदर सलिल सरितायेँ ,
मोहक रूप मनोहर
ये धरती है निर्माता ।
गोदी मे खेले इसकी
बालक हो या बालिका
न करती कभी कोई भेद ,
ये धरती है निर्माता ।
कितनों ने ही नोचा इसको
सुंदरता को छीना है
बच्चों को भी मारा है
उफ ! भी न किया कभी
बस सबको ही पाला है
ये धरती है निर्माता ।
जो रूठ गई
तो क्या करोगे
देख न सकोगे
विध्वंस इसका
झेल न सकोगे
नूतन दंड इसका
मत भूलो !!!
ये ही माता है
ये ही निर्माता है ॥