माँ पूजा में मग्न थीं। उन्हें देखकर मैं भी भक्ति भाव से भर उठा और अपनी आँखें बंद करके प्याज देवता का स्मरण करने लगा। अब यह कौन सी चौंकने वाली बात हो गई? आज के समय में जब मनुष्य भांति-भांति के बाबाओं और फकीरों को पूज रहा है, तो मैंने प्याज को देवता मान पूजकर कर भला कौन सा पाप कर दिया। अब आप पूंछेंगे कि ऐसा क्या है इस प्याज में जो देवता हो गया? बाज़ार में ढेर में पड़ा रहनेवाला और लोगों के पैरों से कुचला जानेवाला मुआँ देवता कैसे हो गया? अरे साब वो जमाने गए जब यह ढेर में यूँ ही पड़ा रहता था और सबके पैरों से कुचला जाता था। पुराने समय में कौड़ियों के भाव बिकनेवाले प्याज के भाव अब आसमान से गुटर-गूं कर रहे हैं। अब तो आप इसके छोटे-मोटे ढेर देखने को तरस जायेंगे। हाँ अगर आपकी किसी ब्लैकिए से सैटिंग है, तो आपको फिकर करने की जरूरत नहीं है। वह आपको प्याज देवता के दिव्य दर्शन स्वयं ही करवा देगा तथा अन्य ग्राहकों की अपेक्षा कुछ कंशेसन में प्याज प्राप्ति का सौभाग्य भी दिलवा देगा। बाकी रही प्याज को पैरों से कुचलने वाली बात तो कुचलकर तो देखिए। पहले तो आप पर देव हत्या का पाप मढ़ा जाएगा फिर जली-कटी सुनने को मिलेगी सो अलग। जिस प्रकार हर देवता के पास अपनी कोई विशेष शक्ति होती है, उसी प्रकार प्याज देवता के पास भी अपनी खास ताकत है। कुछ साल पहले एक दिन आलू ने प्याज महाराज से उनकी औकात क्या पूछ ली, कि प्याज देव का तीसरा नेत्र खुल गया और फिर अपने मूल्य में इतनी वृद्धि की कि दिल्ली की तत्कालीन सरकार को चारों खाने चित कर डाला। अपनी तो यह समझ में नहीं आता कि विद्वानों ने प्याज को तामसी भोजन की श्रेणी में आख़िरकार कैसे रख दिया, जबकि यह तो राजसी भोजन में सूचीबद्ध किए जाने योग्य है। न मानें तो मौका मिलने पर हम जैसों के घर जाकर देख लें. प्याज देखने को आपके नैना तरस जायेंगे। माँएं इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखती हैं और इसकी भीनी-भीनी सुगंध पूरे घर का गुजारा चल जाता है। नवरात्रों में तो इस बहाने प्याज बिन काम चल जाता है, कि माँस में इस्तेमाल होने के कारण इन दिनों इसका प्रयोग वर्जित है, लेकिन बाद के दिनों में कौन सा बहाना मारा जाए? प्याज देवता अपनी वैल्यू पर अक्सर फूलकर कुप्पा हो जाते हैं, ये और बात है, कि उन्हें बड़े-बड़े आलीशान बंगलों में जो ज़ुल्म झेलने पड़ते हैं, उन्हें तो केवल वो ही भली-भांति जानते हैं। कभी उन्हें सिरके में डुबोकर तड़पाया जाता है, तो कभी चटनी या सब्जी बनाने के लिए बेरहमी से हलाल किया जाता है। इन सब ज़ुल्मों को सहते हुए भी प्याज देवता प्रसन्न रहते हैं। उन्हें इस बात की खुशी होती है, कि कम से कम गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार तो उनके देवपन को स्वीकार कर उनका आदर करते हैं। गरीब व मध्यमवर्गीय जनमानस के देवता बने रहकर ही वे संतुष्ट रहते हैं और अमीरों द्वारा दिए गए कष्टों को भुला देते हैं। अभी पूजा में तल्लीन ही था, कि पिता जी के स्कूटर की आवाज सुनाई दी और भीनी-भीनी खुशबू महसूस हुई। आखें खोलकर देखा तो पिता जी थैले में प्याज लिए सामने खड़े थे। ऐसा लगा कि जैसे प्याज देवता ने मेरी पूजा से प्रसन्न होकर अपने दर्शन देने की मेरी विनती स्वीकार कर ली हो।
सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत
चित्र गूगल बाबा से साभार