दस वर्षीय बिटिया ने पूरे परिवार के सामने दादी से पूछा कि क्या आप भी रोज शराब पीती हो? संस्कारों में पले-बढ़े किसी भी परिवार की मुखिया से इस अनायास, अप्रत्याशित और अपमानजनक सवाल से पूरे परिवार का सन्न रह जाना स्वावाभिक था. अगर कोई वयस्क ऐसा सवाल करता तो उसको शायद घर से निकाल दिया जाता लेकिन इस बाल सुलभ प्रश्न का उत्तर किस ढंग से दिया जाए इस पर हम कुछ सोचते इसके पहले ही बिटिया ने शायद स्थिति को भांपकर कहा कि वो टीवी पर ‘कामेडी नाइट विथ कपिल’ में दादी हमेशा शराब पिए रहती है इसलिए मैंने पूछा था. ये प्रभाव है टीवी के कार्यक्रमों का हमारे जीवन पर. कार्यक्रम दिखाने वाले चैनल भले ही फूहड़,फिजूल और अब काफी हद तक सामाजिक सीमाएं पार जाने वाली कामेडी से टीआरपी और पैसा बना रहे हों परन्तु इन कार्यक्रमों से समाज पर और खासकर भोले-भाले और अपरिपक्व मानसिकता वाले बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है इसके बारे में शायद उन्हें सोचने की फुर्सत भी ना हो.
वैसे देखा जाए तो आजकल कामेडी के नाम पर फूहड़ता और अश्लीलता ही परोसी जा रही है. कभी टेलीविजन पर आने वाले कवि सम्मलेन और खासकर हास्य कवि सम्मेलनों का दर्शक दिन गिन-गिनकर इंतज़ार करते थे, क्योंकि उनमें विशुद्ध पारिवारिक मनोरंजन होता था. पूरा परिवार एकसाथ बैठकर ठहाके लगाता था, कविता की पंक्तियाँ गुनगुनाता था और मिल-जुलकर आनंद उठाता था. तब न तो पिताजी को पहलू बदलना पड़ता था और न ही बच्चों को चैनल. परन्तु अब तो टीवी का रिमोट हाथ में लेकर बैठना पड़ता है क्योंकि पता नहीं कब ऐसा कोई संवाद या दृश्य आ जाये कि पूरे परिवार को उसे सुनकर भी अनसुना करना पड़े या फिर एक दूसरे से नज़रे चुराने का नाटक करना पड़े. अब स्टैंड अप कामेडी के नाम फूहड़ता का बोलबाला है. खासकर कपिल के इस कार्यक्रम में बदतमीजी ही हास्य का पर्याय बन गयी है. दादी को शराब पीते हुए दिखाया जाता है तो बुआ को सेक्सी और कभी शगुन की पप्पी के नाम पर तो कभी शादी के बहाने ऊल-जलूल हरकतें की जाती है. अगर मान भी लिया जाए कि दादी का रोल कोई पुरुष कलाकार कर रहा है तब भी वह उस वक्त तो दादी के ही किरदार में है. ऐसे में बच्चों को क्या पता कि वह कलाकार स्त्री है या पुरुष और फिर दादी की भूमिका कोई भी करे सम्मान तो दादी को दादी की तरह ही मिलना चाहिए. दादी और बुआ परिवार में गंभीर और सम्मानजनक रिश्ते हैं. अगर इन रिश्तों का इस तरह से मज़ाक बनाया जाएगा तो फिर बाकी रिश्तों का क्या. दादी-बुआ क्या पति-पत्नी जैसे पवित्र रिश्ते की भी जितनी बेइज्ज़ती कामेडी के नाम पर की जा रही है उसे भी किसी तरीके से सही नहीं ठहराया जा सकता. पहले ही सास-बहू नुमा धारावाहिकों ने संबंधों, सम्मान व विश्वास के ताने-बाने में गुंथे पारिवारिक संबंधों को तार-तार कर दिया है. कभी तीन-तीन पीढ़ियों तक पूरी गर्मजोशी से चलने वाले वाले रिश्ते अब पहली ही पीढ़ी में अविश्वास,टकराव,ईर्ष्या,द्वेष और प्रतिस्पर्धा में उलझ कर दम तोड़ने लगे हैं. शादी-विवाह भावनात्मक संबंधों से ज्यादा भव्य ढोंग बनकर रह गए हैं. ननद का मतलब बहू के ख़िलाफ़ षड्यंत्र करने वाली महिला और देवर का मतलब भाभी को देखकर लार टपकाने वालेला पुरुष हो गया है. खासतौर पर महिलाओं की छवि के साथ सबसे अधिक खिलवाड़ हो रहा है. पता नहीं मर्यादा की लक्ष्मण रेखा का और कितना मान मर्दन होगा एवं जब तक शायद यह धुंध छटेगी तब तक शायद न तो रिश्ते बचेंगे और न ही हमारी पीढ़ियों से चली आ रही मर्यादा.
संजीव शर्मा
संपादक, सैनिक समाचार,
नई दिल्ली